एकदण्डी

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  • शंकराचार्य द्वारा स्थापित दसनामी संन्यासियों में से प्रथम तीन (तीर्थ, आश्रम एवं सरस्वती) विशेष सम्मान्य माने जाते हैं।
  • इनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित हो सकते हैं। शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दंड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं।
  • इसका दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दंड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं।
  • इन्हीं संन्यासियों को 'एकदण्डी' कहा जाता है।
  • इसके विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासी (जिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं) त्रिदण्ड धारण करते हैं।
  • दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डी' तथा 'त्रिदण्डी' नामों से पुकारा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 141 | डॉ. राजबली पाण्डेय |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ