अमृत मंथन -रामधारी सिंह दिनकर
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अमृत मंथन -रामधारी सिंह दिनकर
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कवि | रामधारी सिंह दिनकर | |
मूल शीर्षक | 'अमृत मंथन' | |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन | |
ISBN | 9788180313363 | |
देश | भारत | |
पृष्ठ: | 191 | |
भाषा | हिन्दी | |
प्रकार | काव्य | |
टिप्पणी | 'अमृत मंथन' में दिनकरजी की कुछ कविताएँ तत्कालीन परिस्थितियों का दस्तावेज हैं। हिन्दी काव्य के स्वर्ण युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक एक उत्तम साधन है। |
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अमृत मंथन राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी कविताओं का संग्रह है। दिनकर जी हिन्दी के श्रेष्ठ कवि, लेखक और निबन्धकारों में गिने जाते हैं। पुस्तक 'अमृत मंथन' में दिनकर जी की कुछ कविताएँ तत्कालीन परिस्थितियों का दस्तावेज हैं। हिन्दी काव्य के स्वर्ण युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक एक उत्तम साधन है।
- पुस्तक 'अमृत मंथन' में रामधारी सिंह दिनकर की कुछ कविताएँ 1945 से 1948 के बीच लिखी गई थीं, जो तत्कालीन परिस्थितियों का दस्तावेज हैं तथा राष्ट्रकवि की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता को हमारे सामने लाती हैं।[1]
- इन कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तियों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ देशी एवं विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है।
- हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक उत्तम साधन है।
- कविताओं की विशेषता है इनकी प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और सहज भाव-संप्रेषण।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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