कामिनी कौशल

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कामिनी कौशल (अंग्रेज़ी: Kamini Kaushal; वास्तविक नाम- 'उमा कश्यप' जन्म- 16 जनवरी, 1927, लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत) हिन्दी फ़िल्मों की एक ऐसी अभिनेत्री और टीवी कलाकार, जिसने अपनी शालीनता से सभी का दिल जीत लिया। इनका वास्तविक नाम 'उमा कश्यप' था। फ़िल्मी नाम 'कामिनी कौशल' चेतन आनन्द ने दिया और इसी नाम से ये जानी गईं। यूँ तो कामिनी कौशल ने कई यादगार फ़िल्में दी हैं, किंतु फ़िल्म 'नीचा नगर' (1946) और 'बिरज बहु' (1955) में निभाई गई भूमिका के लिए उन्हें ख़ासतौर पर जाना जाता है। इन फ़िल्मों में निभाई गई भूमिका के लिए कामिनी कौशल को पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे। अपने समय के ख्याति प्राप्त अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ कई फ़िल्में कर चुकीं कामिनी कौशल ने टीवी की दुनिया में कई धारावाहिकों में भी कार्य किया है।

जन्म तथा परिवार

कामिनी कौशल का जन्म 16 जनवरी, सन 1927 में ब्रिटिश भारत के लाहौर (पंजाब) में हुआ था। कामिनी के पिता प्रोफ़ेसर शिवराम कश्यप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जाने-माने वनस्पति शास्त्री थे और लाहौर के ही 'गवर्नमेंट कॉलेज' में पढ़ाते थे। लाहौर के मशहूर 'बॉटैनिकल गार्डन' के संस्थापक होने के साथ-साथ वे साईंस कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। दो भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी कामिनी कौशल के बड़े भाई डॉक्टर के. एन. कश्यप बतौर सर्जन कई सालों तक पी. जी. आई. चंडीगढ़ से जुड़े रहे। उनके छोटे भाई कर्नल ए. एन. कश्यप को दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान में युद्ध बंदी बना लिया गया था और वे चार साल बाद अचानक तब वापस लौटे थे, जब परिवार की उम्मीदें लगभग समाप्त हो गई थीं।[1]

शिक्षा

कामिनी कौशल का परिवार लाहौर के चौबुर्जी इलाक़े में रहता था। 'लेडी मैकक्लैगन हाईस्कूल' से उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी। इसके बाद 'किन्नेयर्ड कॉलेज' से अंग्रेज़ी में बी.ए. ऑनर्स किया। इनके परिवार का माहौल काफ़ी खुला हुआ था। कामिनी कौशल बचपन से ही रेडियो नाटकों में हिस्सा लेती थी, इसके अतिरिक्त घुड़सवारी, तैराकी और साईक्लिंग भी करती थीं।

विवाह

कामिनी कौशल की बहन की असामयिक ही मृत्यु हो गई थी, जिस कारण अपनी भ‍तीजियों के भविष्य की चिंता उन्हें थी। अपनी भतीजियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए ही कामिनी कौशल ने अपने जीजा ब्रह्मस्वरूप सूद से विवाह कर लिया और मुंबई आ गईं। ब्रह्मस्वरूप सूद पोर्ट ट्रस्ट में काम करते थे। उन्होंने कामिनी को फिल्मों में काम करने की पूरी आज़ादी दे दी थी।

फ़िल्मी शुरुआत

उस समय फ़िल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। चेतन आनन्द कामिनी के बड़े भाई के करीबी दोस्त थे और उन दिनों अपनी पहली फ़िल्म 'नीचा नगर' की तैयारियों में लगे हुए थे। एक रोज़ उन्होंने रेडियो नाटक सुनकर कामिनी को अपनी फ़िल्म की मुख्य भूमिका के लिए लेना चाहा, किंतु कामिनी ने साफ इंकार कर दिया। चेतन आनंद से उनकी अगली मुलाक़ात मुंबई में हुई, जहाँ वह अपनी विवाहिता बड़ी बहन के घर आयी हुई थीं। चेतन आनंद ने एक बार फिर से उन पर अपनी फ़िल्म में काम करने के लिए दबाव डाला, जिसके लिए अपने बड़े भाई के कहने पर कामिनी कौशल को हाँ करना पड़ा। चूंकि चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद भी उस फ़िल्म में एक अहम भूमिका कर रही थीं, इसलिए चेतन आनंद ने कामिनी कौशल को उनके असली नाम उमा कश्यप की जगह फ़िल्मी नाम कामिनी कौशल दिया था। आगे चलकर वे इसी फ़िल्मी नाम से मशहूर हुईं।[1]

मुम्बई आगमन

वर्ष 1946 में बनी फ़िल्म 'नीचा नगर' के संगीतकार पंडित रविशंकर थे। 'कांस फ़िल्म समारोह' में शामिल होने और पुरस्कार हासिल करने वाली ये पहली भारतीय फ़िल्म थी। कामिनी कौशल के अनुसार- "तमाम तारीफ़ें बटोरने के बावजूद शुरूआत में ये फ़िल्म बिक नहीं पाई थी। लेकिन जब आगे चलकर मेरा थोड़ा नाम हुआ और इस फ़िल्म में दो गाने डाले गए, तब कहीं ये फ़िल्म प्रदर्शित हो पाई थी। लेकिन उसके बाद जितने भी प्रस्ताव मुझे मिले, उन सभी को ठुकराकर मैं वापस लाहौर लौट गयी। उस समय तक मैंने मुश्किल से चार-पाँच ही फ़िल्में देखी होंगी, जिनमें से 'प्रभात फ़िल्म कंपनी, पुणे' की गजानन जागीरदार निर्देशित फ़िल्म 'रामशास्त्री' मुझे बेहद पसंद आयी थी। इसीलिए जब गजानन जागीरदार ने अपने प्रोडक्शन की फ़िल्म 'जेलयात्रा' के लिए मुझसे संपर्क किया तो मैं इंकार नहीं कर पायी और मुझे स्थायी रूप से मुंबई आ जाना पड़ा"।[1] कई लोग यह भी कहते हैं कि बड़ी बहन के अचानक गुज़र जाने के बाद उनकी दो छोटी बेटियों की देखभाल के लिए कामिनी कौशल को 1947 में अपने जीजा ब्रह्मस्वरूप सूद से शादी करनी पड़ी थी और इसीलिए वे शादी के बाद स्थायी तौर पर मुंबई आई थीं।

प्रसिद्ध कलाकारों के कार्य

1947 में बनी फ़िल्म “जेलयात्रा” में कामिनी कौशल के नायक राज कपूर थे, जिनकी बतौर निर्माता-निर्देशक पहली फ़िल्म “आग” (1948) में भी कामिनी कौशल ने एक अहम भूमिका की। “फ़िल्मिस्तान स्टूडियो” की फ़िल्म “दो भाई” (1947) में कामिनी कौशल के नायक उल्हास थे तो इसी बैनर की “शहीद” और “नदिया के पार” (1948) में दिलीप कुमार। इन सभी फ़िल्मों में कामिनी कौशल के लिए पार्श्वगायन शमशाद बेगम, गीता दत्त, ललिता देऊलकर और सुरिंदर कौर ने किया था। “बॉम्बे टॉकीज़” की खेमचंद प्रकाश द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म “ज़िद्दी” (1948) में उनके लिए लता मंगेशकर ने पहली बार गाने गाए थे। बतौर गायक किशोर कुमार की भी ये पहली फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने माली की एक छोटी सी भूमिका भी की थी। इसके बाद अगले दस वर्षों में कामिनी कौशल ने “नमूना”, “शबनम”, “शायर” (सभी 1949), “आरज़ू” (1950), “बिखरे मोती” (1951), “पूनम” (1952), “आंसू”, “आस”, “शहंशाह” (सभी 1953), “बिराज बहू”, “चालीस बाबा एक चोर”, “संगम” (सभी 1954), “आबरू” (1956), “बड़ा भाई”, “बड़े सरकार” (दोनों 1957), “जेलर”, “नाईट क्लब” (दोनों 1958) और “बैंक मैनेजर” (1959) जैसी कुल मिलाकर 33 फ़िल्मों में मुख्य भूमिकाएँ निभाईं।[1]

प्रेम प्रसंग

दिलीप कुमार के साथ दो अभिनेत्रियों के प्रेम प्रसंग की बातें भी काफ़ी उड़ीं। इन अभिनेत्रियों में एक थीं 'कामिनी कौशल' और दूसरी 'मधुबाला'। 1948 और 1950 के बीच दिलीप कुमार और कामिनी कौशल ने चार फिल्मों में साथ काम किया था। इनमें 'शहीद' के अलावा अन्य तीन फिल्में 'नदिया के पार', 'शबनम', और 'आरजू' थीं। दर्शकों को इन फिल्मों के प्रणय दृश्य देखकर ही इनके बीच परस्पर प्रेम का अहसास हो जाता था। तब कामिनी कौशल और दिलीप कुमार दोनों ही फिल्मी करियर की बुनियाद डाल रहे थे। कामिनी कौशल ब्याहता थीं, जिन्होंने बहन के निधन के बाद अपने जीजा ब्रह्मस्वरूप सूद से विवाह किया था। इनके पति ने फ़िल्मों में काम करने की आज़ादी दी थी, लेकिन प्रेम की इजाजत भला कैसे देते। दिलीप और कामिनी ने अपने प्रेम को दबाया और वर्षों तक एक-दूसरे के सामने भी नहीं आए।[2]

फ़िल्म निर्माण

“के आर्ट्स” के बैनर में बनी फ़िल्म “पूनम” और “चालीस बाबा एक चोर” का निर्माण कामिनी कौशल ने ही किया था। फ़िल्म “बिरज बहू” के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' जीता था। फ़िल्म “बैंक मैनेजर” के बाद उन्हें घरेलू वजहों से कुछ सालों के लिए फ़िल्मों से अलग हो जाना पड़ा। क़रीब पाँच साल बाद कामिनी कौशल अभिनेता राजकुमार के साथ निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली की फ़िल्म “गोदान” (1963) में नज़र आयीं। इस फ़िल्म का संगीत भी पंडित रविशंकर ने तैयार किया था। ये कामिनी कौशल की बतौर नायिका आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म थी।

चरित्र अभिनेत्री

बतौर चरित्र अभिनेत्री कामिनी कौशल के दूसरे फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत वर्ष 1965 में बनी फ़िल्म “शहीद” से हुई। इस फ़िल्म में वे अभिनेता मनोज कुमार द्वारा अभिनीत सरदार भगत सिंह की माँ की भूमिका में नज़र आयी थीं। फ़िल्म “शहीद” की जबर्दस्त कामयाबी के बाद उन्होंने मनोज कुमार की लगभग सभी फ़िल्मों में उनकी माँ की भूमिका की। कामिनी कौशल बतौर चरित्र अभिनेत्री 40 से भी ज़्यादा सालों तक सक्रिय रहीं। अभिनय के इस दूसरे दौर में उन्होंने 60 से ज़्यादा फ़िल्मों, 1980 के दशक के मध्य में बने अंग्रेज़ी धारावाहिक “ज्वैल इन द क्राऊन” और "वक़्त की रफ़्तार”, “ऊपरवाली घरवाली”, “संजीवनी”, “शन्नो की शादी” जैसे कुछ हिन्दी धारावाहिकों में अभिनय किया। 2007 में बनी “लागा चुनरी में दाग” कामिनी कौशल की अभी तक की आख़िरी हिन्दी फ़िल्म है। 2008 में लंदन में बनी उनकी एक अंग्रेज़ी फ़िल्म “द स्क्वायर रूट 2” भी प्रदर्शित हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 बीते हुए दिन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।
  2. दिलीप कुमार-एक महानायक की गाथा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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