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*[[लॉर्ड रिपन]] के बाद [[1884]] ई. में '''लॉर्ड डफ़रिन''' [[भारत]] का [[वायसराय]] बनकर आया।
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'''लॉर्ड डफ़रिन''' 1884 ई. में [[लॉर्ड रिपन]] के बाद [[भारत]] का [[वायसराय]] बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा [[गवर्नर-जनरल]] रहा था। सामान्य तौर पर उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण था, लेकिन तृतीय बर्मा युद्ध (1885-1886 ई.) उसी के कार्यकाल में हुआ, जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का अंग बन गया।
*लॉर्ड डफ़रिन के शासनकाल की महत्त्वपूर्ण घटना थी-'तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध' (1885-1888 ई.)
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*इस युद्ध में बर्मा की पूर्णरूप से पराजय हुई थी।
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*रूसी अफ़ग़ान सीमा पर स्थित 'पंजदेह' पर रूसियों का क़ब्ज़ा हो जाने के कारण [[रूस]] तथा [[ब्रिटेन]] के बीच युद्ध का ख़तरा पैदा हो गया था।
*डफ़रिन के समय में ही 1885 ई. में 'ए. ओ. ह्यूम' ने '[[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]]' की स्थापना की थी।
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*इसके समय में ही 'बंगाल टेनेन्सी एक्ट' 1885 ई., 'अवध टेनेन्सी एक्ट' तथा 'पंजाब टेनेन्सी एक्ट' 1885 ई. पारित किये गये।
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*[[अफ़ग़ानिस्तान]] के [[अब्दुर्रहमान|अमीर अब्दुर्रहमान]] (1880-1901 ई.) के शान्ति प्रयास तथा लॉर्ड डफ़रिन की विवेकशीलता से यह युद्ध नहीं छिड़ पाया।
*इसके काल में [[ग्वालियर]] पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना की गयी।
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*लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल में ही 1885 ई. का बंगाल लगान क़ानून बना, जिसके अंतर्गत किसानों को भूमि की सुरक्षा की गारंटी दी गई थी।
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*न्याययुक्त लग़ान निर्धारित कर दिया गया तथा ज़मींदारों द्वारा बेदख़ल किये जाने के अधिकार को भी सीमित कर दिया गया।
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*किसानों के हित के लिए इसी प्रकार के क़ानून [[अवध]] और [[पंजाब]] में भी बनाये गये।
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*[[ग्वालियर]] पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना भी डफ़रिन के कार्यकाल में ही की गयी।
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*लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है, 1885 ई. में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का प्रथम अधिवेशन [[बम्बई]] में होना।
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*प्रारम्भ में इस अधिवेशन की महत्ता नहीं आंकी गई, लेकिन बाद में इसी संघठन के माध्यम से [[भारत]] को 1947 ई. में स्वाधीनता प्राप्त हुई।
  
 
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06:46, 20 अक्टूबर 2011 का अवतरण

लॉर्ड डफ़रिन

लॉर्ड डफ़रिन 1884 ई. में लॉर्ड रिपन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा था। सामान्य तौर पर उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण था, लेकिन तृतीय बर्मा युद्ध (1885-1886 ई.) उसी के कार्यकाल में हुआ, जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का अंग बन गया।

  • रूसी अफ़ग़ान सीमा पर स्थित 'पंजदेह' पर रूसियों का क़ब्ज़ा हो जाने के कारण रूस तथा ब्रिटेन के बीच युद्ध का ख़तरा पैदा हो गया था।
  • अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान (1880-1901 ई.) के शान्ति प्रयास तथा लॉर्ड डफ़रिन की विवेकशीलता से यह युद्ध नहीं छिड़ पाया।
  • लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल में ही 1885 ई. का बंगाल लगान क़ानून बना, जिसके अंतर्गत किसानों को भूमि की सुरक्षा की गारंटी दी गई थी।
  • न्याययुक्त लग़ान निर्धारित कर दिया गया तथा ज़मींदारों द्वारा बेदख़ल किये जाने के अधिकार को भी सीमित कर दिया गया।
  • किसानों के हित के लिए इसी प्रकार के क़ानून अवध और पंजाब में भी बनाये गये।
  • ग्वालियर पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना भी डफ़रिन के कार्यकाल में ही की गयी।
  • लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है, 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई में होना।
  • प्रारम्भ में इस अधिवेशन की महत्ता नहीं आंकी गई, लेकिन बाद में इसी संघठन के माध्यम से भारत को 1947 ई. में स्वाधीनता प्राप्त हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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