अध्वा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यशी चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:52, 24 मई 2018 का अवतरण (''''अध्वा''' जगत्‌ या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

अध्वा जगत्‌ या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्रों के अनुसार अध्वा दो प्रकार का होता है- शुद्ध और अशुद्ध। शुद्ध अध्वा से सात्विक जगत्‌ का तात्पर्य है, जिसका उपादान कारण महामाया है। शिव की परिग्रह शक्ति अचेतन और परिणामशालिनी मानी जाती है। वही 'बिंदु' कहलाती है। शुद्ध बिंदु का नाम 'महामाया' है जो सत्वमय जगत्‌ को उत्पत्ति में उपादान कारण बनती है। अशुद्ध बिंदु का नाम 'माया' है जो प्राकृत जगत्‌ का उपादान कारण होती है। महामाया के क्षोभ से शुद्ध जगत्‌ (शुद्धाध्वा) की सृष्टि होती है और माया के क्षोभ से अशुद्ध प्राकृत जगत्‌ (मायाध्वा) की उत्पत्ति होती है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 103 |

संबंधित लेख