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*आंडाल 8 वीं शती ई.में दक्षिण [[भारत]] के [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]] आळवार भक्तों में एकमात्र नारी थी।
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*इनका एक प्रसिद्ध नाम 'गोदा' भी है।  
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'''आंडाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Andal'') [[दक्षिण भारत]] की प्रसिद्ध सन्त महिला थीं। वे [[आलवार|वैष्णव आलवार]] सन्तों में एकमात्र नारी थीं। उन्हें "दक्षिण की मीरा" कहा जाता है। उनका एक प्रसिद्ध नाम 'कौदे' भी है। [[तमिल भाषा|तमिल]] कवयित्री आंडाल की दोनों काव्य रचनाएँ- 'तिरुप्पवै' और 'नाच्चियार तिरुमोळि' आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।
*आंडाल को [[भारत|दक्षिण भारत]] की [[मीरा]] कहा जाता है।
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==परिचय==
*तमिल कवयित्री आंडाल की दोनों काव्य-रचनाएँ आज भी लोकप्रिय हैं-
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दक्षिण भारत की प्रसिद्ध संत कवयित्री आंडाल का समय नवीं शताब्दी ईसवी माना जाता है। इनका [[तमिल साहित्य]] में वही स्थान है, जो [[हिंदी]] में [[मीरां]] का है। आंडाल का बचपन का नाम 'कौदे' था। इनका पालन-पोषण [[मदुरा]] के विष्णुचित्र नामक एक [[विष्णु]] भक्त [[ब्राह्मण]] के घर में हुआ।
#तिरुप्पावै
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==किंवदंती==
#नाच्चियार तिरुमोळि
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कहा जाता है कि विष्णुचित्र के कोई संतान न थी। एक दिन फुलवारी सींचते समय उसे [[तुलसी]] के पौधे के नीचे यह सुंदर बालिका मिली। कौदे बचपन से ही बड़ी प्रतिभा संपन्न और विष्णु की [[भक्त]] थीं। विष्णु की मूर्ति के लिए जो [[पुष्प]] मालाएं पिता बनाते, यह चुपचाप पहले उनको पहन लिया करती थीं। इस प्रकार मूर्ति को झूठी तथा मुरझाई मालाएं चढ़ने लगीं। एक दिन आंडाल के पिता ने उसकी करतूत देख ली और उसे ऐसा करने से रोक दिया। किंतु जब वे बिना मुरझाई माला मूर्ति को पहनाने चले तो कहा जाता है कि वह उनके हाथ से गिर पड़ी और उसी समय मूर्ति से आवाज आई कि "मुझे तो आंडाल की पहनी माला ही चाहिए।" उसकी भक्ति का प्रभाव देखकर पिता उसे दर्शन कराने के लिए श्रीरंगम ले गए। वहां मूर्ति से सामना होते ही आंडाल एक ज्योति के रूप में मूर्ति में समा गई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=67|url=}}</ref>
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आंडाल की प्रतिमा

आंडाल (अंग्रेज़ी: Andal) दक्षिण भारत की प्रसिद्ध सन्त महिला थीं। वे वैष्णव आलवार सन्तों में एकमात्र नारी थीं। उन्हें "दक्षिण की मीरा" कहा जाता है। उनका एक प्रसिद्ध नाम 'कौदे' भी है। तमिल कवयित्री आंडाल की दोनों काव्य रचनाएँ- 'तिरुप्पवै' और 'नाच्चियार तिरुमोळि' आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।

परिचय

दक्षिण भारत की प्रसिद्ध संत कवयित्री आंडाल का समय नवीं शताब्दी ईसवी माना जाता है। इनका तमिल साहित्य में वही स्थान है, जो हिंदी में मीरां का है। आंडाल का बचपन का नाम 'कौदे' था। इनका पालन-पोषण मदुरा के विष्णुचित्र नामक एक विष्णु भक्त ब्राह्मण के घर में हुआ।

किंवदंती

कहा जाता है कि विष्णुचित्र के कोई संतान न थी। एक दिन फुलवारी सींचते समय उसे तुलसी के पौधे के नीचे यह सुंदर बालिका मिली। कौदे बचपन से ही बड़ी प्रतिभा संपन्न और विष्णु की भक्त थीं। विष्णु की मूर्ति के लिए जो पुष्प मालाएं पिता बनाते, यह चुपचाप पहले उनको पहन लिया करती थीं। इस प्रकार मूर्ति को झूठी तथा मुरझाई मालाएं चढ़ने लगीं। एक दिन आंडाल के पिता ने उसकी करतूत देख ली और उसे ऐसा करने से रोक दिया। किंतु जब वे बिना मुरझाई माला मूर्ति को पहनाने चले तो कहा जाता है कि वह उनके हाथ से गिर पड़ी और उसी समय मूर्ति से आवाज आई कि "मुझे तो आंडाल की पहनी माला ही चाहिए।" उसकी भक्ति का प्रभाव देखकर पिता उसे दर्शन कराने के लिए श्रीरंगम ले गए। वहां मूर्ति से सामना होते ही आंडाल एक ज्योति के रूप में मूर्ति में समा गई।[1]


एक अन्य विवरण के अनुसार आंडाल ने श्रीरंगनाथ के साथ बड़ी धूमधाम से अपना विवाह कराया। तदुपरांत वह श्रीरंगनाथ की शैया पर चढ़ गई। इस पर मंदिर में चतुर्दिक आलोक फैल गया और दर्शकों के देखते-देखते आंडाल मूर्ति में समा गई। उनके विवाह का उत्सव दक्षिण के वैष्णव मंदिर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। आंडाल की गणना दक्षिण भारत के प्रमुख आलवार संतों में होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 67 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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