अमरावती मूर्तिकला

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मूर्तिकला की एक शैली, जो दक्षिण-पूर्वी भारत में लगभग दूसरी शताब्‍दी ई.पू. से तीसरी शताब्‍दी ई. तक सातवाहन वंश के शासनकाल में फली-फूली। यह अपने भव्‍य उभारदार भित्‍ति चित्रों के लिए जानी जाती है, जो संसार में कथात्‍मक मूर्तिकला का सर्वश्रेष्‍ठ उदाहरण है।

विशेषताएँ

  • अमरावती के विशाल स्तूप या स्‍मृति-टीले के खंडहरों के साथ-साथ यह शैली आंध्र प्रदेश के जगय्यापेट, नागार्जुनकोंडा और गोली में तथा महाराष्ट्र राज्‍य के तेर के स्‍तूप-अवशेषों में भी देखी जाती है। यह शैली श्रीलंका (अनुराधापुरा में) और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई भागों में भी फैली हुई है।
  • अमरावती स्‍तूप का निर्माण लगभग 200 ई.पू. में प्रारंभ किया गया था और उसमें कई बार नवीनीकरण तथा विस्‍तार हुए। यह स्‍तूप बौद्ध भारत में बनाए गए विशाल आकार के स्‍तूपों में से एक था।
  • इसका व्‍यास लगभग 50 मीटर तथा ऊंचाई 30 मीटर थी, जो अब अधिकांशत: नष्‍ट हो चुकी है। इसके कई पत्‍थर 19वीं सदी में स्‍थानीय ठेकेदारों द्वारा चूना बनाने के काम में ले लिए गए। बचे हुए अनेक कथात्‍मक उभरे चित्रफलक तथा सजावटी फलक अब चेन्नई के राजकीय संग्रहालय और लदंन के ब्रिटिश म्‍यूजियम में है।
  • लंदन में रखे एक चारदीवारी के पत्‍थर पर बनी इस स्‍मारक की एक प्रतिकृति में इसके दूसरी सदी के स्‍वरूप की झलक मिलती है। इसमें एक अर्द्धवत्‍ताकार नीचा स्‍तूप प्रदर्शित है, जो चारों ओर से सूक्ष्‍म नक्‍काशीदार रेलिंग से घिरा हुआ है। चारों दिशा बिंदु पांच-पांच स्‍तंभों से चिन्‍हित हैं, जबकि पुरानी शैली के तोरणों की जगह चारों प्रवेश द्वारों पर सिंह आकृति के शीर्ष वाले अलग-अलग खंभे स्‍थापित हैं।
  • इस क्षेत्र में पाए जाने वाले हरित-श्‍वेत चूने के पत्‍थर पर उभरे भित्‍ति चित्र उकेरे गए हैं। इनमें ज्‍यादातर बुद्ध के जीवन की घटनाएं या उनके पूर्व जन्‍मों की कथाएं (जातक कथाएं) चित्रित हैं। जिन चार शताब्‍दियों के भीतर यह शैली विकसित हुई, वही बुद्ध की अमूर्त से मूर्त प्रतिमाओं के विकास का भी काल था।
  • अमरावती में चित्रांकन की दोनों विधियां एक ही फलक पर साथ-साथ दिखाई देती हैं।
    • मूर्त रूप, जिसमें बैठे या खड़े हुए बुद्ध की प्रतिमा दिखाई गई है।
    • अमूर्त या प्रतीकात्‍मक रूप, जिसमें उनकी उपस्‍थिति का प्रतीक खाली सिंहासन है।


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