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उखीमठ [[केदारनाथ]] के निकट समुद्रतल से 4300 फुट ऊँचा एक छोटा कस्बा है। स्थानीय किंवदंती है कि [[उषा]]-[[अनिरुद्ध]] की प्रसिद्ध पौराणिक प्रणयकथा की घटना स्थली यही है। एक विशाल मंदिर में अनिरुद्ध और उषा की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित हैं। इनके साथ ही [[मांधाता]] की भी मूर्ति है। कहा जाता है कि केशव मंदिर में जो समुख [[शिवलिंग]] है वह कत्यूरी शासन के समय का है। मंदिर का वर्तमान भवन अधिक प्राचीन नहीं है। कहा जाता है कि स्थान का मूल नाम उषा या उषा मठ था जो बिगड़ कर उखी मठ हो गया। उषा वाणासुर की कन्या थी। उषा-अनिरुद्ध की सुंदर कथा का [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] 10,62 में सविस्तार वर्णन है जिसमें वाणासुर की राजधानी शोणितपुर में कही गई है। शोणितपुर का अभिज्ञान [[गोहाटी]] से किया गया है। उखीमठ से उषा की कहानी का संबंध तथ्य पर आधारित नहीं जान पड़ता। उखीमठ में पहले लकुलीश शैवों की प्रधानता थी। मंदिर की वास्तुकला पर दक्षिणी स्थापत्य का प्रभाव है जो इस ओर [[शंकराचार्य]] तथा उनके अनुवर्ती दक्षिणात्यों के साथ आया था।  
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उखीमठ [[उत्तराखंड]] के टिहरी गढ़वाल ज़िला में स्थित था। उखीमठ [[केदारनाथ]] के निकट समुद्रतल से 4300 फुट ऊँचा एक छोटा कस्बा है। स्थानीय किंवदंती है कि [[उषा]]-[[अनिरुद्ध]] की प्रसिद्ध पौराणिक प्रणयकथा की घटना स्थली यही है। एक विशाल मंदिर में अनिरुद्ध और उषा की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित हैं। इनके साथ ही [[मांधाता]] की भी मूर्ति है। कहा जाता है कि केशव मंदिर में जो समुख [[शिवलिंग]] है वह कत्यूरी शासन के समय का है। मंदिर का वर्तमान भवन अधिक प्राचीन नहीं है। कहा जाता है कि स्थान का मूल नाम उषा या उषा मठ था जो बिगड़ कर उखी मठ हो गया। उषा वाणासुर की कन्या थी। उषा-अनिरुद्ध की सुंदर कथा का [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] 10,62 में सविस्तार वर्णन है जिसमें वाणासुर की राजधानी शोणितपुर में कही गई है। शोणितपुर का अभिज्ञान [[गोहाटी]] से किया गया है। उखीमठ से उषा की कहानी का संबंध तथ्य पर आधारित नहीं जान पड़ता। उखीमठ में पहले लकुलीश शैवों की प्रधानता थी। मंदिर की वास्तुकला पर दक्षिणी स्थापत्य का प्रभाव है जो इस ओर [[शंकराचार्य]] तथा उनके अनुवर्ती दक्षिणात्यों के साथ आया था।  
  
 
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उखीमठ उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िला में स्थित था। उखीमठ केदारनाथ के निकट समुद्रतल से 4300 फुट ऊँचा एक छोटा कस्बा है। स्थानीय किंवदंती है कि उषा-अनिरुद्ध की प्रसिद्ध पौराणिक प्रणयकथा की घटना स्थली यही है। एक विशाल मंदिर में अनिरुद्ध और उषा की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित हैं। इनके साथ ही मांधाता की भी मूर्ति है। कहा जाता है कि केशव मंदिर में जो समुख शिवलिंग है वह कत्यूरी शासन के समय का है। मंदिर का वर्तमान भवन अधिक प्राचीन नहीं है। कहा जाता है कि स्थान का मूल नाम उषा या उषा मठ था जो बिगड़ कर उखी मठ हो गया। उषा वाणासुर की कन्या थी। उषा-अनिरुद्ध की सुंदर कथा का श्रीमद्भागवत 10,62 में सविस्तार वर्णन है जिसमें वाणासुर की राजधानी शोणितपुर में कही गई है। शोणितपुर का अभिज्ञान गोहाटी से किया गया है। उखीमठ से उषा की कहानी का संबंध तथ्य पर आधारित नहीं जान पड़ता। उखीमठ में पहले लकुलीश शैवों की प्रधानता थी। मंदिर की वास्तुकला पर दक्षिणी स्थापत्य का प्रभाव है जो इस ओर शंकराचार्य तथा उनके अनुवर्ती दक्षिणात्यों के साथ आया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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