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अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी -रैदास

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अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी -रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
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रैदास की रचनाएँ
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अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

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व्याख्यान

है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ । जो चंदन और पानी में होता है । चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो , मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ । जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है , उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ । जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ । है प्रभु ! तुम दीपक हो , मैं तुम्हारी बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम जलता हूँ । प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो । मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ । तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है , उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ । हे प्रभु ! तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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