अप्रैल फ़ूल दिवस

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अप्रैल फूल दिवस अर्थात् मूर्ख दिवस

अप्रैल फूल दिवस अर्थात् ‘मूर्ख दिवस’ को पहली अप्रैल के दिन विश्वभर में मौज-मस्ती और हंसी-मजाक के साथ एक-दूसरे को मूर्ख बनाते हुए मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने मित्रों, पड़ोसियों और यहां तक कि घर के सदस्यों से भी बड़े ही विचित्र प्रकार के हंसी-मजाक, मूर्खतापूर्ण कार्य और धोखे में डालने वाले उपहार देकर आनंद लेते हैं।

यह दिन मूर्ख बनकर या मूर्ख बनाकर भी मन को सुख देता है। यही अनूठा भाव ही इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। मूर्ख बनने या बनाने का अर्थ ठगने या ठगाने से नहीं है वरन इसका संबंध थोडा-सा सुख और आनंद पाने की उन मानवीय भावनाओं से है, जिसके लिये हर व्यक्ति जीवन में दिन-रात जूझता है।

एक अप्रैल को किसी भी मित्र को मूर्ख बनाने का अपना अलग ही मजा है। कई बार तो मूर्ख बनने वाले को काफी कष्ट भी पहुंचता है। दौड़-धूप और काफी खर्च करने के पश्चात् ही वह बेचारा समझ जाता है कि उसे ‘अप्रैल फूल’ बनाया गया है। लेकिन दोस्तो आप लोग इस बात का ख्याल रखें कि आपके मजाक से किसी का बुरा न हो जाए।

मूर्ख दिवस के विषय में लोककथाएं

मूर्ख दिवस के विषय में संसार में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। हर कथा का मूल उद्देश्य है पूरे दिन को मनोरंजन के साथ व्यतीत करना। आइए आपको इस दिवस की कुछ कथाओं की जानकारी से अवगत कराते हैं।

बहुत पहले यूनान में मोक्सर नामक एक मजाकिया राजा था। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है। सुबह उसकी नींद टूटी तो स्वप्न ताजा हो गया। स्वप्न की बात पर वह जोर-जोर से हंसने लगा। रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया- ‘रात मैंने सपने में देखा कि एक चींटी ने मुझे जिन्दा निगल लिया है। सुन कर रानी भी हंसने लगी। तभी एक ज्योतिष ने आकर कहा, महाराज इस स्वप्न का अर्थ है- आज का दिन आप हंसी-मजाक व ठिठोली के साथ व्यतीत करें। उस दिन अप्रैल महीने की पहली तारीख थी। बस तब से लगातार एक हंसी-मजाक भरा दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा।

एक अन्य लोक कथा के अनुसार एक अप्सरा ने किसान से दोस्ती की और कहा- यदि तुम एक मटकी भर पानी एक ही सांस में पी जाओगे तो मैं तुम्हें वरदान दूंगी। मेहनतकश किसान ने तुरंत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। जब उसने वरदान वाली बात दोहराई तो अप्सरा बोली- ‘तुम बहुत भोल-भाले हो, आज से तुम्हें मैं यह वरदान देती हूं कि तुम अपनी चुटीली बातों द्वारा लोगों के बीच खूब हंसी-मजाक करोगे। अप्सरा का वरदान पाकर किसान ने लोगों को बहुत हंसाया, हंसने-हंसाने के कारण ही एक हंसी का पर्व जन्मा, जिसे हम मूर्ख दिवस के नाम से पुकारते हैं।

बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे, जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन खूब हंसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए।

उन दिनों स्पेन के राजा माउन्टो बेर थे। एक दिन उन्होंने घोषणा कराई कि जो सबसे सच्च झूठ लिख कर लाएगा, उसे ईनाम दिया जाएगा। प्रतियोगिता के दिन राजा के पास ‘सच्च झूठ’ के हजारों खत पहुंचे, लेकिन राजा किसी के खत से संतुष्ट नहीं थे, अंत में एक लड़की ने आकर कहा ‘महाराज मैं गूंगी और अंधी हूं’। सुन कर राजा चकराया और पूछा ‘क्या सबूत है कि तुम सचमुच अंधी हो, तब तेज-तर्राट किशोरी बोली महल के सामने जो पेड़ लगा है, वह आपको तो दिखाई दे रहा है, लेकिन मुझे नहीं।’ इस बात पर राजा खूब हंसा। उसने किशोरी के झूठे परिहास का ईनाम दिया और प्रजा के बीच घोषणा करवाई कि अब हम हर वर्ष पहली अप्रैल को मूर्ख दिवस का दिन मनाएंगे। तब से आज तक यह परम्परा चली आ रही है।

इसा पूर्व एथेंस नगर में चार मित्र रहते थे। इनमें से एक अपने को बहुत बुद्धिमान समझता था और दूसरों को नीचा दिखाने में उसको बहुत मजा आता था एक बार तीनों मित्रों ने मिल कर एक चाल सोची और उस से कहा कि कल रात में एक अनोखा सपना दिखायी दिया। सपने में हमने देखा की एक देवी हमारे समाने खड़ी हो कर कह रही है कि कल रात पहाड़ी की चोटी पर एक दिव्य ज्योति प्रकट होगी और मनचाहा वरदान देगी इसलिए तुम अपने सभी मित्रों के साथ वहाँ जरूर आना अपने को बुद्धिमान समझने वाले उस मित्र ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया। निश्चित समय पर पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया साथ ही कुछ और लोग भी उसके साथ यह तमाशा देखने के लिए पहुँच गए। और जिन्होंने यह बात बताई थी वह छिप कर सब तमाशा देख रहे थे। धीरे धीरे भीड़ बढऩे लगी और रात भी आकाश में चाँद तारे चमकने लगे पर उस दिव्य ज्योति के कहीं दर्शन नहीं हुए और न ही उनका कहीं नामों निशान दिखा कहते हैं उस दिन 1 अप्रैल था बस फिर तो एथेंस में हर वर्ष मूर्ख बनाने की प्रथा चल पड़ी बाद में धीरे धीरे दूसरे देशों ने भी इसको अपना लिया और अपने जानने वाले चिर -परिचितों को 1 अप्रैल को मूर्ख बनाने लगे। इस तरह मूर्ख दिवस का जन्म हुआ।

मूर्ख दिवस का विरोध

अप्रैल के मूर्ख दिवस को रोकने के लिए यूरोप के कई देश में समय समय पर अनेक कोशिश हुई, लाख विरोध के बावजूद यह दिवस मनाया जाता रहा है। अब तो लोगों ने 1 अप्रैल को परम्परा के रूप में ले लिया। इस दिवस को मनाने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस को हम इसलिए मनाते हैं ताकि मूर्खता जो मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है। वर्ष में एक बार सब आजाद हो कर हर तरह से इस दिवस को मनाये और इस दिवस पर जम कर हंसे। जिससे मन मस्तक में ऊर्जा का संचार पैदा हो।

कहावत है कि एक बार हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर चाँद और सूरज को धरती पर उतार कर दिखायेंगे। नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अद्भुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई। घंटो लोग इंतजार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नही दिखायी दिया उस दिन 1 अप्रैल था, लोग मूर्ख बन के वापस आ गए। आपका दिन भी खूब मजे से गुजरे हंसते हंसाते।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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