इमामबाड़ा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

इमामबाड़ा - का सामान्य अर्थ है वह पवित्र स्थान या भवन जो विशेष रूप से हज़रत अली (हज़रत मुहम्मद के दामाद) तथा उनके बेटों, हसन और हुसेन, के स्मारक के रूप में बनाया जाता है। इमामबाड़ों में शिया संप्रदाय के मुसलमानों की मजलिसें और अन्य धार्मिक समारोह होते हैं। 'इमाम' मुसलमानों के धार्मिक नेता को कहते हैं। मुस्लिम जनसाधारण का पथप्रदर्शन करना, मस्जिद में सामूहिक नमाज़ का अग्रणी होना, खुत्बा, पढ़ना, धार्मिक नियमों के सिद्धांतों की अस्पष्ट समस्याओं को सुलझाना, व्यवस्था देना इत्यादि इमाम के कर्त्तव्य हैं। इस्लाम के दो मुख्य संप्रदायों में से 'शिया' के हज़रत मुहम्मद के बाद परम वंदनीय इमाम उपर्युक्त हज़रत अली और उनके दोनों बेटे हुए। वे विरोधी दल से अपने जन्मसिद्ध स्वत्वों के लिए संग्राम करते हुए बलिदान हुए थे। उनकी पुनीत स्मृति में शिया लोग हर वर्ष मुहर्रम के महीने में उनके घोड़े 'दुलदुल' के प्रतीक, एक विशेष घोड़े की पूजा करके और उन नेताओं की याद करके बड़ा शोक मनाते हैं तथा उनके प्रतीकस्वरूप ताजिए बनाकर उनका जुलूस निकालते हैं। ये ताजिए या तो कर्बला में गाड़ दिए जाते हैं या इमामबाड़ों में रख दिए जाते हैं। इसी अवसर पर इमामबाड़ों में उन शहीदों की स्मृति में उत्सव किए जाते हैं।

भारत में सबसे बड़े और हर दृष्टि से प्रसिद्ध इमामबड़े 18वीं सदी में अवध के नवाबों ने बनवाए थे। इनमें सर्वोत्तम तथा विशाल इमामबाड़ा हुसेनाबाद का है जो अपनी भव्यता तथा विशालता में भारत में ही नहीं, शायद संसार भर में अद्वितीय है। इस इमामबाड़े को अवध के चौथे नवाब वज़ीर आसफुद्दौला ने 1784 के घोर दुर्भिक्ष में दु:खी, दरिद्र जनता की रक्षा करने के हेतु बनवाया था। कहा जाता है, बहुत से उच्च घरानों के लोगों ने भी वेश बदलकर इस भवन बनानेवाले मजूरों में शमिल होकर अपने प्राणों की रक्षा की थी। आसफुद्दौला की मृत्यु होने पर उसे इसी इमामबाड़े में दफनाया गया था।

वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह इमामबाड़ा अत्यंत उत्तम कोटि का है। तत्कालीन अवध के वास्तु पर, विशेषतया अवध के नवाबों के भवनों पर यूरोपीय अपभ्रंशकाल के वास्तु का ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा था कि स्थापत्य के प्रकांड पंडित फर्र्गुसन महोदय ने प्राय: इन सब भवनों को सर्वथा निकृष्ट, भोंडा, और कुरूप बतलाया है। किंतु 'इमामबाड़े' हुसेनाबाद को उन्होंने इन स्मारकों में अपवाद माना है और उसकी उत्कृष्ट तथा विलक्षण निर्माणविधि एवं दृढ़ता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। आधुनिक भवनों की अपेक्षा इस इमामबाड़े की अखंडनीय दृढ़ता का प्रमाण उस समय मिला जब 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनों में पाँच महीने तक इस भवन पर निरंतर गोलाबारी होती रही और उसकी दीवारें गोलियों से छिद गई, फिर भी उस भवन को कोई हानि नहीं पहुँची। उसके समकालीन तथा पीछे के भवनों के बहुत से भाग धाराशायी हो चुके हैं, पर इस महाकाय भवन की एक ईट भी आज तक नहीं हिली हैं। 1857 ई. के बाद विजयी अंग्रेजाेेंं ने अत्यंत निर्दयता तथा निर्लज्जता से इस इमामबाड़े को बहुत दिनों तक सैनिक गोला-बारूद-घर के तौर पर प्रयुक्त किया, तो भी इसकी कोई हानि नहीं हुई।

यह इमामबाड़ा मच्छीभवन के अंदर स्थित है। इसका मुख्य अंग एक अति विशाल मंडप है जो 162 फुट लंबा और 53 फुट 5 इंच चौड़ा है। इसके दोनों ओर बरामदे हैं। इनमें एक 26 फुट 6 इंच और दूसरा 27 फुट, 3 इंच चौड़ा है। मंडप के दोनों टोकों पर अष्टकोण कमरे हैं जिनमें प्रत्येक का व्यास 53 फुट है। इस प्रकार समूचे भवन की लंबाई 268 फुट और चौड़ाई 106 फुट 9 इंच है। परंतु इसकी सबसे बडी विशेषता है इस मंडप का एकछाज आच्छादन या छत।[1]

यह अत्यंत स्थूल छत एक विचित्र युक्ति से बनाई गई है और अपनी दृढ़ता के कारण आज तक नई के समान विद्यमान है। ईट गारे का एक भारी ढूला बनाकर उसके ऊपर छोटी मोटी रोड़ियों और चूने के मसाले का कई फुट मोटा लदाव कर एक बरस तक सूखने के लिए छोड़ दिया गया। जब सूखकर समूचा लदाव एकजान होकर एक शिला के समान हो गया, तब नीचे से ढूले को निकाल दिया गया। इस छत के विषय में फर्गुसन का कहना है कि समूची छत एक शिला के समान हो जाने से, वह बिना किसी बाहरी सहारे अथवा दोसाही (एबटमेंट) के, ठहरी हुई है और निस्संदेह यह योरोपीय गॉर्थिक छतों की अपेक्षा, जो वास्तु के नियमों पर बनी हैं, अधिक पायेदार हैं। इसकी विशेषता यह भी है कि गॉथिक छतों से इसका निर्माण बहुत सुगम एवं सस्ता होता है, और यह किसी भी आकार में ढाली जा सकती है। इस इमामबाड़े पर 10 लाख रुपए व्यय हुए थे। इसके स्थपति किफायतुल्ला ने नवाब की इस शर्त को पूरा किया कि यह भवन संसार भर में अनुपम हो।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 536 |
  2. सं.ग्रं.-डिस्ट्रिक्ट गाजेटियर ऑव लखनऊ; जैम्स फर्गुसन: ए हिस्ट्री ऑव इंडियन ऐंड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, खंड 2; एनसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम।

संबंधित लेख