सोरों

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सोरों कासगंज उत्तर प्रदेश से 9 मील दूर प्राचीन शूकरक्षेत्र है। प्राचीन समय में सोरों को सोरेय्य नाम से जाना जाता था। यहाँ का मुख्य मंदिर 'वाराह मंदिर' है।

  • पहले सोरों के निकट गंगा बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है।
  • पुरानी धारा के तट पर अनेक प्राचीन मन्दिर स्थित हैं।
  • तुलसीदास ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी।
  • उनके भ्राता नन्ददास जी द्वारा स्थापित बलदेव का मन्दिर सोरों का प्राचीन स्मारक है।
  • गंगा नदी के तट पर एक प्राचीन स्तूप के खण्डहर भी मिले हैं, जिनमें सीता-राम के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
  • कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा बेन ने करवाया था।
  • प्राचीन मन्दिर काफ़ी विशाल था, जैसा कि उसकी प्राचीन भित्तियों की गहरी नींव से प्रतीत होता है।
  • अनेक प्राचीन अभिलेख भी इस मन्दिर पर उत्कीर्ण हैं, जिनमें सर्वप्राचीन अभिलेख 1226 विक्रम सम्वत=1169 ई. का है।
  • कहा जाता है कि इस मन्दिर को 1511 ई. के लगभग सिकन्दर लोदी ने नष्ट कर दिया था।
  • सोरों के प्राचीन नाम सोरेय्य का उल्लेख पाली साहित्य में भी है[1][2]
  • यहाँ अनेक पक्के घाट बने हैं और उन पर बहुत-से मंदिर हैं।
  • इस तीर्थ की परिक्रमा 5 मील की है।
  • योगमार्ग स्थान तथा सूर्यकुंड यहाँ के विख्यात तीर्थ हैं[3]


इन्हें भी देखें: शूकरक्षेत्र उत्तर प्रदेश एवं सोरेय्य


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. माथुर, विजयेन्द्र कुमार ऐतिहासिक स्थानावली, द्वितीय संस्करण-1990 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृष्ठ संख्या-995।
  2. *ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  3. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 40 |

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