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|अभिभावक=[[पिता]]- अब्दुल रहमान ख़ान, [[माता]]- इकबाल बेगम
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|पति/पत्नी=अज़रा ख़ान
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|संतान=सरफ़राज़ ख़ान, शाहनवाज़ ख़ान और  क्यूडस ख़ान 
 
|कर्म भूमि=[[मुम्बई]]
 
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|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]], संवाद लेखक, अध्यापक
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|कर्म-क्षेत्र=संवाद लेखक, अध्यापक
 
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|मुख्य फ़िल्में=बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, सनम तेरी कसम, नौकर बीबी का, शरारा, कैदी, घर एक मंदिर, वतन के रखवाले, खुदगर्ज, ख़ून भरी मांग, आंखे, शतरंज, कुली नंबर वन आदि
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|मुख्य फ़िल्में='बाप नंबरी बेटा दस नंबरी', 'सनम तेरी कसम', 'नौकर बीबी का', 'शरारा', 'कैदी', 'घर एक मंदिर', 'वतन के रखवाले', 'खुदगर्ज', 'ख़ून भरी मांग', 'आंखें', 'शतरंज', 'कुली नंबर 1', 'हीरो नंबर 1', 'दूल्हे राजा', 'राजा बाबू', 'चालबाज़' आदि।
 
|विषय=
 
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|शिक्षा=स्नातकोत्तर  
 
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|विद्यालय=इस्माइल यूसुफ़ कॉलेज, मुम्बई, उस्मानिया विश्वविद्यालय  
 
|विद्यालय=इस्माइल यूसुफ़ कॉलेज, मुम्बई, उस्मानिया विश्वविद्यालय  
 
|पुरस्कार-उपाधि=फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (बाप नंबरी बेटा दस नंबरी)
 
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|अन्य जानकारी= अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, धर्मकांटा, कुली, शराबी आदि फ़िल्मों में संवाद लिखे।
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|अन्य जानकारी=अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, धर्मकांटा, कुली, शराबी आदि फ़िल्मों में संवाद लिखे।
 
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'''कादर ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kader Khan'' जन्म- [[22 अक्तूबर]], [[1935]]) को [[भारतीय सिनेमा]] जगत में एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने सहनायक, संवाद लेखक, खलनायक, हास्य अभिनेता और चरित्र अभिनेता के तौर पर दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई।  खलनायक से लेकर हास्य अभिनेता तक हर किरदार में जान फूंक देने वाले कादर ख़ान अब तक 300 से ज्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके हैं लेकिन उनकी प्रतिभा यहीं नहीं थमती। वह 80 से अधिक लोकप्रिय फ़िल्मों के लिए संवाद लिख कर उस दिशा में भी अपना लोहा मनवा चुके हैं। कादर ख़ान के अभिनय की एक विशेषता यह है कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए उपयुक्त हैं। फ़िल्म 'कुली' एवं 'वर्दी' में एक ‘क्रूर खलनायक’ की भूमिका हो या फिर ‘कर्ज़ चुकाना है’, ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ फ़िल्म में भावपूर्ण अभिनय या फिर ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ और ‘प्यार का देवता’ जैसी फ़िल्मों में हास्य अभिनय इन सभी चरित्रों में उनका कोई जवाब नहीं है।
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'''कादर ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kader Khan'', जन्म- [[22 अक्तूबर]], [[1935]]- मृत्यु- [[31 दिसम्बर]], [[2018]]) को [[भारतीय सिनेमा]] जगत् में एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने सहनायक, संवाद लेखक, खलनायक, हास्य अभिनेता और चरित्र अभिनेता के तौर पर दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई।  खलनायक से लेकर हास्य अभिनेता तक हर किरदार में जान फूंक देने वाले कादर ख़ान अब तक 300 से ज्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा यहीं नहीं थमती। वह 80 से अधिक लोकप्रिय फ़िल्मों के लिए संवाद लिखकर उस दिशा में भी अपना लोहा मनवा चुके हैं। कादर ख़ान के अभिनय की एक विशेषता यह है कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए उपयुक्त हैं। फ़िल्म 'कुली' एवं 'वर्दी' में एक ‘क्रूर खलनायक’ की भूमिका हो या फिर ‘कर्ज़ चुकाना है’, ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ फ़िल्म में भावपूर्ण अभिनय या फिर ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ और ‘प्यार का देवता’ जैसी फ़िल्मों में हास्य अभिनय इन सभी चरित्रों में उनका कोई जवाब नहीं है।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
कादर ख़ान का जन्म [[22 अक्टूबर]], [[1935]] को [[बलूचिस्तान]] में हुआ था जो अब [[पाकिस्तान]] का हिस्सा है। [[भारत का विभाजन|भारत पाक बंटवारे]] के बाद उनका [[परिवार]] [[भारत]] में बस गया। कादर ख़ान ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई उस्मानिया विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने [[अरबी भाषा]] के प्रशिक्षण के लिये एक संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया। कादर ख़ान ने अपने कॅरियर की शुरूआत एक शिक्षक के तौर पर की। एक बार कॉलेज में हो रहे वार्षिक समारोह में कादर ख़ान को अभिनय करने का मौका मिला। एक बार कॉलेज में हो रहे वार्षिक समारोह में कादर ख़ान को अभिनय करने का मौका मिला। इस समारोह में अभिनेता [[दिलीप कुमार]] ने कादर ख़ान के अभिनय से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। यही कारण है कि कादर के अंदर एक शिक्षक, एक संवाद लेखक और एक अभिनेता तीनों एक साथ बसते हैं।<ref name="जागरण जंक्शन">{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/10/22/kader-khan-profile-in-hindi/ |title=कादर ख़ान : ऑलराउडर प्रतिभा के धनी |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=जागरण जंक्शन|language=हिंदी }} </ref>
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कादर ख़ान का जन्म [[22 अक्टूबर]], [[1935]] को [[बलूचिस्तान]] में हुआ था, जो अब [[पाकिस्तान]] का हिस्सा है। [[भारत का विभाजन|भारत पाक बंटवारे]] के बाद उनका [[परिवार]] [[भारत]] में बस गया। कादर ख़ान ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई उस्मानिया विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने [[अरबी भाषा]] के प्रशिक्षण के लिये एक संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया। कादर ख़ान ने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के तौर पर की। एक बार कॉलेज में हो रहे वार्षिक समारोह में कादर ख़ान को अभिनय करने का मौका मिला। इस समारोह में अभिनेता [[दिलीप कुमार]] ने कादर ख़ान के अभिनय से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। यही कारण है कि कादर के अंदर एक शिक्षक, एक संवाद लेखक और एक अभिनेता तीनों एक साथ बसते हैं।<ref name="जागरण जंक्शन">{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/10/22/kader-khan-profile-in-hindi/ |title=कादर ख़ान : ऑलराउडर प्रतिभा के धनी |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=जागरण जंक्शन|language=हिंदी }}</ref>
 
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==फ़िल्मी कैरियर==
==फ़िल्मी कॅरियर==
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महान अभिनेता [[दिलीप कुमार]] ने कादर ख़ान को अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। वर्ष [[1974]] में आई फ़िल्म ‘सगीना’ के बाद भी कादर ख़ान को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उनकी ‘दिल दीवाना’, ‘बेनाम’, ‘उमर कैद’, ‘अनाड़ी’ और बैराग जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं पहुंचा। वर्ष [[1977]] में कादर ख़ान की 'खून पसीना' और 'परवरिश' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। इन फ़िल्मों के जरिए वह कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।
दिलीप कुमार ने कादर ख़ान को अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। वर्ष 1974 में आई फ़िल्म ‘सगीना’ के बाद भी कादर ख़ान को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उनकी ‘दिल दीवाना’, ‘बेनाम’, ‘उमर कैद’, ‘अनाड़ी’ और बैराग जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं पहुंचा। वर्ष 1977 में कादर ख़ान की 'खून पसीना' और 'परवरिश' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। इन फ़िल्मों के जरिए वह कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।
 
 
====सफल फ़िल्में====
 
====सफल फ़िल्में====
फ़िल्म ‘खून पसीना’ और ‘परवरिश’ की सफलता के बाद कादर ख़ान को कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। जिनमें मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, अब्दुल्ला, दो और दो पांच, लूटमार, कुर्बानी, याराना, बुलंदी और नसीब जैसी बड़े बजट की फ़िल्में शामिल थी। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद कादर ख़ान ने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और बतौर खलनायक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
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फ़िल्म ‘खून पसीना’ और ‘परवरिश’ की सफलता के बाद कादर ख़ान को कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। जिनमें मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, अब्दुल्ला, दो और दो पांच, लूटमार, कुर्बानी, याराना, बुलंदी और नसीब जैसी बड़े बजट की फ़िल्में शामिल थी। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद कादर ख़ान ने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और बतौर खलनायक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। वर्ष [[1983]] में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कुली’ कादर ख़ान के करियर की सुपरहिट फ़िल्मों में शुमार की जाती है। मनमोहन देसाई के बैनर तले बनी इस फ़िल्म में [[अमिताभ बच्चन]] ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फ़िल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। इसके साथ ही कादर ख़ान फ़िल्म इंडस्ट्री के चोटी के खलनायकों की फेहरिस्त में शामिल हो गए। वर्ष [[1990]] में प्रदर्शित फ़िल्म ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ कादर ख़ान के सिने करियर की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने बाप और बेटे की भूमिका निभाई जो ठग बनकर दूसरों को धोखा दिया करते हैं। फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने अपने कारनामों के जरिये दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया। फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये कादर ख़ान फ़िल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित भी किए गए।<ref name="जागरण जंक्शन"/>
वर्ष 1983 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कुली’ कादर ख़ान के करियर की सुपरहिट फ़िल्मों में शुमार की जाती है। मनमोहन देसाई के बैनर तले बनी इस फ़िल्म में [[अमिताभ बच्चन]] ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फ़िल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। इसके साथ ही कादर ख़ान फ़िल्म इंडस्ट्री के चोटी के खलनायकों की फेहरिस्त में शामिल हो गए।  
 
वर्ष 1990 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ कादर ख़ान के सिने करियर की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने बाप और बेटे की भूमिका निभाई जो ठग बनकर दूसरों को धोखा दिया करते है। फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने अपने कारनामों के जरिये दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया। फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये कादर ख़ान फ़िल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित भी किए गए।<ref name="जागरण जंक्शन"/>
 
 
====चरित्र अभिनेता====
 
====चरित्र अभिनेता====
नब्बे के दशक में कादर ख़ान ने अपने अभिनय को एकरूपता से बचाने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष 1992 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘अंगार’ में उन्होंने अंडर वर्ल्ड डॉन जहांगीर खान की भूमिका को रूपहले पर्दे पर साकार किया। दशक के अंतिम वर्षो में बतौर खलनायक कादर ख़ान की फ़िल्मों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसके बाद कादर ख़ान ने हास्य अभिनेता के तौर पर भी काम करना शुरू कर दिया। इस क्रम में वर्ष 1998 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘दुल्हे राजा’ में अभिनेता [[गोविंदा]] के साथ उनकी भूमिका दर्शको के बीच काफ़ी पसंद की गयी।  
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नब्बे के दशक में कादर ख़ान ने अपने अभिनय को एकरूपता से बचाने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष [[1992]] में प्रदर्शित फ़िल्म ‘अंगार’ में उन्होंने अंडर वर्ल्ड डॉन जहांगीर ख़ान की भूमिका को रूपहले पर्दे पर साकार किया। दशक के अंतिम वर्षो में बतौर ख़लनायक कादर ख़ान की फ़िल्मों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसके बाद कादर ख़ान ने हास्य अभिनेता के तौर पर भी काम करना शुरू कर दिया। इस क्रम में वर्ष [[1998]] में प्रदर्शित फ़िल्म ‘दूल्हे राजा’ में अभिनेता [[गोविंदा]] के साथ उनकी भूमिका दर्शकों के बीच काफ़ी पसंद की गयी।  
 
==प्रसिद्ध फ़िल्में==
 
==प्रसिद्ध फ़िल्में==
कादर ख़ान ने अपने सिने करियर में लगभग 300 फ़िल्मों में अभिनय किया है। उनकी अभिनीत फ़िल्मों में कुछ है मुक्ति, ज्वालामुखी, मेरी आवाज सुनो, जमाने को दिखाना है, सनम तेरी कसम, नौकर बीबी का, शरारा, कैदी, घर एक मंदिर, गंगवा, जान जानी जर्नादन, घर द्वार, तबायफ, पाताल भैरवी, इंसाफ की आवाज, स्वर्ग से सुंदर, वतन के रखवाले, खुदगर्ज, ख़ून भरी मांग, आंखे, शतरंज, कुली नंबर वन, जुड़वा, हीरो नंबर वन, बड़े मियां छोटे मियां, सूर्यवंशम, हसीना मान जाएगी, फंटूश आदि।
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कादर ख़ान ने अपने सिने करियर में लगभग 300 फ़िल्मों में अभिनय किया है। उनकी अभिनीत फ़िल्मों में मुक्ति, ज्वालामुखी, मेरी आवाज सुनो, जमाने को दिख़ाना है, सनम तेरी कसम, नौकर बीबी का, शरारा, कैदी, घर एक मंदिर, गंगवा, जान जानी जर्नादन, घर द्वार, तबायफ़, पाताल भैरवी, इंसाफ़ की आवाज़, स्वर्ग से सुंदर, वतन के रखवाले, खुदगर्ज़, ख़ून भरी मांग, आंखें, शतरंज, कुली नंबर 1, हीरो नंबर 1, जुड़वा, बड़े मियां छोटे मियां, दूल्हे राजा, राजा बाबू, चालबाज़, हसीना मान जाएगी, फंटूश आदि।
 
==शक्ति कपूर के साथ जोड़ी==
 
==शक्ति कपूर के साथ जोड़ी==
कादर ख़ान के सिने करियर में उनकी जोड़ी अभिनेता शक्ति कपूर के साथ काफ़ी पसंद की गयी। इन दोनों अभिनेताओं ने अब तक लगभग 100 फ़िल्मों में एक साथ काम किया है। उनकी जोड़ी वाली महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से कुछ इस प्रकार है- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, नसीब, लूटमार, हिम्मतवाला, महान, हैसियत, जस्टिस चौधरी, अक्लमंद, मकसद, मवाली, तोहफा, इंकलाब, कैदी, गिरफ्तार, घर संसार, धर्म अधिकारी, सिंहासन सोने पे सुहागा, मास्टरजी, इंसानियत के दुश्मन वक्त की आवाज, जैसी करनी वैसी भरनी, नाचने वाले गाने वाले, राजा बाबू आदि।<ref name="जागरण जंक्शन"/>
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कादर ख़ान के सिने करियर में उनकी जोड़ी अभिनेता शक्ति कपूर के साथ काफ़ी पसंद की गयी। इन दोनों अभिनेताओं ने अब तक लगभग 100 फ़िल्मों में एक साथ काम किया है। उनकी जोड़ी वाली महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से कुछ इस प्रकार हैं- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, नसीब, लूटमार, हिम्मतवाला, महान, हैसियत, जस्टिस चौधरी, अक्लमंद, मकसद, मवाली, तोहफा, इंकलाब, कैदी, गिरफ्तार, घर संसार, धर्म अधिकारी, सिंहासन, सोने पे सुहागा, मास्टरजी, इंसानियत के दुश्मन, वक्त की आवाज़, जैसी करनी वैसी भरनी, नाचने वाले गाने वाले, राजा बाबू आदि।<ref name="जागरण जंक्शन"/>
 
==संवाद लेखक==
 
==संवाद लेखक==
 
कादर ख़ान ने कई फ़िल्मों में संवाद लेखक के तौर पर भी काम किया है। इनमें खेल खेल में, रफूचक्कर, धरमवीर, अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, सनम तेरी कसम, धर्मकांटा, कुली, शराबी, गिरफ्तार, कर्मा, ख़ून भरी मांग, हत्या, हम, कुली नंबर वन, साजन चले ससुराल जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।
 
कादर ख़ान ने कई फ़िल्मों में संवाद लेखक के तौर पर भी काम किया है। इनमें खेल खेल में, रफूचक्कर, धरमवीर, अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, सनम तेरी कसम, धर्मकांटा, कुली, शराबी, गिरफ्तार, कर्मा, ख़ून भरी मांग, हत्या, हम, कुली नंबर वन, साजन चले ससुराल जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।
 
==अमिताभ को निर्देशित करने की अधूरी तमन्ना==  
 
==अमिताभ को निर्देशित करने की अधूरी तमन्ना==  
कादर ख़ान की [[अमिताभ बच्चन]] को लेकर फ़िल्म बनाने की तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। अभिनेता कादर ख़ान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई फ़िल्में कीं। अदालत, सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, नसीब और कुली जैसी बेहद कामयाब फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ काम किया। इसके अलावा कादर ख़ान ने अमर अकबर एंथनी, सत्ते पे सत्ता और शराबी जैसी फ़िल्मों के संवाद भी लिखे लेकिन कादर ख़ान अमिताभ बच्चन को लेकर खुद एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उनकी ये तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। कादर ने ये बात एक ख़ास बातचीत में बताई। उन्होंने बताया, मैं अमिताभ बच्चन, [[जया प्रदा]] और [[अमरीश पुरी]] को लेकर फ़िल्म 'जाहिल' बनाना चाहता था। उसका निर्देशन भी मैं खुद करना चाहता था लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंजूर था। कादर ख़ान ने बताया कि इसके फौरन बाद फ़िल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को जबरदस्त चोट लग गई और फिर वो महीनों अस्पताल में भर्ती रहे। अमिताभ के अस्पताल से वापस आने के बाद फिर कादर ख़ान अपनी दूसरी फ़िल्मों में बहुत ज्यादा व्यस्त हो गए और इधर अमिताभ बच्चन राजनीति में आ गए। उसके बाद कादर ख़ान और अमिताभ की जुगलबंदी वाली ये फ़िल्म हमेशा के लिए डब्बाबंद हो गई। अमिताभ की तारीफ करते हुए कादर ख़ान कहते हैं, वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।<ref name="नव भारत">{{cite web |url=http://www.navabharat.com/kadrkhan-she-wishes-unfulfilled.html |title=कादरखान की वो अधूरी ख्वाहिश |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=नव भारत|language=हिंदी }} </ref>
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कादर ख़ान की [[अमिताभ बच्चन]] को लेकर फ़िल्म बनाने की तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। अभिनेता कादर ख़ान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई फ़िल्में कीं। अदालत, सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, नसीब और कुली जैसी बेहद कामयाब फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ काम किया। इसके अलावा कादर ख़ान ने अमर अकबर एंथनी, सत्ते पे सत्ता और शराबी जैसी फ़िल्मों के संवाद भी लिखे, लेकिन कादर ख़ान अमिताभ बच्चन को लेकर खुद एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उनकी ये तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। कादर ने ये बात एक ख़ास बातचीत में बताई। उन्होंने कहा, मैं अमिताभ बच्चन, [[जया प्रदा]] और [[अमरीश पुरी]] को लेकर फ़िल्म 'जाहिल' बनाना चाहता था। उसका निर्देशन भी मैं खुद करना चाहता था लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंजूर था। कादर ख़ान ने बताया कि इसके फौरन बाद फ़िल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को जबरदस्त चोट लग गई और फिर वो महीनों अस्पताल में भर्ती रहे। अमिताभ के अस्पताल से वापस आने के बाद फिर कादर ख़ान अपनी दूसरी फ़िल्मों में बहुत ज्यादा व्यस्त हो गए और इधर अमिताभ बच्चन राजनीति में आ गए। उसके बाद कादर ख़ान और अमिताभ की जुगलबंदी वाली ये फ़िल्म हमेशा के लिए डब्बाबंद हो गई। अमिताभ की तारीफ़ करते हुए कादर ख़ान कहते हैं, वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।<ref name="नव भारत">{{cite web |url=http://www.navabharat.com/kadrkhan-she-wishes-unfulfilled.html |title=कादरख़ान की वो अधूरी ख्वाहिश |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=नव भारत|language=हिंदी }} </ref>
 
==वर्तमान में==
 
==वर्तमान में==
कादर ख़ान कुछ सालों से फ़िल्मों से दूर हो गए हैं। इसकी वजह बताते हुए वो कहते हैं, वक्त के साथ फ़िल्में भी बदल गई हैं। अब ऐसे दौर में मैं अपने आपको फिट नहीं पाता। मेरे लिए बदलते दौर के साथ खुद को बदलना संभव नहीं है, तो मैंने अपने आपको फ़िल्मों से अलग कर लिया। कादर ख़ान ने ये भी कहा कि मौजूदा दौर के कलाकारों की भाषा पर पकड़ नहीं है और ये बात उन्हें दुखी करती है। 70 के दशक में अमिताभ बच्चन की कुछ फ़िल्मों जैसे सुहाग, अमर अकबर एंथनी और मुकद्दर का सिकंदर में कादर ख़ान की कलम से लिखे संवाद काफ़ी मशहूर हुए, लेकिन कादर ख़ान को इस बात का दुख है कि उन फ़िल्मों में नायक जिस चालू मुंबइया भाषा का इस्तेमाल करता है वही बाद की फ़िल्मों की मुख्य भाषा बन गई और फिर धीरे-धीरे उसकी आड़ में फ़िल्मों की भाषा खराब होती चली गई। वो कुछ दोष अपने आपको भी देते हैं। कादर ख़ान ने 80 के दशक में जीतेंद्र, मिथुन और 90 के दशक में गोविंदा के साथ भी कई फ़िल्में कीं। वो अपने दौर को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। उनके मुताबिक असरानी, शक्ति कपूर, गोविंदा, जीतेंद्र और अरुणा ईरानी के साथ की गई उनकी कई फ़िल्में और इन कलाकारों के साथ बिताया वक्त उन्हें बहुत याद आता है। कादर ख़ान ने बताया कि खासतौर पर वो [[असरानी]] के जबरदस्त प्रशंसक हैं, जिनके साथ उन्होंने कई फ़िल्में कीं। फिलहाल कादर ख़ान अपने बेटों के थिएटर ग्रुप और उनके प्ले में व्यस्त हैं। उनके बेटे सरफराज खान और शाहनवाज खान, अपने पिता के लिखे दो नाटकों का मंचन कर रहे हैं। इन नाटकों के नाम है मेहरबां कैसे-कैसे और लोकल ट्रेन। ये दोनों ही नाटक राजनीतिक व्यंग्य हैं।<ref name="नव भारत"/>
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कादर ख़ान कुछ सालों से फ़िल्मों से दूर हो गए हैं। इसकी वजह बताते हुए वो कहते हैं, वक्त के साथ फ़िल्में भी बदल गई हैं। अब ऐसे दौर में मैं अपने आपको फिट नहीं पाता। मेरे लिए बदलते दौर के साथ खुद को बदलना संभव नहीं है, तो मैंने अपने आपको फ़िल्मों से अलग कर लिया। कादर ख़ान ने ये भी कहा कि मौजूदा दौर के कलाकारों की भाषा पर पकड़ नहीं है और ये बात उन्हें दुखी करती है। 70 के दशक में अमिताभ बच्चन की कुछ फ़िल्मों जैसे सुहाग, अमर अकबर एंथनी और मुकद्दर का सिकंदर में कादर ख़ान की कलम से लिखे संवाद काफ़ी मशहूर हुए, लेकिन कादर ख़ान को इस बात का दु:ख है कि उन फ़िल्मों में नायक जिस चालू मुंबइया भाषा का इस्तेमाल करता है वही बाद की फ़िल्मों की मुख्य भाषा बन गई और फिर धीरे-धीरे उसकी आड़ में फ़िल्मों की भाषा खराब होती चली गई। वो कुछ दोष अपने आपको भी देते हैं। कादर ख़ान ने 80 के दशक में जीतेंद्र, [[मिथुन चक्रवर्ती|मिथुन]] और 90 के दशक में गोविंदा के साथ भी कई फ़िल्में कीं। वो अपने दौर को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। उनके मुताबिक असरानी, शक्ति कपूर, गोविंदा, जीतेंद्र और अरुणा ईरानी के साथ की गई उनकी कई फ़िल्में और इन कलाकारों के साथ बिताया वक्त उन्हें बहुत याद आता है। कादर ख़ान ने बताया कि ख़ासतौर पर वो [[असरानी]] के जबरदस्त प्रशंसक हैं, जिनके साथ उन्होंने कई फ़िल्में कीं। फिलहाल कादर ख़ान अपने बेटों के थिएटर ग्रुप और उनके प्ले में व्यस्त हैं। उनके बेटे सरफ़राज ख़ान और शाहनवाज ख़ान, अपने पिता के लिखे दो नाटकों का मंचन कर रहे हैं। इन नाटकों के नाम है मेहरबां कैसे-कैसे और लोकल ट्रेन। ये दोनों ही नाटक राजनीतिक व्यंग्य हैं।<ref name="नव भारत"/>
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==निधन==
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कादर ख़ान के बेटे सरफ़राज़ ने बताया, ‘मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए। लंबी बीमारी के बाद 31 दिसम्बर शाम छह बजे (कनाडाई समय) उनका निधन हो गया। वह दोपहर को कोमा में चले गए थे। वह पिछले 16-17 हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे।’ 81 वर्षीय कादर ख़ान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वह कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती थे। उनके बेटे ने बताया कि अभिनेता का अंतिम संस्कार भी वहीं किया जाएगा।<ref>{{cite web |url=http://thewirehindi.com/67635/veteran-actor-and-script-writer-kader-khan-passes-away/|title=मशहूर अभिनेता और लेखक कादर ख़ान का निधन |accessmonthday=5 जनवरी |accessyear=2019 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=द वायर|language=हिंदी }}</ref>
  
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
* फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (फ़िल्म- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी)
 
* फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (फ़िल्म- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी)
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* कादर ख़ान को 1991 को बेस्ट कॉमेडियन का और 2004 में बेस्ट सपोर्टिंग रोल का फिल्म फेयर मिल चुका है। 
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* 2013 में, कादर ख़ान को उनके फिल्मों में योगदान के लिए साहित्य शिरोमनी अवार्ड से नवाजा गया। 
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==रोचक तथ्य==
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* 1973 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने के बाद से, कादर ख़ान अब तक 300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके हैं। 
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* कादर ख़ान ने अपनी पहली फिल्म 'दाग' में अभियोजन पक्ष के वकील की भूमिका निभाई थी। 
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* फिल्मों में करियर बनाने के पहले, कादर ख़ान एम.एच. सैबू सिद्दिक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे।
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* कादर ख़ान ने 250 से ज्यादा फिल्मों के संवाद लिखे हैं। अमिताभ की कई सफल फिल्मों के अलावा, कादर ख़ान ने हिम्मतवाला, कुली नं वन, मैं खिलाडी तू अनाड़ी, खून भरी मांग, कर्मा, सरफरोश और धर्मवीर जैसी सुपर हिट फिल्मों के संवाद लिखे हैं। 
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* फिल्म 'रोटी' के लिए मनमोहन देसाई ने कादर ख़ान को संवाद लिखने के लिए 1,20,000 रुपये जैसी बड़ी रकम अदा की थी।   
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* कादर ख़ान अपने महत्वपूर्ण और अच्छे डायलॉग लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड कर के हीरो को दिया करते थे ताकि बोलते समय कॉमा, पूर्ण विराम, आवाज़ के उतार और चढ़ाव आदि का भी पूरा पूरा ध्यान रखा जाए।
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* दिन भर फिल्मों में शूटिंग, शाम को लिखना और पढ़ना एक साथ जारी रहता था। साथ साथ उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से [[अरबी भाषा]] में एम. ए. भी कर लिया तो यार लोग हैरान रह गए, "ये आदमी सोता कब है?" 
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* [[अमिताभ बच्चन]] के साथ 'ज़ाहिल' फ़िल्म बनाने की इच्छा दिल की दिल में ही रह गई। फिल्म 'कुली' के बाद शूटिंग शुरू करने वाले थे। अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट के बाद फिल्म अटक गई। फिर कादर ख़ान अपनी दूसरी फिल्मों में खुद व्यस्त हो गए। बाद में बच्चन साहब राजनीति में चले गए और फिर बात आई गई हो गई।
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* अमिताभ बच्चन के अलावा, कादर ख़ान ऐसे कलाकार थे जिन्होंने प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई के आपस में प्रतिस्पर्धी कैंपों में काम किया।   
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* कादर ख़ान 9 बार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के तौर पर फिल्मफेयर में नामांकित किए जा चुके हैं। 
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* अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम फ्रॉम इंडिया (AFMI) कादर ख़ान को उनकी सफलताओं और भारतीय मुस्लिम कम्युनिटी की भलाई में उनके कामों के लिए सराह चुकी है। 
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* फिल्म 'रोटी' के अशरफ ख़ान, अपने एक नाटक के लिए एक युवा लड़के की तलाश में थे तब उन्हें लोगों ने बताया कि एक लड़का रात में क़ब्रों के बीच बैठकर डायलॉग चिल्लाता है। यह कादर ख़ान थे। 
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* अपने बचपन के दिनों में कादर ख़ान बहुत ग़रीब थे। गंदी बस्ती की झोपड़ी में रहने वाले कादर की माँ उन्हें मस्जिद प्रार्थना के लिए भेजती थीं जहां से वे क़ब्रिस्तान चले जाते थे। 
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* कादर ख़ान के पास बचपन में चप्पल तक नहीं हुआ करते थे। उनकी माँ उनके गंदे पैर देखकर समझ जाती थीं कि वह मस्जिद नहीं गए। 
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* कादर ख़ान की उनके पहले ही ड्रामे में एक्टिंग देखकर एक बुजुर्ग ने उन्हें सौ रुपए का नोट दिया था। कुछ साल अपने पास रखने के बाद, ग़रीबी के कारण कादर ख़ान ने इस नोट को खर्च कर दिया जिसे वह एक ट्राफी समझते थे।
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* कादर ख़ान के जन्म के पहले काबुल में रहने वाले उनके परिवार में उनके तीन बड़े भाई थे जो आठ वर्ष के होते-होते मर गए। इससे घबराकर कादर ख़ान के जन्म के बाद, उनकी माँ उन्हें लेकर [[मुंबई]] आ गईं। 
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* कादर ख़ान गालिब की गजलों का मतलब समझाती किताबें लिख चुके हैं। जिनमें 100 से भी अधिक गजलों के मतलब लिखे हुए हैं।
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* एक दौर ऐसा भी था जब कादर ख़ान कई हीरो से ज्यादा लोकप्रिय थे और दर्शक पोस्टर पर उनका चेहरा देख टिकट खरीदते थे। 
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* कादर ख़ान टेलीविजन पर एक कॉमेडी शो 'हंसना मत' प्रसारित कर चुके हैं। जिसे उन्होंने खुद बनाया था।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/kader-khan-30-interesting-facts-115102100037_1.html |title=कादर खान : 30 रोचक जानकारियां |accessmonthday=18 मई  |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=वेब दुनिया हिन्दी|language=हिंदी }} </ref> 
  
  
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://www.samaylive.com/article-analysis-in-hindi/special-days-in-hindi/102234/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B0%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8:%20%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0.html कादर ख़ान: बहुआयामी कलाकार]
 
*[http://www.samaylive.com/article-analysis-in-hindi/special-days-in-hindi/102234/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B0%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8:%20%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0.html कादर ख़ान: बहुआयामी कलाकार]
*[http://kabaadkhaana.blogspot.in/2009/08/blog-post_10.html प्रोफ़ेसर खान अब लिखते नहीं , पढ़ाते हैं]
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*[http://kabaadkhaana.blogspot.in/2009/08/blog-post_10.html प्रोफ़ेसर ख़ान अब लिखते नहीं , पढ़ाते हैं]
 
*[http://www.punjabkesari.in/news/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AD-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%82--%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B0-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-29735 अमिताभ के काम के प्रति समर्पण का दीवाना हूं : कादर ख़ान]
 
*[http://www.punjabkesari.in/news/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AD-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%82--%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B0-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-29735 अमिताभ के काम के प्रति समर्पण का दीवाना हूं : कादर ख़ान]
 
*[http://www.imdb.com/name/nm0434318/ कादर ख़ान की फ़िल्में]
 
*[http://www.imdb.com/name/nm0434318/ कादर ख़ान की फ़िल्में]
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*[http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/kader-khan-kadar-khan-hindi-film-115102100025_2.html मनमोहन देसाई से हुई मुलाक़ात को कादर ख़ान आज भी ज्यों का त्यों सुनाते हैं...]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{हास्य अभिनेता}}
 
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10:01, 5 जनवरी 2019 का अवतरण

कादर ख़ान
कादर ख़ान
पूरा नाम कादर ख़ान
जन्म 22 अक्तूबर, 1935
जन्म भूमि बलूचिस्तान, पाकिस्तान
मृत्यु 31 दिसम्बर 2018
मृत्यु स्थान टोरंटो, कनाडा
अभिभावक पिता- अब्दुल रहमान ख़ान, माता- इकबाल बेगम
पति/पत्नी अज़रा ख़ान
संतान सरफ़राज़ ख़ान, शाहनवाज़ ख़ान और क्यूडस ख़ान
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संवाद लेखक, अध्यापक
मुख्य फ़िल्में 'बाप नंबरी बेटा दस नंबरी', 'सनम तेरी कसम', 'नौकर बीबी का', 'शरारा', 'कैदी', 'घर एक मंदिर', 'वतन के रखवाले', 'खुदगर्ज', 'ख़ून भरी मांग', 'आंखें', 'शतरंज', 'कुली नंबर 1', 'हीरो नंबर 1', 'दूल्हे राजा', 'राजा बाबू', 'चालबाज़' आदि।
शिक्षा स्नातकोत्तर
विद्यालय इस्माइल यूसुफ़ कॉलेज, मुम्बई, उस्मानिया विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (बाप नंबरी बेटा दस नंबरी)
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय
भाषा ज्ञान उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी
अन्य जानकारी अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, धर्मकांटा, कुली, शराबी आदि फ़िल्मों में संवाद लिखे।
अद्यतन‎

कादर ख़ान (अंग्रेज़ी: Kader Khan, जन्म- 22 अक्तूबर, 1935- मृत्यु- 31 दिसम्बर, 2018) को भारतीय सिनेमा जगत् में एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने सहनायक, संवाद लेखक, खलनायक, हास्य अभिनेता और चरित्र अभिनेता के तौर पर दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई। खलनायक से लेकर हास्य अभिनेता तक हर किरदार में जान फूंक देने वाले कादर ख़ान अब तक 300 से ज्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा यहीं नहीं थमती। वह 80 से अधिक लोकप्रिय फ़िल्मों के लिए संवाद लिखकर उस दिशा में भी अपना लोहा मनवा चुके हैं। कादर ख़ान के अभिनय की एक विशेषता यह है कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए उपयुक्त हैं। फ़िल्म 'कुली' एवं 'वर्दी' में एक ‘क्रूर खलनायक’ की भूमिका हो या फिर ‘कर्ज़ चुकाना है’, ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ फ़िल्म में भावपूर्ण अभिनय या फिर ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ और ‘प्यार का देवता’ जैसी फ़िल्मों में हास्य अभिनय इन सभी चरित्रों में उनका कोई जवाब नहीं है।

जीवन परिचय

कादर ख़ान का जन्म 22 अक्टूबर, 1935 को बलूचिस्तान में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। भारत पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत में बस गया। कादर ख़ान ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई उस्मानिया विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अरबी भाषा के प्रशिक्षण के लिये एक संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया। कादर ख़ान ने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के तौर पर की। एक बार कॉलेज में हो रहे वार्षिक समारोह में कादर ख़ान को अभिनय करने का मौका मिला। इस समारोह में अभिनेता दिलीप कुमार ने कादर ख़ान के अभिनय से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। यही कारण है कि कादर के अंदर एक शिक्षक, एक संवाद लेखक और एक अभिनेता तीनों एक साथ बसते हैं।[1]

फ़िल्मी कैरियर

महान अभिनेता दिलीप कुमार ने कादर ख़ान को अपनी फ़िल्म ‘सगीना’ में काम करने का प्रस्ताव दिया। वर्ष 1974 में आई फ़िल्म ‘सगीना’ के बाद भी कादर ख़ान को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उनकी ‘दिल दीवाना’, ‘बेनाम’, ‘उमर कैद’, ‘अनाड़ी’ और बैराग जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं पहुंचा। वर्ष 1977 में कादर ख़ान की 'खून पसीना' और 'परवरिश' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। इन फ़िल्मों के जरिए वह कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।

सफल फ़िल्में

फ़िल्म ‘खून पसीना’ और ‘परवरिश’ की सफलता के बाद कादर ख़ान को कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। जिनमें मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, अब्दुल्ला, दो और दो पांच, लूटमार, कुर्बानी, याराना, बुलंदी और नसीब जैसी बड़े बजट की फ़िल्में शामिल थी। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद कादर ख़ान ने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और बतौर खलनायक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। वर्ष 1983 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कुली’ कादर ख़ान के करियर की सुपरहिट फ़िल्मों में शुमार की जाती है। मनमोहन देसाई के बैनर तले बनी इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फ़िल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। इसके साथ ही कादर ख़ान फ़िल्म इंडस्ट्री के चोटी के खलनायकों की फेहरिस्त में शामिल हो गए। वर्ष 1990 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ कादर ख़ान के सिने करियर की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने बाप और बेटे की भूमिका निभाई जो ठग बनकर दूसरों को धोखा दिया करते हैं। फ़िल्म में कादर ख़ान और शक्ति कपूर ने अपने कारनामों के जरिये दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया। फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये कादर ख़ान फ़िल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित भी किए गए।[1]

चरित्र अभिनेता

नब्बे के दशक में कादर ख़ान ने अपने अभिनय को एकरूपता से बचाने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष 1992 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘अंगार’ में उन्होंने अंडर वर्ल्ड डॉन जहांगीर ख़ान की भूमिका को रूपहले पर्दे पर साकार किया। दशक के अंतिम वर्षो में बतौर ख़लनायक कादर ख़ान की फ़िल्मों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसके बाद कादर ख़ान ने हास्य अभिनेता के तौर पर भी काम करना शुरू कर दिया। इस क्रम में वर्ष 1998 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘दूल्हे राजा’ में अभिनेता गोविंदा के साथ उनकी भूमिका दर्शकों के बीच काफ़ी पसंद की गयी।

प्रसिद्ध फ़िल्में

कादर ख़ान ने अपने सिने करियर में लगभग 300 फ़िल्मों में अभिनय किया है। उनकी अभिनीत फ़िल्मों में मुक्ति, ज्वालामुखी, मेरी आवाज सुनो, जमाने को दिख़ाना है, सनम तेरी कसम, नौकर बीबी का, शरारा, कैदी, घर एक मंदिर, गंगवा, जान जानी जर्नादन, घर द्वार, तबायफ़, पाताल भैरवी, इंसाफ़ की आवाज़, स्वर्ग से सुंदर, वतन के रखवाले, खुदगर्ज़, ख़ून भरी मांग, आंखें, शतरंज, कुली नंबर 1, हीरो नंबर 1, जुड़वा, बड़े मियां छोटे मियां, दूल्हे राजा, राजा बाबू, चालबाज़, हसीना मान जाएगी, फंटूश आदि।

शक्ति कपूर के साथ जोड़ी

कादर ख़ान के सिने करियर में उनकी जोड़ी अभिनेता शक्ति कपूर के साथ काफ़ी पसंद की गयी। इन दोनों अभिनेताओं ने अब तक लगभग 100 फ़िल्मों में एक साथ काम किया है। उनकी जोड़ी वाली महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से कुछ इस प्रकार हैं- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, नसीब, लूटमार, हिम्मतवाला, महान, हैसियत, जस्टिस चौधरी, अक्लमंद, मकसद, मवाली, तोहफा, इंकलाब, कैदी, गिरफ्तार, घर संसार, धर्म अधिकारी, सिंहासन, सोने पे सुहागा, मास्टरजी, इंसानियत के दुश्मन, वक्त की आवाज़, जैसी करनी वैसी भरनी, नाचने वाले गाने वाले, राजा बाबू आदि।[1]

संवाद लेखक

कादर ख़ान ने कई फ़िल्मों में संवाद लेखक के तौर पर भी काम किया है। इनमें खेल खेल में, रफूचक्कर, धरमवीर, अमर अकबर एंथोनी, ख़ून पसीना, परवरिश, शालीमार, मुक्कदर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, याराना, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, सनम तेरी कसम, धर्मकांटा, कुली, शराबी, गिरफ्तार, कर्मा, ख़ून भरी मांग, हत्या, हम, कुली नंबर वन, साजन चले ससुराल जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।

अमिताभ को निर्देशित करने की अधूरी तमन्ना

कादर ख़ान की अमिताभ बच्चन को लेकर फ़िल्म बनाने की तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। अभिनेता कादर ख़ान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई फ़िल्में कीं। अदालत, सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, नसीब और कुली जैसी बेहद कामयाब फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ काम किया। इसके अलावा कादर ख़ान ने अमर अकबर एंथनी, सत्ते पे सत्ता और शराबी जैसी फ़िल्मों के संवाद भी लिखे, लेकिन कादर ख़ान अमिताभ बच्चन को लेकर खुद एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उनकी ये तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। कादर ने ये बात एक ख़ास बातचीत में बताई। उन्होंने कहा, मैं अमिताभ बच्चन, जया प्रदा और अमरीश पुरी को लेकर फ़िल्म 'जाहिल' बनाना चाहता था। उसका निर्देशन भी मैं खुद करना चाहता था लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंजूर था। कादर ख़ान ने बताया कि इसके फौरन बाद फ़िल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को जबरदस्त चोट लग गई और फिर वो महीनों अस्पताल में भर्ती रहे। अमिताभ के अस्पताल से वापस आने के बाद फिर कादर ख़ान अपनी दूसरी फ़िल्मों में बहुत ज्यादा व्यस्त हो गए और इधर अमिताभ बच्चन राजनीति में आ गए। उसके बाद कादर ख़ान और अमिताभ की जुगलबंदी वाली ये फ़िल्म हमेशा के लिए डब्बाबंद हो गई। अमिताभ की तारीफ़ करते हुए कादर ख़ान कहते हैं, वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।[2]

वर्तमान में

कादर ख़ान कुछ सालों से फ़िल्मों से दूर हो गए हैं। इसकी वजह बताते हुए वो कहते हैं, वक्त के साथ फ़िल्में भी बदल गई हैं। अब ऐसे दौर में मैं अपने आपको फिट नहीं पाता। मेरे लिए बदलते दौर के साथ खुद को बदलना संभव नहीं है, तो मैंने अपने आपको फ़िल्मों से अलग कर लिया। कादर ख़ान ने ये भी कहा कि मौजूदा दौर के कलाकारों की भाषा पर पकड़ नहीं है और ये बात उन्हें दुखी करती है। 70 के दशक में अमिताभ बच्चन की कुछ फ़िल्मों जैसे सुहाग, अमर अकबर एंथनी और मुकद्दर का सिकंदर में कादर ख़ान की कलम से लिखे संवाद काफ़ी मशहूर हुए, लेकिन कादर ख़ान को इस बात का दु:ख है कि उन फ़िल्मों में नायक जिस चालू मुंबइया भाषा का इस्तेमाल करता है वही बाद की फ़िल्मों की मुख्य भाषा बन गई और फिर धीरे-धीरे उसकी आड़ में फ़िल्मों की भाषा खराब होती चली गई। वो कुछ दोष अपने आपको भी देते हैं। कादर ख़ान ने 80 के दशक में जीतेंद्र, मिथुन और 90 के दशक में गोविंदा के साथ भी कई फ़िल्में कीं। वो अपने दौर को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। उनके मुताबिक असरानी, शक्ति कपूर, गोविंदा, जीतेंद्र और अरुणा ईरानी के साथ की गई उनकी कई फ़िल्में और इन कलाकारों के साथ बिताया वक्त उन्हें बहुत याद आता है। कादर ख़ान ने बताया कि ख़ासतौर पर वो असरानी के जबरदस्त प्रशंसक हैं, जिनके साथ उन्होंने कई फ़िल्में कीं। फिलहाल कादर ख़ान अपने बेटों के थिएटर ग्रुप और उनके प्ले में व्यस्त हैं। उनके बेटे सरफ़राज ख़ान और शाहनवाज ख़ान, अपने पिता के लिखे दो नाटकों का मंचन कर रहे हैं। इन नाटकों के नाम है मेहरबां कैसे-कैसे और लोकल ट्रेन। ये दोनों ही नाटक राजनीतिक व्यंग्य हैं।[2]

निधन

कादर ख़ान के बेटे सरफ़राज़ ने बताया, ‘मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए। लंबी बीमारी के बाद 31 दिसम्बर शाम छह बजे (कनाडाई समय) उनका निधन हो गया। वह दोपहर को कोमा में चले गए थे। वह पिछले 16-17 हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे।’ 81 वर्षीय कादर ख़ान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वह कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती थे। उनके बेटे ने बताया कि अभिनेता का अंतिम संस्कार भी वहीं किया जाएगा।[3]

सम्मान और पुरस्कार

  • फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (फ़िल्म- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी)
  • कादर ख़ान को 1991 को बेस्ट कॉमेडियन का और 2004 में बेस्ट सपोर्टिंग रोल का फिल्म फेयर मिल चुका है।
  • 2013 में, कादर ख़ान को उनके फिल्मों में योगदान के लिए साहित्य शिरोमनी अवार्ड से नवाजा गया।

रोचक तथ्य

  • 1973 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने के बाद से, कादर ख़ान अब तक 300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके हैं।
  • कादर ख़ान ने अपनी पहली फिल्म 'दाग' में अभियोजन पक्ष के वकील की भूमिका निभाई थी।
  • फिल्मों में करियर बनाने के पहले, कादर ख़ान एम.एच. सैबू सिद्दिक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे।
  • कादर ख़ान ने 250 से ज्यादा फिल्मों के संवाद लिखे हैं। अमिताभ की कई सफल फिल्मों के अलावा, कादर ख़ान ने हिम्मतवाला, कुली नं वन, मैं खिलाडी तू अनाड़ी, खून भरी मांग, कर्मा, सरफरोश और धर्मवीर जैसी सुपर हिट फिल्मों के संवाद लिखे हैं।
  • फिल्म 'रोटी' के लिए मनमोहन देसाई ने कादर ख़ान को संवाद लिखने के लिए 1,20,000 रुपये जैसी बड़ी रकम अदा की थी।
  • कादर ख़ान अपने महत्वपूर्ण और अच्छे डायलॉग लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड कर के हीरो को दिया करते थे ताकि बोलते समय कॉमा, पूर्ण विराम, आवाज़ के उतार और चढ़ाव आदि का भी पूरा पूरा ध्यान रखा जाए।
  • दिन भर फिल्मों में शूटिंग, शाम को लिखना और पढ़ना एक साथ जारी रहता था। साथ साथ उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से अरबी भाषा में एम. ए. भी कर लिया तो यार लोग हैरान रह गए, "ये आदमी सोता कब है?"
  • अमिताभ बच्चन के साथ 'ज़ाहिल' फ़िल्म बनाने की इच्छा दिल की दिल में ही रह गई। फिल्म 'कुली' के बाद शूटिंग शुरू करने वाले थे। अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट के बाद फिल्म अटक गई। फिर कादर ख़ान अपनी दूसरी फिल्मों में खुद व्यस्त हो गए। बाद में बच्चन साहब राजनीति में चले गए और फिर बात आई गई हो गई।
  • अमिताभ बच्चन के अलावा, कादर ख़ान ऐसे कलाकार थे जिन्होंने प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई के आपस में प्रतिस्पर्धी कैंपों में काम किया।
  • कादर ख़ान 9 बार सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के तौर पर फिल्मफेयर में नामांकित किए जा चुके हैं।
  • अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम फ्रॉम इंडिया (AFMI) कादर ख़ान को उनकी सफलताओं और भारतीय मुस्लिम कम्युनिटी की भलाई में उनके कामों के लिए सराह चुकी है।
  • फिल्म 'रोटी' के अशरफ ख़ान, अपने एक नाटक के लिए एक युवा लड़के की तलाश में थे तब उन्हें लोगों ने बताया कि एक लड़का रात में क़ब्रों के बीच बैठकर डायलॉग चिल्लाता है। यह कादर ख़ान थे।
  • अपने बचपन के दिनों में कादर ख़ान बहुत ग़रीब थे। गंदी बस्ती की झोपड़ी में रहने वाले कादर की माँ उन्हें मस्जिद प्रार्थना के लिए भेजती थीं जहां से वे क़ब्रिस्तान चले जाते थे।
  • कादर ख़ान के पास बचपन में चप्पल तक नहीं हुआ करते थे। उनकी माँ उनके गंदे पैर देखकर समझ जाती थीं कि वह मस्जिद नहीं गए।
  • कादर ख़ान की उनके पहले ही ड्रामे में एक्टिंग देखकर एक बुजुर्ग ने उन्हें सौ रुपए का नोट दिया था। कुछ साल अपने पास रखने के बाद, ग़रीबी के कारण कादर ख़ान ने इस नोट को खर्च कर दिया जिसे वह एक ट्राफी समझते थे।
  • कादर ख़ान के जन्म के पहले काबुल में रहने वाले उनके परिवार में उनके तीन बड़े भाई थे जो आठ वर्ष के होते-होते मर गए। इससे घबराकर कादर ख़ान के जन्म के बाद, उनकी माँ उन्हें लेकर मुंबई आ गईं।
  • कादर ख़ान गालिब की गजलों का मतलब समझाती किताबें लिख चुके हैं। जिनमें 100 से भी अधिक गजलों के मतलब लिखे हुए हैं।
  • एक दौर ऐसा भी था जब कादर ख़ान कई हीरो से ज्यादा लोकप्रिय थे और दर्शक पोस्टर पर उनका चेहरा देख टिकट खरीदते थे।
  • कादर ख़ान टेलीविजन पर एक कॉमेडी शो 'हंसना मत' प्रसारित कर चुके हैं। जिसे उन्होंने खुद बनाया था।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कादर ख़ान : ऑलराउडर प्रतिभा के धनी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल.) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2012।
  2. 2.0 2.1 कादरख़ान की वो अधूरी ख्वाहिश (हिंदी) (एच.टी.एम.एल.) नव भारत। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2012।
  3. मशहूर अभिनेता और लेखक कादर ख़ान का निधन (हिंदी) (एच.टी.एम.एल.) द वायर। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2019।
  4. कादर खान : 30 रोचक जानकारियां (हिंदी) (एच.टी.एम.एल.) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 18 मई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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