इन्द्र तृतीय

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

इन्द्र तृतीय (915-917 ई.) कृष्ण द्वितीय के बाद राष्ट्रकूट राज्य का स्वामी बना था। यह कृष्ण द्वितीय का पौत्र था। यद्यपि शासन की बागडोर उसके हाथों में सिर्फ़ चार वर्ष तक ही रही थी, किन्तु इतने कम समय में ही इन्द्र तृतीय ने विलक्षण पराक्रम का परिचय दे दिया था।

साम्राज्य विस्तार

इन्द्र तृतीय ने पाल वंश के देवपाल प्रथम को परास्त करके कन्नौज पर अधिकार कर लिया। उसने अपने अल्प शासन काल में ही साम्राज्य को काफ़ी विस्तार प्रदान कर दिया था। उसके समय में ही अल मसूदी अरब से भारत आया था। अल मसूदी ने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को 'भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक' कहा। इन्द्र तृतीय का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था- गुर्जर प्रतिहार तथा राजा महीपाल को परास्त करना। कन्नौज के प्रतापी सम्राट मिहिरभोज की मृत्यु 890 ई. में हो चुकी थी और उसके बाद निर्भयराज महेन्द्र (890-907 ई.) ने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को बहुत कुछ सम्भाले रखा था, लेकिन महेन्द्र के उत्तराधिकारी महीपाल के समय में कन्नौज की शक्ति घटना प्रारम्भ हो गई थी। इसीलिए राष्ट्रकूट राजा कृष्ण ने भी उस पर अनेक आक्रमण किए थे।

कन्नौज की विजय

इन्द्र तृतीय ने तो कन्नौज की शक्ति को जड़ से ही हिला दिया। उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर उत्तरी भारत पर आक्रमण किया और कन्नौज पर चढ़ाई कर इस प्राचीन नगरी का बुरी तरह से सत्यानाश किया। राजा महीपाल उसके सम्मुख असहाय था। इन्द्र ने प्रयाग तक उसका पीछा किया और राष्ट्रकूट सेनाओं के घोड़ों ने गंगा के जल द्वारा अपनी प्यास को शान्त किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख