कान खड़े होना

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कान खड़े होना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।

अर्थ-

  1. आशंका या खटका होने पर चौकत्रा होना
  2. पशुओं के संबंध में आहट होने पर चौकत्रा या सचेत होना।

प्रयोग-

  1. मैंने जब इनके यहाँ आने-जाने की ख़बर पाई तो उसी वक्त मेरे कान खड़े हो गए। (प्रेमचंद)
  2. पर जब बाहर के लोग यहाँ की हरियाली से ललचकर या लूटपाट करने के मन से इधर आने-जाने और धावा मारने लगे तब से आर्य लोगों के कान खड़े हुए। (सीताराम चतुर्वेदी)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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