हल्लीशक महाभारत में वर्णित एक प्रकार की नृत्य शैली है। इस नृत्य शैली का एकमात्र विस्तृत वर्णन महाभारत के खिल्ल भाग 'हरिवंश'[1] में मिलता है।
- विद्वानों ने इस नृत्य शैली को रास का पूर्वज माना है। इसके साथ ही रास क्रीड़ा का पर्याय भी।
- आचार्य नीलकंठ ने टीका करते हुए लिखा है कि- "हस्लीश क्रेडर्न एकस्य पुंसो बहुभि: स्त्रीभि: क्रीडन सैव रासकीड़।"[2]
- हल्लीशक नृत्य स्त्रियों का है, जिसमें एक ही पुरुष श्रीकृष्ण होता है। यह दो-दो गोपिकाओं द्वारा मंडलाकार बना तथा श्रीकृष्ण को मध्य में रख संपादित किया जाता है।[3]
- हरिवंश के अनुसार श्रीकृष्ण वंशी, अर्जुन मृदंग तथा अन्य अप्सराएँ अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र बजाते हैं। इसमें अभिनय के लिए रंभा, हेमा, मिश्रकेशी, तिलोत्तमा, मेनका आदि अप्सराएँ प्रस्तुत होती हैं।
- सामूहिक नृत्य, सहगान आदि से मंडित यह कोमल नृत्य श्रीकृष्ण लीलाओं के गान से पूर्णता पाता है। इसका वर्णन अन्य किसी पुराण में नहीं आता।
- भास कृत 'बालचरित' में हल्लीशक का उल्लेख है। इसका अन्यत्र कोई संकेत नहीं मिलता।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णु पर्व, अध्याय 20
- ↑ हरि. 2|20|36
- ↑
हल्लीशक (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2015।
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