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यशकीर्ति जैन भट्टारक थे। 'पाण्डवपुराण', 'हरिवंशपुराण', 'आदित्यरकथा' और 'जिनरात्रिकथा' इनकी मुख्य कृतियाँ हैं। इन्होंने महाकवि स्वयंभू के खण्डित और जीर्ण-शीर्ण हरिवंशपुराण का उद्धार ग्वालियर के पास पनिहार जिन चैत्यालय में बैठकर किया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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