कूटाक्षरी

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कूटाक्षरी शब्द या शब्दसमूह में वर्णों का स्थानांतरण, श्लेष, संख्या आदि पर आधारित अर्थचातुर्य उत्पन्न करने की बौद्धिक क्रीड़ा।[1]कूटाक्षरी पर आधारित कूट श्लोकों का प्रथम प्रयोग महाभारत में प्राप्त होता है। अनुश्रुति है कि महाभारत की रचना के समय व्यास को ऐसे लिपिक की आवश्यकता हुई जो उनके शब्दों को लिपिबद्ध कर सके। यह कार्यभार गणेश ने स्वीकार किया, किंतु इस शर्त के साथ कि व्यास निर्बाध रूप में बोलते रहें। महाभारत जैसे महाकाव्य और गंभीर ग्रंथ की रचना में व्यास जैसे सिद्ध कवि को भी कभी कभी रुक कर चिंतन की आवश्यकता थी। इसके लिए समय निकालने के लिए उन्होंने गणेश से कहा कि वे निर्बाध तो बोलेंगे किंतु गणेश को भी कोई बात बिना समझे नहीं लिखनी होगी। इसे गणेश ने मान लिया। तदनुसार चिंतन के क्षणों में गणेश को अटकाए रखने के लिए व्यास ने स्थान-स्थान पर कूट श्लोकों की रचना की है। जिनकी क्षणिक बौद्धिक क्रीड़ा के बाद कथासूत्र फिर गंभीरता के साथ आगे बढ़ता था। व्यास के कूट श्लोक का एक उदाहरण:-

केश्वं पतितं दृष्ट्वा द्रोणो हर्षमुपागत:।
रुदंति कौरवा: सर्वे हा हा केशव केशव।।

श्लोक का सामान्य अर्थ है - कृष्ण को गिरा हुआ देखकर द्रोण को बहुत हर्ष प्राप्त हुआ। सारे कौरव हा केशव! हा केशव! कहकर रोने लगे। किंतु इसका कूटार्थ है जल में[2] शव गिरा हुआ देखकर कौवे[3] बहुत प्रसन्न हुए। सारे कौरव[4] हा जल में शव![5] हा जल में शव! कह रोने लगे।

हिंदी साहित्य में सूरदास के कूट पद काफी प्रसिद्ध हैं। उसका एक उदाहरण है:-

कहत कत परदेसी की बात।
मंदिर अरध अवधि बदि गए हरि अहार टरि जात।।
ससिरिपु बरष सूररिपु युग बर हररिपु किए फिरै घात।।
मधपंचक लै गए स्यामघन आय बनी यह बात।।
नखत वेद ग्रह जोरि अर्ध करि को बरजै हम खात।।
सूरदास प्रभु तुमहि मिलन को कर मीड़ति पछितात।।

इसमें दूसरी पंक्ति से लेकर पाँचवीं पंक्ति तक कूट का प्रयोग हुआ है।[6] इसी प्रकार प्राचीन कवि प्राय: अपने ग्रंथों की रचनातिथि को कूट द्वारा व्यक्त करते थे। यथा-

कर नभ रस अरु आत्मा संवत फागुन मास।
सुकुल पच्छ तिथि चौथ रवि जेहि दिन ग्रंथ प्रकास।।

इसमें ग्रंथ रचना का संवत्‌ 1902 है।[7] इस प्रकार 2091 संख्या प्राप्त होती है। अंकानां वामतो गति: के नियमानुसार वास्तव में इसे उलटकर 1902 पढ़ा जायगा। इस प्रकार की तिथियों का उल्लेख प्राचीन अभिलेखों में भी पाया जाता है।

वस्तुओं द्वारा संख्याओं को व्यक्त करने की परंपरा हिंदी के प्राचीन कवियों में पाई जाती है। उदाहरणार्थ -

पश्चिम में कूटाक्षरी का मुख्य प्रयोग एनोग्राम के रूप में हुआ। ऐनाग्राम ग्रीक भाषा का शब्द है: ऐना: पीछे की ओर या उल्टा; ग्रामा: लेख। ऐनाग्राम में शब्द या समूह के वर्णों के स्थानांतरण द्वारा अन्य सार्थक शब्दों की रचना की जाती थी, यथा- Matrimony[8]शब्द के वर्णों के स्थानांतरण से into my arm[9] शब्द समूह की रचना। ऐनाग्राम का एक प्राचीन उदाहरण पाइलेट के इस प्रश्न Quid est veritas[10]का उत्तर Est vir qui adest<ref(यह तुम्हारे सम्मुख खड़ा मनुष्य है</ref>है। यूनान और रोम में लोग इस प्रकार की शब्दक्रीड़ा से मनोरंजन करते थे। इस तरह की क्रीड़ा यहूदियों, विशेषत: कबालों में, प्रचलित थी। वे अपने दीक्षागम्य रहस्यों को वर्णों की विशेष संख्याओं के माध्यम से व्यक्त करते थे। मध्ययुगीन यूरोप में भी इसका व्यापक प्रचलन था।

ऐनाग्राम का प्रयोग लेखक अपने वास्तविक नामों के वर्णों के स्थानांतरण से उपनाम बनाने में भी करते रहे हैं। यूरोप के प्रारंभिक ज्योतिविंद् अपनी खोजों की पुष्टि के पूर्व बहुधा उन्हें ऐनाग्राम के रूप में गोपनीय रखते थे। ऐनाग्राम का एक अन्य रूप ऐसे शब्द की रचना है जिन्हें चाहे आगे से पीछे की ओर या पीछे से आगे की ओर पढ़ा जाए, शब्द में कोई अंतर नहीं आता। उदाहरणार्थ: Levil tent आदि शब्द। आजकल ऐनाग्राम का वर्ग पहेलियों के संकेतों के रूप में व्यापक प्रचलन है।[11]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कूट = रहस्यपूर्ण, गुप्त, वक्र, दीक्षागम्य आदि
  2. के
  3. द्रोण
  4. गीदड़
  5. के+ शव
  6. मंदिर अरध = घर का मध्य भाग, पाख अर्थात्‌ एक पक्ष; हरि अहार = शेर का भोजन, मांस अर्थात्‌ एक माह; ससिरिपु = चंद्रमा का शत्रु अर्थात्‌ दिन; सुररिपु = सूर्य का शत्रु अर्थात्‌ रात्रि; मघपंचक = मघा नक्षत्र से पाँचवां नक्षत्र, चित्रा अर्थात्‌ चित्त: नखत वेद ग्रह जोरि अर्ध करि = 27 + 4+ 9/2 = 20, बीस अर्थात्‌ विष
  7. कर = हाथ (2); नभ = आकाश या शून्य (0) ; रस = काव्यरस (9) ; आत्मा (1)
  8. विवाह
  9. मेरी भुजा में
  10. सत्य क्या है ?
  11. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 85 |

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