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[[चित्र:Anthony Gonsalves.jpg|right|250px|एंथोनी गोंजाल्विस]]
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'''एंथोनी गोंजाल्विस''' (जन्म-1928, [[गोवा]]; मृत्यु- 19 जनवरी, 2012) न केवल भारतीय [[संगीत]] बल्कि पश्चिमी संगीत के भी उस्ताद थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की थी। एंथोनी गोंजाल्विस का पूरा नाम 'प्रभु गोंजाल्विस' था। वे मशहूर संगीत निर्देशक आर.डी. बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी में प्यारेलाल के गुरू थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने 1950 और 1960 के दशक की कई मशहूर फ़िल्मों के संगीत में योगदान दिया था, जिनमें 'महल', 'नया दौर' और 'दिल्लगी' उल्लेखनीय हैं। उनकी गिनती अपने ज़माने के बेहद मशहूर वायलिन वादकों में होती थी और उन्होंने संगीतकार एस.डी. बर्मन के साथ काफ़ी काम किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने संगीतकार अनिल विश्वास, ग़ुलाम हैदर, सलिल चौधरी और मदन मोहन के साथ भी काम किया।
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'''एंथोनी गोंज़ाल्विस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anthony Gonsalves'', जन्म-[[1928]], [[गोवा]]; मृत्यु- [[19 जनवरी]], [[2012]]) न केवल भारतीय [[संगीत]] बल्कि पश्चिमी संगीत के भी उस्ताद थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की थी। एंथोनी गोंज़ाल्विस का पूरा नाम 'प्रभु गोंज़ाल्विस' था। वे मशहूर संगीत निर्देशक [[राहुल देव बर्मन|आर.डी. बर्मन]] और [[लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल]] की जोड़ी में प्यारेलाल के गुरु थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने [[1950]] और [[1960]] के दशक की कई मशहूर फ़िल्मों के संगीत में योगदान दिया था, जिनमें 'महल', '[[नया दौर]]' और 'दिल्लगी' उल्लेखनीय हैं। उनकी गिनती अपने ज़माने के बेहद मशहूर वायलिन वादकों में होती थी और उन्होंने संगीतकार एस. डी. बर्मन के साथ काफ़ी काम किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने संगीतकार अनिल विश्वास, ग़ुलाम हैदर, [[सलिल चौधरी]] और मदन मोहन के साथ भी काम किया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
एंथोनी गोंजाल्विस का जन्म 1928 ई. में दक्षिण [[गोवा]] में 'मजोर्दा' के एक गाँव में पैदा हुआ था। इनके परिवार में उनकी पत्नी मेलिता, पुत्र किरन एवं पुत्री लक्ष्मी हैं। वे 1943 में जब [[मुम्बई]] आए थे, तब बहुत छोटे थे। अपने गाँव का ये नन्हा वायलिनवादक 'ज्योति कलश छलके' में अपने जादूई संगीत के साथ दुनिया के सामने आया। फ़िल्म 'प्यासा' का गीत 'हम आपकी आंखों में' और 'महल' का गीत 'आएगा आने वाला' को उनके बेहतरीन कार्यों में गिना जाता है। भारतीय और पश्चिमी संगीत दोनों पर उन्हें समान रूप से महारत हासिल थी। उन्होंने आर.डी. बर्मन जैसे लोगों को संगीत की बारीकियाँ सिखाईं, तो लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल की जोड़ी के एक सितारे प्यारेलाल को यह हुनर समझाया कि किसी गाने को बरसों तक गुनगुनाने लायक ताजा बनाए रखने के लिए क्या कुछ ज़रूरी होता है। यह अकारण नहीं है कि वर्ष 1977 में आई [[हिन्दी]] फ़िल्म '''अमर अकबर एंथोनी''' में संगीत निर्देशक लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने जिस गीत ('''माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विस''') को धुन दी, वह उन्हीं को समर्पित थी। इस फ़िल्म ने [[अमिताभ बच्चन]] को नई बुलन्दियाँ दीं। अमिताभ बच्चन इस फ़िल्म में जिस चरित्र की भूमिका निभा रहे थे, उसका नाम भी एंथोनी ही था।
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एंथोनी गोंज़ाल्विस का जन्म 1928 ई. में दक्षिण [[गोवा]] में 'मजोर्दा' के एक गाँव में पैदा हुआ था। इनके परिवार में उनकी पत्नी मेलिता, पुत्र किरन एवं पुत्री लक्ष्मी हैं। वे [[1943]] में जब [[मुम्बई]] आए थे, तब बहुत छोटे थे। अपने गाँव का ये नन्हा वायलिनवादक 'ज्योति कलश छलके' में अपने जादूई संगीत के साथ दुनिया के सामने आया। फ़िल्म 'प्यासा' का गीत 'हम आपकी आंखों में' और 'महल' का गीत 'आएगा आने वाला' को उनके बेहतरीन कार्यों में गिना जाता है। भारतीय और पश्चिमी संगीत दोनों पर उन्हें समान रूप से महारत हासिल थी। उन्होंने आर.डी. बर्मन जैसे लोगों को संगीत की बारीकियाँ सिखाईं, तो लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल की जोड़ी के एक सितारे प्यारेलाल को यह हुनर समझाया कि किसी गाने को बरसों तक गुनगुनाने लायक़ ताजा बनाए रखने के लिए क्या कुछ ज़रूरी होता है। यह अकारण नहीं है कि वर्ष [[1977]] में आई [[हिन्दी]] फ़िल्म '''अमर अकबर एंथोनी''' में संगीत निर्देशक लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने जिस गीत ('''माई नेम इज एंथोनी गोंज़ाल्विस''') को धुन दी, वह उन्हीं को समर्पित थी। इस फ़िल्म ने [[अमिताभ बच्चन]] को नई बुलन्दियाँ दीं। अमिताभ बच्चन इस फ़िल्म में जिस चरित्र की भूमिका निभा रहे थे, उसका नाम भी एंथोनी ही था।
 
====सफलता का सिलसिला====
 
====सफलता का सिलसिला====
1950 के दशक में एंथोनी गोंजाल्विस उस समय चर्चा में आए, जब वायलिन के बहाने उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत परम्परा की विरासत के बहुविध आयामों को मिलाकर एक ख़ास किस्म का रंग और आकार दिया। 1943 में उन्हें पहला ब्रेक संगीतकार नौशाद ने दिया। वह उनकी टीम में शामिल हो गये। लेकिन किस्सा यहीं समाप्त नहीं होता। किस्सा यहाँ से शुरू होता है। उन्हें इसके बाद आर.डी. बर्मन और प्यारेलाल रामप्रसाद वर्मा (जो बाद में संगीतकार प्यारेलाल के नाम से मशहूर हुए) को पढ़ाने का जिम्मा मिला। यही वह कालखण्ड था, जब एंथोनी गोंजाल्विस ने फ़िल्म इंडस्ट्री की एक से एक हस्तियों के साथ काम किया। उनकी फ़िल्मों को अपने वायलिन वाद से समृद्ध किया, उन्हें बाज़ार में टिके रहने लायक खाद-पानी मुहैया कराया। यह सिलसिला लगभग दो दशक तक चला। बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म 'नया दौर' रही हो या 'वक्त', नौशाद की 'दिल्लगी' रही हो या चेतन आनन्द की 'हकीकत', एंथोनी गोंजाल्विस का जादू हर जगह सिर चढ़कर बोला।
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1950 के दशक में एंथोनी गोंज़ाल्विस उस समय चर्चा में आए, जब वायलिन के बहाने उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत परम्परा की विरासत के बहुविध आयामों को मिलाकर एक ख़ास किस्म का रंग और आकार दिया। 1943 में उन्हें पहला ब्रेक संगीतकार [[नौशाद]] ने दिया। वह उनकी टीम में शामिल हो गये। लेकिन किस्सा यहीं समाप्त नहीं होता। किस्सा यहाँ से शुरू होता है। उन्हें इसके बाद आर.डी. बर्मन और प्यारेलाल रामप्रसाद वर्मा (जो बाद में संगीतकार प्यारेलाल के नाम से मशहूर हुए) को पढ़ाने का जिम्मा मिला। यही वह कालखण्ड था, जब एंथोनी गोंज़ाल्विस ने फ़िल्म इंडस्ट्री की एक से एक हस्तियों के साथ काम किया। उनकी फ़िल्मों को अपने वायलिन वाद से समृद्ध किया, उन्हें बाज़ार में टिके रहने लायक़ खाद-पानी मुहैया कराया। यह सिलसिला लगभग दो दशक तक चला। [[बी.आर. चोपड़ा]] की फ़िल्म 'नया दौर' रही हो या 'वक्त', नौशाद की 'दिल्लगी' रही हो या [[चेतन आनंद (निर्देशक)|चेतन आनन्द]] की 'हकीकत', एंथोनी गोंज़ाल्विस का जादू हर जगह सिर चढ़कर बोला।
 
==संगीत से अवकाश==
 
==संगीत से अवकाश==
एंथोनी गोंजाल्विस ने 1958 में गोवा में इंडियन 'सिंफ़नी आर्केस्ट्रा' की स्थापना की और [[लता मंगेशकर]] और मन्ना डे जैसे लोगों को अपने कार्यक्रम में बुलाया। यह आयोजन 'सेंट जेवियर्स कालेज', मापुसा में हुआ था। 1965 में एंथोनी गोंजाल्विस ने [[मुम्बई]] की फ़िल्म इंडस्ट्री को सलाम कह दिया। वह [[अमेरिका]] चले गए। 'अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ कंपोजर्स' ने उन्हें अपना सम्मानित सदस्य बनाया, लेकिन उनका मन वहाँ नहीं रमा। वह [[भारत]] लौट आए, लेकिन मुम्बई नहीं गए। उसकी जगह उन्होंने अपने गाँव में ही रहना पसन्द किया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 'महल' (1947), 'ढोलक' (1950) और 'पहली नजर' (1945) [[हिन्दी]] सिनेमा की वह यादगार फ़िल्में हैं, जिनका [[संगीत]] एंथोनी गोंजाल्विस ने ही कंपोज किया था।
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[[चित्र:Anthony Gonsalves.1.JPG|thumb|left|200px|युवा एंथोनी गोंज़ाल्विस]]
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एंथोनी गोंज़ाल्विस ने [[1958]] में गोवा में इंडियन 'सिंफ़नी आर्केस्ट्रा' की स्थापना की और [[लता मंगेशकर]] और मन्ना डे जैसे लोगों को अपने कार्यक्रम में बुलाया। यह आयोजन 'सेंट जेवियर्स कालेज', मापुसा में हुआ था। [[1965]] में एंथोनी गोंज़ाल्विस ने [[मुम्बई]] की फ़िल्म इंडस्ट्री को सलाम कह दिया। वह [[अमेरिका]] चले गए। 'अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ कंपोजर्स' ने उन्हें अपना सम्मानित सदस्य बनाया, लेकिन उनका मन वहाँ नहीं रमा। वह [[भारत]] लौट आए, लेकिन मुम्बई नहीं गए। उसकी जगह उन्होंने अपने गाँव में ही रहना पसन्द किया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 'महल' ([[1947]]), 'ढोलक' ([[1950]]) और 'पहली नजर' ([[1945]]) [[हिन्दी]] सिनेमा की वह यादगार फ़िल्में हैं, जिनका [[संगीत]] एंथोनी गोंज़ाल्विस ने ही कंपोज किया था।
 
====निधन====
 
====निधन====
एंथोनी गोंजाल्विस माया नगरी [[मुम्बई]] का एक ऐसा ही चेहरा था, जो समय के साथ भी बजता रहा और समय के पार भी बजेगा। जब भी [[अमिताभ बच्चन]], आर.डी. बर्मन और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जैसी जोड़ियों की चर्चा होगी, एक दरीचा इस नाम की ओर भी खुलेगा। वायलिन के बूते हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में [[गोवा]] की विरासत के [[रंग]] भरने वाले इस संगीतकार का 19 जनवरी, 2012 (बुधवार) को निधन हो गया। एंथोनी गोंजाल्विस लम्बे समय से निमोनिया से पीड़ित थे और उनका इलाज 'गोवा मेडिकल कॉलेज' से चल रहा था। उनके निधन से न केवल फ़िल्मी दुनिया ने बल्कि भारतीय संगीत परम्परा ने भी अपना एक मजबूत सेतु खो दिया।
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एंथोनी गोंज़ाल्विस माया नगरी [[मुम्बई]] का एक ऐसा ही चेहरा था, जो समय के साथ भी बजता रहा और समय के पार भी बजेगा। जब भी [[अमिताभ बच्चन]], [[राहुल देव बर्मन|आर.डी. बर्मन]] और [[लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल]] जैसी जोड़ियों की चर्चा होगी, एक दरीचा इस नाम की ओर भी खुलेगा। वायलिन के बूते [[शास्त्रीय संगीत|हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] में [[गोवा]] की विरासत के [[रंग]] भरने वाले इस संगीतकार का [[19 जनवरी]], [[2012]] ([[बुधवार]]) को निधन हो गया। एंथोनी गोंज़ाल्विस लम्बे समय से निमोनिया से पीड़ित थे और उनका इलाज 'गोवा मेडिकल कॉलेज' से चल रहा था। उनके निधन से न केवल फ़िल्मी दुनिया ने बल्कि भारतीय संगीत परम्परा ने भी अपना एक मज़बूत सेतु खो दिया।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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*आभार 'राष्ट्रीय सहारा', दिनाँक 20 जनवरी, 2012.
 
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==संबंधित लेख==
 
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05:48, 19 जनवरी 2018 का अवतरण

एंथनी गोंज़ाल्विस
एंथनी गोंज़ाल्विस
पूरा नाम प्रभु गोंज़ाल्विस
प्रसिद्ध नाम एंथनी गोंज़ाल्विस
जन्म 1928 ई.
जन्म भूमि 'मजोर्दा गाँव, गोवा, भारत
मृत्यु 19 जनवरी, 2012 (उम्र 84 वर्ष)
मृत्यु स्थान गोवा मेडिकल कॉलेज, गोवा
पति/पत्नी मेलिता
संतान पुत्र- किरन, पुत्री- लक्ष्मी
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीत
मुख्य फ़िल्में 'महल', 'नया दौर', 'दिल्लगी' आदि।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी फ़िल्म 'अमर अकबर एंथोनी' का गीत 'माई नेम इज एंथोनी गोंज़ाल्विस', एंथोनी गोंज़ाल्विस को ही समर्पित था, जिसने अमिताभ बच्चन को नई बुलन्दियाँ प्रदान कीं।

एंथोनी गोंज़ाल्विस (अंग्रेज़ी: Anthony Gonsalves, जन्म-1928, गोवा; मृत्यु- 19 जनवरी, 2012) न केवल भारतीय संगीत बल्कि पश्चिमी संगीत के भी उस्ताद थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की थी। एंथोनी गोंज़ाल्विस का पूरा नाम 'प्रभु गोंज़ाल्विस' था। वे मशहूर संगीत निर्देशक आर.डी. बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी में प्यारेलाल के गुरु थे। एक संगीतकार के रूप में उन्होंने 1950 और 1960 के दशक की कई मशहूर फ़िल्मों के संगीत में योगदान दिया था, जिनमें 'महल', 'नया दौर' और 'दिल्लगी' उल्लेखनीय हैं। उनकी गिनती अपने ज़माने के बेहद मशहूर वायलिन वादकों में होती थी और उन्होंने संगीतकार एस. डी. बर्मन के साथ काफ़ी काम किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने संगीतकार अनिल विश्वास, ग़ुलाम हैदर, सलिल चौधरी और मदन मोहन के साथ भी काम किया।

परिचय

एंथोनी गोंज़ाल्विस का जन्म 1928 ई. में दक्षिण गोवा में 'मजोर्दा' के एक गाँव में पैदा हुआ था। इनके परिवार में उनकी पत्नी मेलिता, पुत्र किरन एवं पुत्री लक्ष्मी हैं। वे 1943 में जब मुम्बई आए थे, तब बहुत छोटे थे। अपने गाँव का ये नन्हा वायलिनवादक 'ज्योति कलश छलके' में अपने जादूई संगीत के साथ दुनिया के सामने आया। फ़िल्म 'प्यासा' का गीत 'हम आपकी आंखों में' और 'महल' का गीत 'आएगा आने वाला' को उनके बेहतरीन कार्यों में गिना जाता है। भारतीय और पश्चिमी संगीत दोनों पर उन्हें समान रूप से महारत हासिल थी। उन्होंने आर.डी. बर्मन जैसे लोगों को संगीत की बारीकियाँ सिखाईं, तो लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल की जोड़ी के एक सितारे प्यारेलाल को यह हुनर समझाया कि किसी गाने को बरसों तक गुनगुनाने लायक़ ताजा बनाए रखने के लिए क्या कुछ ज़रूरी होता है। यह अकारण नहीं है कि वर्ष 1977 में आई हिन्दी फ़िल्म अमर अकबर एंथोनी में संगीत निर्देशक लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने जिस गीत (माई नेम इज एंथोनी गोंज़ाल्विस) को धुन दी, वह उन्हीं को समर्पित थी। इस फ़िल्म ने अमिताभ बच्चन को नई बुलन्दियाँ दीं। अमिताभ बच्चन इस फ़िल्म में जिस चरित्र की भूमिका निभा रहे थे, उसका नाम भी एंथोनी ही था।

सफलता का सिलसिला

1950 के दशक में एंथोनी गोंज़ाल्विस उस समय चर्चा में आए, जब वायलिन के बहाने उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत परम्परा की विरासत के बहुविध आयामों को मिलाकर एक ख़ास किस्म का रंग और आकार दिया। 1943 में उन्हें पहला ब्रेक संगीतकार नौशाद ने दिया। वह उनकी टीम में शामिल हो गये। लेकिन किस्सा यहीं समाप्त नहीं होता। किस्सा यहाँ से शुरू होता है। उन्हें इसके बाद आर.डी. बर्मन और प्यारेलाल रामप्रसाद वर्मा (जो बाद में संगीतकार प्यारेलाल के नाम से मशहूर हुए) को पढ़ाने का जिम्मा मिला। यही वह कालखण्ड था, जब एंथोनी गोंज़ाल्विस ने फ़िल्म इंडस्ट्री की एक से एक हस्तियों के साथ काम किया। उनकी फ़िल्मों को अपने वायलिन वाद से समृद्ध किया, उन्हें बाज़ार में टिके रहने लायक़ खाद-पानी मुहैया कराया। यह सिलसिला लगभग दो दशक तक चला। बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म 'नया दौर' रही हो या 'वक्त', नौशाद की 'दिल्लगी' रही हो या चेतन आनन्द की 'हकीकत', एंथोनी गोंज़ाल्विस का जादू हर जगह सिर चढ़कर बोला।

संगीत से अवकाश

युवा एंथोनी गोंज़ाल्विस

एंथोनी गोंज़ाल्विस ने 1958 में गोवा में इंडियन 'सिंफ़नी आर्केस्ट्रा' की स्थापना की और लता मंगेशकर और मन्ना डे जैसे लोगों को अपने कार्यक्रम में बुलाया। यह आयोजन 'सेंट जेवियर्स कालेज', मापुसा में हुआ था। 1965 में एंथोनी गोंज़ाल्विस ने मुम्बई की फ़िल्म इंडस्ट्री को सलाम कह दिया। वह अमेरिका चले गए। 'अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ कंपोजर्स' ने उन्हें अपना सम्मानित सदस्य बनाया, लेकिन उनका मन वहाँ नहीं रमा। वह भारत लौट आए, लेकिन मुम्बई नहीं गए। उसकी जगह उन्होंने अपने गाँव में ही रहना पसन्द किया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 'महल' (1947), 'ढोलक' (1950) और 'पहली नजर' (1945) हिन्दी सिनेमा की वह यादगार फ़िल्में हैं, जिनका संगीत एंथोनी गोंज़ाल्विस ने ही कंपोज किया था।

निधन

एंथोनी गोंज़ाल्विस माया नगरी मुम्बई का एक ऐसा ही चेहरा था, जो समय के साथ भी बजता रहा और समय के पार भी बजेगा। जब भी अमिताभ बच्चन, आर.डी. बर्मन और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जैसी जोड़ियों की चर्चा होगी, एक दरीचा इस नाम की ओर भी खुलेगा। वायलिन के बूते हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गोवा की विरासत के रंग भरने वाले इस संगीतकार का 19 जनवरी, 2012 (बुधवार) को निधन हो गया। एंथोनी गोंज़ाल्विस लम्बे समय से निमोनिया से पीड़ित थे और उनका इलाज 'गोवा मेडिकल कॉलेज' से चल रहा था। उनके निधन से न केवल फ़िल्मी दुनिया ने बल्कि भारतीय संगीत परम्परा ने भी अपना एक मज़बूत सेतु खो दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • आभार 'राष्ट्रीय सहारा', दिनाँक 20 जनवरी, 2012.

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