एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

हॉकी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
हॉकी
हॉकी स्टिक तथा बॉल
विवरण 'हॉकी' भारत का राष्ट्रीय खेल है। इस खेल के दोनों दलों में खिलाड़ियों की संख्या ग्यारह होती है।
पहली बार खेला गया इस खेल की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा 1895 में प्रारंभ हुई।
वर्गीकरण दलीय स्थिति
दल के सदस्य ग्यारह
उपकरण हॉकी स्टिक, गेंद, हेलमेट और पैड[1]
स्थल हॉकी का मैदान सामान्यत: 91.4 मीटर लंबा और 55 मीटर चौड़ा होता है।
विश्वकप प्रतियोगिता 1971 में हॉकी विश्व कप की शुरुआत हुई। मलेशिया में 1975 में भारत ने पाकिस्तान को 2-1 से हराकर विश्वकप प्रतियोगिता जीती थी।
ओलम्पिक पुरुषों की मैदानी हॉकी को 1908 और 1920 में ओलम्पिक खेलों में खेला गया और 1928 से इसे स्थायी तौर पर ओलम्पिक में शामिल कर लिया गया।
गेंद गेंद की परिधि लगभग 30 से.मी. होती है।
हॉकी स्टिक हॉकी स्टिक लगभग एक मीटर लंबी और 340 से 790 ग्राम भारी होती है।
अन्य जानकारी भारत में हॉकी सबसे पहले कोलकाता में खेला गया। भारतीय टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई, 1928 में भारतीय हॉकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट (भारतीय हॉकी)

हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। हॉकी का प्रारम्भ वर्ष 2010 से 4,000 वर्ष पूर्व ईरान में हुआ था। इसके बाद बहुत से देशों में इसका आगमन हुआ पर उचित स्थान न मिल सका। अन्त में इसे भारत में विशेष सम्मान मिला और यह राष्ट्रीय खेल बना गया। हमारे देश में इसका आरम्भ 100 वर्षों से पहले हुआ था। 11 खिलाड़ियों के दो विरोधी दलों के बीच मैदान में खेले जाने वाले इस खेल में प्रत्येक खिलाड़ी मारक बिंदु पर मुड़ी हुई एक छड़ी (स्टिक) का इस्तेमाल एक छोटी व कठोर गेंद को विरोधी दल के गोल में मारने के लिए करता है। बर्फ़ में खेले जाने वाले इसी तरह के एक खेल आईस हॉकी से भिन्नता दर्शाने के लिए इसे मैदानी हॉकी कहते हैं। चारदीवारी में खेली जाने वाली हॉकी, जिसमें एक दल में छह खिलाड़ी होते हैं और छह खिलाड़ी परिवर्तन के लिए रखे जाते हैं।
हॉकी के विस्तार का श्रेय, विशेषकर भारत और सुदूर पूर्व में, ब्रिटेन की सेना को है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आह्वान के फलस्वरूप 1971 में विश्व कप की शुरुआत हुई। हॉकी की अन्य मुख्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हैं- एशियन कप, एशियाई खेल, यूरोपियन कप और पैन-अमेरिकी खेल।

इतिहास

हॉकी की शुरुआत आरंभिक सभ्यताओं के युग से मानी जाती है। हॉकी खेलने के अरबी, यहूदी, फ़ारसी और रोमन तरीक़े रहे और दक्षिण अमेरिका के एज़टेक इंडियनों द्वारा छड़ी से खेले जाने वाले एक खेल के प्रमाण भी मिलते हैं। आरंभिक खेलों हर्लिंग और शिंटी जैसे खेलों के रूप में भी हॉकी को पहचाना गया है। मध्य काल में छड़ी से खेला जाने वाला एक फ़्रांसीसी खेल हॉकी प्रचलित था और अंग्रेज़ी शब्द की उत्पत्ति शायद इसी से हुई है।

भारतीय हॉकी का प्रतीक चिह्न

19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में इस खेल के विस्तार का श्रेय मुख्य रूप से ब्रिटिश सेना को जाता है और एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में यह खेल छावनी नगरों व उसके आसपास तथा युद्धप्रिय समझे जाने वाले लोगों और सैनिकों के बीच फला-फूला हैं। सैनिक छावनियों वाले सभी नगर, जैसे लाहौर, जालंधर, लखनऊ, झांसी, जबलपुर भारतीय हॉकी के गढ़ थे। मगर इस खेल को विभाजन-पूर्व भारत की कृषि प्रधान भूमि के मेहनती और बलिष्ठ पंजाबियों ने स्वाभाविक रूप से सीखा। अंग्रेज़ी विद्यालयों में हॉकी खेलना 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शुरू हुआ और दक्षिण-पूर्वी लंदन के ब्लैकहीथ में पुरुषों के पहले हॉकी क्लब का विवरण 1861 की एक विवरण-पुस्तिका में मिलता है। पुरुषों की मैदानी हॉकी को 1908 और 1920 में ओलम्पिक खेलों में खेला गया और 1928 से इसे स्थायी तौर पर ओलम्पिक में शामिल कर लिया गया।

महिला हॉकी एसोसिएशन का निर्माण

विक्टोरियाई युग में खेलों में महिलाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद महिलाओं में हॉकी की लोकप्रियता बहुत बढ़ी। यद्यपि 1895 से ही महिला टीमें नियमित रूप से मैत्री प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही थीं, लेकिन गंभीर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की शुरुआत 1970 के दशक तक नहीं हुई थी। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप आयोजित किया गया और 1980 में महिला हॉकी ओलम्पिक में शामिल की गई। 1927 में अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्था, इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ विमॅन्स हॉकी एसोसिएशन का निर्माण हुआ था। 1901 में अमेरिका में कांसटेंस एम.के. एप्पेलबी द्वारा इस खेल की शुरुआत हुई और मैदानी हॉकी धीरे-धीरे यहाँ की महिलाओं में लोकप्रिय मैदानी टीम खेल बन गई व विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा क्लबों में खेली जाने लगी।

हॉकी की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा

इस खेल की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा 1895 में प्रारंभ हुई। उपमहाद्वीप के हॉकी यु्ग की शुरुआत 1925 में हुई, जब अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना हुई, जिसमें कर्नल ब्रूस टर्नबुल अध्यक्ष तथा एम.एस. अंसारी सचिव थे। एक साल बाद ही न्यूज़ीलैंड प्रवास के दौरान भारतीयों ने अपनी अपूर्व क्षमता का परिचय दिया। दो महीने के लंबे दौरे पर न्यूज़ीलैंड गई सेना की टीम ने 21 मुक़ाबलों में से 18 मुक़ाबले जीते और केवल दो मुक़ाबले हारे।

हॉकी के नियम

  • लंदन स्थित एक अन्य क्लब टेडिंगटन ने कई मुख्य परिवर्तनों की शुरुआत की, जिसमें हाथों का प्रयोग या छड़ी को कंधों से ऊपर उठाने पर प्रतिबंध, रबर की घनाकार गेंद के स्थान पर गोलाकार स्वरूप के प्रयोग शामिल थे। सबसे महत्त्वपूर्ण था[2] मारक चक्र को अपनाना, जिसे 1886 में लंदन में स्थापित तत्कालीन हॉकी एसोसिएशन ने अपने नियमों में शामिल किया था।
  • दल के सामान्य संयोजन में पांच खिलाड़ी फ़ॉरवर्ड, तीन हाफ़बैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होते हैं। एक खेल में 35 मिनट के दो भाग होते हैं, जिनमें 5 से 10 मिनट का अंतराल होता है। केवल चोट लगने की दशा में खेल रोका जाता है। गोलकीपर मोटे मगर हल्के पैड पहनता है और उसे 30 गज़ के घेरे (डी) में गेंद को पैर से मारने अथवा उसे पैरों या शरीर की मदद से रोकने की इजाज़त होती है। अन्य सभी खिलाड़ी गेंद को केवल स्टिक से ही रोक सकते हैं।
  • मैदान के केंद्र से पास-बैक द्वारा, जिसमें एक खिलाड़ी अपनी टीम के अन्य खिलाड़ियों की ओर गेंद फेंकता है, गेंद पुनः उस तक पहुँचाई जाती है[3], खेल प्रारंभ होता है। किसी को चोट लगने पर या तकनीकी कारण से खेल रुकने पर, दोनों दलों द्वारा क्रमशः एक-एक पेनल्टी करने पर या खिलाड़ियों के कपड़ों में गेंद के उलझने पर खेल को फिर से शुरू करने के लिए फ़ेस-ऑफ़ या बुली का प्रयोग किया जाता है। फ़ेस-ऑफ़ में दोनों टीमों के एक-एक खिलाड़ी आमने-सामने खड़े होते है और गेंद उनके बीच मैदान पर होती है। एक के बाद एक ज़मीन पर आघात करने के बाद दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे की स्टिक को आपस में तीन बार टकराते हैं, प्रत्येक खिलाड़ी गेंद को मारने का प्रयास करता है और इस प्रकार खेल फिर से शुरू हो जाता है। गेंद के मैदान से बाहर जाने की दशा में खेल को फिर से शुरू करने के विभिन्न तरीक़े हैं।
  • हॉकी में कई तरह की ग़लतियाँ (फ़ाउल) होती हैं। किसी खिलाड़ी को मैदान में गेंद से आगे रहकर और विरोधी दल के दो खिलाड़ियों से कम खिलाड़ियों के आगे रहकर लाभ उठाने से रोकने के लिए बनाए गए हैं। ऑफ़ साइड नियम को 1996 के ओलम्पिक खेलों के बाद समाप्त कर दिया गया। गेंद से खेलते वक़्त हॉकी को कंधों से ऊपर उठाना नियमों के विरुद्ध है। गेंद को हॉकी से रोकना उसी तरह की ग़लती है, जैसी गेंद को शरीर या पैरों से रोकना। अंडरकटिंग के साथ ही विरोधी की हॉकी में अपनी हॉकी फंसाकर (हुकिंग) गेंद को तेज़ी से ऊपर उछालते हुए खेल को ख़तरनाक बनाना भी ग़लत है। अंत में अवरोधन का नियम है: एक खिलाड़ी को अपनी स्टिक या शरीर के किसी भी भाग को अपने विरोधी और गेंद के बीच लाकर अवरोध खड़ा करने अथवा विरोधी व गंद के बीच दौड़कर बाधा डालने की अनुमति नहीं है। अधिकतर ग़लतियों की सज़ा विरोधी दल को, जिस स्थान पर नियम तोड़ा गया, वहाँ से एक फ़्री हिट के रूप में दी जाती है। खेल के प्रत्येक भाग के लिए एक निर्णायक (रेफ़री) होता है।

गेंद

हॉकी में इस्तेमाल होने वली यह गेंद मूलतः क्रिकेट की गेंद थी[4], लेकिन प्लास्टिक की गेंद भी अनुमोदित है। इसकी परिधि लगभग 30 सेमी होती है।

हॉकी स्टिक

हॉकी स्टिक लगभग एक मीटर लंबी और 340 से 790 ग्राम होती है। स्टिक का चपटा छोर ही गेंद को मारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

मैदान

मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम, दिल्ली

यह खेल चौकोर मैदान पर 11 खिलाड़ियों वाले दो दलों के बीच खेला जाता है। यह मैदान 91.4 मीटर लंबा और 55 मीटर चौड़ा होता है, इसके केंद्र में एक केंद्रीय रेखा व 22.8 मीटर की दो अन्य रेखाएँ खिंची होती हैं। गोल की चौड़ाई 3.66 मीटर व ऊँचाई 2.13 मीटर होती है। एक गोल बनाने के लिए[5] गेंद को गोल के अंदर जाना चाहिए और आक्रमणकारी की हॉकी से शूटिंग सर्कल ‘डी’ के अंदर गेंद का स्पर्श ज़रूरी है।

भारत में हॉकी

भारत में यह खेल सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया। भारतीय टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन् 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में जब भारतीयों ने मेज़बान टीम को 24-1 से हराया। तब से अब तक की सर्वाधिक अंतर से जीत का कीर्तिमान भी स्थापित हो गया। 24 में से 19 गोल दो भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 गोल दागे और ध्यानचंद ने शेष गोल किए।

1936 के बर्लिन ओलम्पिक में इन भाइयों के नेतृत्व में भारतीय दल ने पुनः स्वर्ण 'पदक जीता' जब उन्होंने जर्मनी को हराया। बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद असमय बाहर हो गये और द्वितीय विश्व युद्ध ने भी इस विश्व स्पर्द्धा को बाधित कर दिया। आठ वर्ष के बाद ओलम्पिक की पुनः वापसी पर भारत की विश्व हॉकी चैंपियन की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। एक असाधारण कार्य, जो विश्व में कोई भी अब तक दुहरा नहीं पाया है। अन्य टीमों के उभरने के संकेत सर्वप्रथम मेलबोर्न में दिखाई दिए, जब भारत को पहली बार स्वर्ण पदक के लिए संघर्ष करना पड़ा। पहले की तरह, टीम ने अपनी ओर एक भी गोल नहीं होने दिया और 38 गोल दागे, मगर बलबीर सिंह के नेतृत्व में खिलाड़ियों को सेमीफ़ाइनल में जर्मनी के ख़िलाफ़ और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ संघर्ष करना पड़ा। सेमीफ़ाइनल में कप्तान के गोल ने निर्णय किया, जबकि वरिष्ठ रक्षक आर.एस. जेंटल के बनाए गोल ने भारत की अपराजेयता को बनाए रखा। 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक के फ़ाइनल में भारत और पाकिस्तान को 1960 में रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान ने फ़ाइनल में 1-0 से स्वर्ण जीतकर भारत की बाज़ी पलट दी। भारत ने पाकिस्तान को 1964 के टोकियो ओलम्पिक में हराया। 1968 के मेक्सिको ओलम्पिक में पहली बार भारत फ़ाइनल में नहीं पहुँचा और केवल कांस्य पदक जीत पाया। मगर मेक्सिको के बाद, पाकिस्तान व भारत का आधिपत्य टूटने लगा। 1972 के म्यूनिख़ ओलम्पिक में दोनों में से कोई भी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं रही और क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान तक ही पहुँच सकी।

भारतीय हॉकी टीम

मुख्य रूप से भारत में, हॉकी के पारंपरिक केंद्रों के अलावा अन्य स्थानों पर लोगों की रुचि में तेज़ी से गिरावट आई और इस पतन को रोकने के प्रयास भी कम ही किए गए। इसके बाद भारत ने केवल एक बार 1980 के संक्षिप्त मॉस्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता। टीम का अस्थिर प्रदर्शन जारी रहा। इसके बाद 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक की प्राप्ति भारतीय हॉकी का एकमात्र बढ़िया प्रदर्शन था। ऐसे बहुत कम मौक़े रहे, जब कौशल ने शारीरिक सौष्ठव को हराया, अन्यथा यह बारंबार बहुत कम अंतर से हार और गोल चूक जाने का मामला रहा है। यद्यपि भारत अब विश्व हॉकी में एक शक्ति के रूप में नहीं गिना जाता, पर हाल के वर्षों में यहाँ ऐसे कई खिलाड़ी हुए हैं, जिनके कौशल की बराबरी विश्व में कुछ ही खिलाड़ी कर पाते हैं। अजितपाल सिंह, वी. भास्करन, गोविंदा, अशोक कुमार, मुहम्मस शाहिद, जफ़र इक़बाल, परगट सिंह, मुकेश कुमार और धनराज पिल्लै जैसे खिलाड़ियों ने अपनी आक्रामक शैली की धाक जमाई है।

हॉकी अकादमी

भारत में हॉकी के गौरव को पुनर्जीवित करने के गंभीर प्रयास हुए हैं। भारत में तीन हॉकी अकादमी कार्यरत हैं-

  1. नई दिल्ली में 'एयर इंडिया अकादमी'
  2. रांची (झारखंड) में 'विशेष क्षेत्र खेल अकादमी'[6] ऐर राउरकेला
  3. (उड़ीसा) में 'स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) अकादमी'।

इन अकादमियों में प्रशिक्षार्थी हॉकी को प्रशिक्षण के अलावा औपचारिक शिक्षा भी जारी रखते हैं और मासिक वृत्ति भी पाते हैं। प्रत्येक अकादमी ने योग्य खिलाड़ी तैयार किए हैं, जिनसे आने वाले वर्षों में इस खेल में योगदान की आशा है। क्रिकेट के प्रति दीवानगी के बावजूद विद्यालयों और महाविद्यालयों में हॉकी के पुनरुत्थान से नई पीढ़ी में इस खेल के प्रति रुचि जागृत हुई है। प्रतिवर्ष राजधानी में होने वाली 'नेहरू कप हॉकी प्रतियोगिता' जैसी प्रतिस्पर्द्धाओं में उड़ीसा, बिहार और पंजाब के विद्यालयों, जैसे सेंट इग्नेशियस विद्यालय, राउरकेला; बिरसा मुंडा विद्यालय, गुमला और लायलपुर खालसा विद्यालय, जालंधर द्वारा उच्च स्तरीय हॉकी का प्रदर्शन देखा गया है।

उपलब्धियाँ

हॉकी के खेल में भारत ने हमेशा विजय पाई है। इस स्वर्ण युग के दौरान भारत ने 24 ओलम्पिक मैच खेले और सभी 24 मैचों में जीत कर 178 गोल बनाए[7] तथा केवल 7 गोल छोड़े। हमारे देश के पास 8 ओलम्पिक स्वर्ण पदकों का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है। भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग 1928-56 तक था जब भारतीय हॉकी दल ने लगातार 6 ओलम्पिक स्वर्ण पदक प्राप्त किए। 1928 तक हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल बन गया था और इसी वर्ष एमस्टर्डम ओलम्पिक में भारतीय टीम पहली बार प्रतियोगिता में शामिल हुई। भारतीय टीम ने पांच मुक़ाबलों में एक भी गोल दिए बगैर स्वर्ण पदक जीता। जयपाल सिंह की कप्तानी में टीम ने, जिसमें महान् खिलाड़ी ध्यानचंद भी शामिल थे, अंतिम मुक़ाबले में हॉलैंड को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक जीता।
भारतीय हॉकी संघ के इतिहास की शुरुआत ओलम्पिक में अपनी स्वर्ण गाथा शुरू करने के लिए की गई। इस दौरे में भारत को 21 मैचों में से 18 मैच भारत ने जीते और प्रख्यात खिलाड़ी ध्यानचंद सभी की आँखों में बस गए जब भारत के कुल 192 गोलों में से 100 गोल उन्होंने अकेले किए। यह मैच एमस्टर्डम में 1928 में हुआ और भारत लगातार लॉस एंजेल्स में 1932 के दौरान तथा बर्लिन में 1936 के दौरान जीतता गया और इस प्रकार उसने ओलम्पिक में स्वर्ण पदकों की हैट्रिक प्राप्त की।
किशनलाला के नेतृत्व में दल ने लंदन में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी दल ने 1975 में विश्व कप जीतने के अलावा दो अन्य पदक (रजत और कांस्य) भी जीते। भारतीय हॉकी संघ ने 1927 में वैश्विक संबद्धता अर्जित की और अंतरराष्ट्रीपय हॉकी संघ (एफआईएच) की सदस्यता प्राप्त की। भारत को 1964 टोकियो ओलम्पिक और 1980 मॉस्को ओलम्पिक में दो अन्य् स्वर्ण पदक प्राप्त। हुए। 1962 में कांस्य पदक और 1980 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया और देश का नाम ऊँचा कर दिया।

समाचार

5 अगस्त, 2013 सोमवार

जूनियर महिला हॉकी विश्वकप में कांस्य पदक जीता

जूनियर महिला हॉकी टीम

भारत की जूनियर महिला हॉकी टीम ने जर्मनी में संपन्न हुए विश्वकप में इंग्लैंड को 3-2 (1-1) से हराकर कांस्य पदक पर क़ब्ज़ा किया। भारतीय लड़कियों ने रविवार (4 अगस्त, 2013) को तीसरे स्थान के लिए खेले गए प्लेऑफ मुकाबले में इंग्लैंड को पेनाल्टी शूटआउट में हराया। निर्धारित समय तक दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर थीं। इसके बाद मैच का फैसला पेनाल्टी शूटआउट से करने का फैसला किया गया। निर्धारित समय में भारत के लिए रानी ने 13वें मिनट में फील्ड गोल किया जबकि इंग्लैंड की ओर से एना टोमान ने 55वें मिनट में बराबरी का गोल किया। पेनाल्टी शूटआउट में एना टोमान इंग्लैंड की तरफ से पहला गोल चूक गईं, जबकि रानी ने पेनाल्टी शूटआउट पर पहला गोल दागकर भारत को 1-0 से बढ़त दिला दी। पेनाल्टी शूटआउट के पहले छह शॉट तक भारत ने बढ़त बनाए रखी, क्योंकि भारत की नवनीत कौर, वंदना कटारिया और नवजोत कौर और इंग्लैंड की लूसी हाइम्स, शोना मैक्लिन और जो लीफ ने अपने-अपने शॉट मिस कर दिए। आखिरकार एमिली डीफ्रोंड ने इंग्लैंड के लिए गोल कर स्कोर 1-1 से बराबरी पर ला दिया। इसके बाद पूनम रानी द्वारा गोल मिस किए जाने से भारत सडेन डेथ की स्थिति में पहुंच गया।
रानी ने फिर से इस बार भारत को संकट से उबारा और गोल कर भारत को 2-1 से बढ़त दिला दी। एमिली ने फिर से स्कोर को 2-2 कर दिया। इसके बाद भारत की तरफ से पूनम रानी और इंग्लैंड की तरफ से शोना मैक्लिन अपने-अपने गोल चूक गईं। आखिरकार नवनीत कौर ने भारत को 3-2 से बढ़त दिलाई, जबकि इंग्लैंड की एना गोल करने से चूक गईं। इसी के साथ विश्व चैंपियनशिप में भारतीय महिलाओं ने अपना पहला पदक हासिल किया।

समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोलकीपर के लिए
  2. स्ट्राइकिंग सर्कल
  3. और एक गोल करने के बाद व मध्यांतर के बाद
  4. जिसमें बीच में कॉर्क रहता है, जिसे रस्सी से लपेटकर चमड़े के आवरण से ढकते थे
  5. जिसकी गणना एक अंक के रूप में होती है
  6. स्पेशल एरिया गेम्स अकैडमी
  7. प्रति मैच औसतन 7.43 गोल

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख