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कल्याणी नगर, [[बीदर ज़िला]] ([[मैसूर]]) [[चालुक्य राजवंश|चालुक्यों]] की प्रसिद्ध राजधानी था। [[तुलजापुर]] से [[हैदराबाद]] जाने वाली सड़क पर अवस्थित है। प्रारम्भ में उत्तर चालुक्य काल में राज्य के पश्चिमी भाग की राजधानी थी। मैसूर राज्य के भारंगी नामक स्थान से प्राप्त पुलकेशियन चालुक्य के एक अभिलेख में कल्याणी का उल्लेख है।
 
==इतिहास==  
 
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पूर्व और उत्तर-चालुक्यकाल के बीच में राष्ट्रकूट नरेशों ने [[मलखेड़ कर्नाटक|मलखेड़]] नामक स्थान पर अपने राज्य की राजधानी बनाई थी किन्तु चालुक्य राज्य के पुररुद्धारक तैला (973-997 ई.) ने कल्याणी को पुनः राजधानी बनने का गौरव प्रदान किया। 11वीं शती में चालुक्यराज सोमेश्वर प्रथम के राजत्वकाल में कल्याणी की गणना परम समृद्धिशाली नगरों में की जाती थी। धर्मशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ मिताक्षरा का रचयिता विज्ञानेश्वर कल्याणी-नरेश विक्रमादित्य चालुक्य की राजसभा का रत्न था। 12वीं शती के मध्य में चालुक्यों का राज्य कलचुरीनरेशों द्वारा समाप्त कर दिया गया। इसके बाद से कल्याणी से राजधानी भी हटा ली गई।
 
पूर्व और उत्तर-चालुक्यकाल के बीच में राष्ट्रकूट नरेशों ने [[मलखेड़ कर्नाटक|मलखेड़]] नामक स्थान पर अपने राज्य की राजधानी बनाई थी किन्तु चालुक्य राज्य के पुररुद्धारक तैला (973-997 ई.) ने कल्याणी को पुनः राजधानी बनने का गौरव प्रदान किया। 11वीं शती में चालुक्यराज सोमेश्वर प्रथम के राजत्वकाल में कल्याणी की गणना परम समृद्धिशाली नगरों में की जाती थी। धर्मशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ मिताक्षरा का रचयिता विज्ञानेश्वर कल्याणी-नरेश विक्रमादित्य चालुक्य की राजसभा का रत्न था। 12वीं शती के मध्य में चालुक्यों का राज्य कलचुरीनरेशों द्वारा समाप्त कर दिया गया। इसके बाद से कल्याणी से राजधानी भी हटा ली गई।

11:57, 1 अक्टूबर 2010 का अवतरण

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कल्याणी नगर, बीदर ज़िला (मैसूर) चालुक्यों की प्रसिद्ध राजधानी था। तुलजापुर से हैदराबाद जाने वाली सड़क पर अवस्थित है। प्रारम्भ में उत्तर चालुक्य काल में राज्य के पश्चिमी भाग की राजधानी थी। मैसूर राज्य के भारंगी नामक स्थान से प्राप्त पुलकेशियन चालुक्य के एक अभिलेख में कल्याणी का उल्लेख है।

इतिहास

पूर्व और उत्तर-चालुक्यकाल के बीच में राष्ट्रकूट नरेशों ने मलखेड़ नामक स्थान पर अपने राज्य की राजधानी बनाई थी किन्तु चालुक्य राज्य के पुररुद्धारक तैला (973-997 ई.) ने कल्याणी को पुनः राजधानी बनने का गौरव प्रदान किया। 11वीं शती में चालुक्यराज सोमेश्वर प्रथम के राजत्वकाल में कल्याणी की गणना परम समृद्धिशाली नगरों में की जाती थी। धर्मशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ मिताक्षरा का रचयिता विज्ञानेश्वर कल्याणी-नरेश विक्रमादित्य चालुक्य की राजसभा का रत्न था। 12वीं शती के मध्य में चालुक्यों का राज्य कलचुरीनरेशों द्वारा समाप्त कर दिया गया। इसके बाद से कल्याणी से राजधानी भी हटा ली गई।

क़िले

कल्याणी के क़िले में मोहम्मद बिन तुग़लक के दो अभिलेख हैं। जिनमें कल्याणी को दिल्ली की सल्तनत का अंग बताया गया है। तत्पश्चात् कल्याणी बहमनी राज्य में सम्मिलित कर ली गई।

कल्याणी का विलय

बहमनी नरेशों ने कल्याणी के प्राचीन हिन्दू दुर्ग का युद्ध में गोलाबारी से रक्षा की दृष्टि से समुचित रूप में सुधार किया। बहमनी राज्य के विघटन के पश्चात् कल्याणी बरीदी सल्तनत के अंदर कुछ समय तक रही, किन्तु थोड़े ही समय के उपरांत यहाँ बीजापुर के आदिलशाही सुल्तानों का अधिकार हो गया। औरंगज़ेब का बीजापुर पर क़ब्ज़ा होने पर कल्याणी को मुग़ल सैनिकों ने खूब लूटा। तत्पश्चात् कल्याणी को मुग़ल साम्राज्य के बीदर नाम के सूबे में शामिल कर लिया गया।