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12:15, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
दादूद्वार से अभिप्राय है कि दादू के बावन शिष्य थे, जिनमें से प्रत्येक ने कम से कम एक पूजा स्थल (मंदिर) स्थापित किया था। इन पूजा स्थलों को ही 'दादूद्वार' कहते हैं।[1]
- इनमें हाथ की लिखी 'वाणी' की पोथी की षोडशोपचार पूजा और आरती होती है।
- पाठ और भजन आदि का गान होता है। साधु ही यह सब करते हैं और जहाँ साधु और उक्त पोथी हो, वही स्थान 'दादूद्वार' कहलाता है।
- 'नरायना' में दादू महाराज की चरण पादुका (खड़ाऊँ) और वस्त्र रखे हैं। इन वस्तुओं की भी पूजा होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 318 |