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के. एम. चांडी

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के. एम. चांडी (अंग्रेज़ी: K. M. Chandy ; जन्म- 6 अगस्त, 1921, कोट्टायम ज़िला, केरल; मृत्यु- 7 सितम्बर, 1998) स्वतंत्रता सेनानी तथा गुजरात और मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल थे। उन्होंने राजनीति में 17 वर्ष की उम्र से ही हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। उस समय वे 12वीं कक्षा के छात्र थे। सन 1946 में जब के. एम. चांडी मीनाचिल तालुक कांग्रेस कमेटी के सचिव थे, तब उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया, पर वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते ही रहे। के. एम. चांडी ने पलई में 'सेंट थामस कॉलेज' की स्थापना में योगदान दिया था। इस कॉलेज में उन्होंने 1950 में अध्यापन कार्य भी किया। 15 मई, 1982 को के. एम. चांडी पांडीचेरी के उप-राज्यपाल बने। वे 6 अगस्त, 1983 को गुजरात के राज्यपाल बनाये गए। बाद में मध्य प्रदेश के राज्यपाल का पदभार उन्होंने 19 मई, 1984 को ग्रहण किया।

जन्म तथा शिक्षा

के. एम. चांडी का जन्म 6 अगस्त, 1921 को केरल के कोट्टायम ज़िले के पलई नामक नगर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गृह नगर में और महाविद्यालय की उच्च शिक्षा चंगनाचेरी और त्रिवेन्द्रम में प्राप्त की थी।

राजनीतिक शुरुआत

के. एम. चांडी ने राजनीति में 17 वर्ष की उम्र से ही हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। उस समय वे चंगनाचेरी के 'सेंट वर्च मेन कॉलेज' में इन्टमीडिएट के विद्यार्थी थे। उन्होंने त्रिवेन्द्रम में राज्य कांग्रेस के नेताओं का अभिनन्दन करने वाले विद्यार्थियों पर हुए लाठीचार्ज के विरोध में हड़ताल का नेतृत्व किया था। हड़ताल के कारण कुछ और विद्यार्थियों के साथ उन्हें महाविद्यालय से निकाल दिया गया, किन्तु महाविद्यालय के समक्ष जन-सत्याग्रह होने पर उन्हें तथा अन्य विद्यार्थियों को कॉलेज में वापिस लिया गया।

प्रतिबंध तथा गिरफ़्तारी

त्रिवेन्द्रम में अध्ययन के दौरान उन्होंने प्रख्यात गांधीवादी जी. रामचन्द्रन के नेतृत्व में 'टेगौर अकादमी' के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई। विद्यार्थियों तथा युवकों के मध्य राष्ट्रवादी आन्दोलन को सक्रिय करने के कारण इस अकादमी को 1941 में प्रतिबंधित कर दिया। सन 1946 में जब के. एम. चांडी मीनाचिल तालुक कांग्रेस कमेटी के सचिव थे, तब उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते ही रहे। उन्हें जुलाई, 1946 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जब उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत मंजूर कर दी तो उन्हें 'भारत रक्षा क़ानून' के अन्तर्गत बन्दी बना लिया गया और आज़ादी मिलने के एक माह बाद सितम्बर, 1947 के अन्त में रिहा कर दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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