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[[सिकन्दर]] के भारत-आक्रमण (326 ई॰पू॰) के बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा बल्ख पर यूनानियों का शासन स्थापित हुआ तो उन्होंने भी अपने सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि के अक्षरों का उपयोग किया। यूनानियों से भी पहले ईरानी शासकों के चांदी के सिक्कों पर खरोष्ठी के अक्षरों के ठप्पे देखने को मिलते हैं। | [[सिकन्दर]] के भारत-आक्रमण (326 ई॰पू॰) के बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा बल्ख पर यूनानियों का शासन स्थापित हुआ तो उन्होंने भी अपने सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि के अक्षरों का उपयोग किया। यूनानियों से भी पहले ईरानी शासकों के चांदी के सिक्कों पर खरोष्ठी के अक्षरों के ठप्पे देखने को मिलते हैं। | ||
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− | *एक प्राचीन भारतीय लिपि जो अरबी लिपि की तरह दांये से बांये को लिखी जाती थी। चौथी-तीसरी शताब्दी | + | *एक प्राचीन भारतीय लिपि जो अरबी लिपि की तरह दांये से बांये को लिखी जाती थी। चौथी-तीसरी शताब्दी ई॰पू॰ में भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों में इस लिपि का प्रचलन था। शेष भागों में [[ब्राह्मी लिपि]] का प्रचलन था जो बांये से दांये को लिखी जाती थी। इस लिपि के प्रसार के कारण खरोष्ठी लिपि लुप्त हो गई इस लिपि में लिखे हुए कुछ सिक्के और अशोक के दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं। |
*भारत में इस्लामी शासन के साथ जिस प्रकार अरबी-फ़ारसी लिपि के आधार पर दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक लिपि उर्दू के लिए रची गयी, उसी प्रकार भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश पर ईरानियों का अधिकार हो जाने पर वहां ई॰पू॰ पांचवी शताब्दी में आरमेई लिपि के आधार पर दाहिनी ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक नई लिपि खरोष्ठी का निर्माण किया गया था। | *भारत में इस्लामी शासन के साथ जिस प्रकार अरबी-फ़ारसी लिपि के आधार पर दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक लिपि उर्दू के लिए रची गयी, उसी प्रकार भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश पर ईरानियों का अधिकार हो जाने पर वहां ई॰पू॰ पांचवी शताब्दी में आरमेई लिपि के आधार पर दाहिनी ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक नई लिपि खरोष्ठी का निर्माण किया गया था। | ||
*सम्राट [[अशोक]] (272-232 ई॰ पू॰) के मानसेहरा (हजारा ज़िला, सरहदी सूबा, पाकिस्तान) तथा शाहबाज़गढ़ी (पेशावर ज़िला, पंजाब, पाकिस्तान) के शिलालेख इस खरोष्ठी में ही हैं। इन दो को छोड़कर अशोक के अन्य सारे लेख [[ब्राह्मी लिपि]] में हैं। | *सम्राट [[अशोक]] (272-232 ई॰ पू॰) के मानसेहरा (हजारा ज़िला, सरहदी सूबा, पाकिस्तान) तथा शाहबाज़गढ़ी (पेशावर ज़िला, पंजाब, पाकिस्तान) के शिलालेख इस खरोष्ठी में ही हैं। इन दो को छोड़कर अशोक के अन्य सारे लेख [[ब्राह्मी लिपि]] में हैं। | ||
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अशोक के सिद्दापुर (जिला चित्रदुर्ग, कर्नाटक) के पास के ब्रह्मगिरि लेख की अंतिम पंक्ति।<br /> इसमें बाईं ओर के शब्द हैं ''चपडेने लिखिते'' (ब्राह्मी में) और दाईं ओर का शब्द है <br />''लिपकिरेण'' (खरोष्ठी लिपि में), जो दाईं ओर से बाईं ओर पढ़ा जाएगा। <br /><br /> | अशोक के सिद्दापुर (जिला चित्रदुर्ग, कर्नाटक) के पास के ब्रह्मगिरि लेख की अंतिम पंक्ति।<br /> इसमें बाईं ओर के शब्द हैं ''चपडेने लिखिते'' (ब्राह्मी में) और दाईं ओर का शब्द है <br />''लिपकिरेण'' (खरोष्ठी लिपि में), जो दाईं ओर से बाईं ओर पढ़ा जाएगा। <br /><br /> | ||
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'''महरजस त्रतरस मेनंद्रस''' | '''महरजस त्रतरस मेनंद्रस''' | ||
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[[चित्र: Kharoshthi Script 3.jpg|300px|खरोष्ठी लिपि]]<br /> | [[चित्र: Kharoshthi Script 3.jpg|300px|खरोष्ठी लिपि]]<br /> | ||
− | पश्चिमोत्तर भारत के शक शासक मोअस (लगभग 90 ई॰ | + | पश्चिमोत्तर भारत के शक शासक मोअस (लगभग 90 ई॰ पू॰) के <br />सिक्के पर अंकित खरोष्ठी लेख (दाएं से बाएं) : <br /> |
'''रजतिरजस महतस मोअस''' | '''रजतिरजस महतस मोअस''' | ||
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03:07, 7 अप्रैल 2010 का अवतरण
खरोष्ठी लिपि / Kharoshthi Script
- खरोष्ठी लिपि गान्धारी लिपि के नाम से जानी जाती है । जो गान्धारी और संस्कृत भाषा को लिपिवद्ध प्रयोग करने में आती है । इसका प्रयोग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी तक प्रमुख रूप से एशिया में होता रहा है । कुषाण काल में इसका प्रयोग भारत में बहुतायत में हुआ । बौद्ध उल्लेखों में खरोष्ठी लिपि प्रारम्भ से भी प्रयोग में आयी । कहीं-कहीं सातवी शताब्दी में भी इसका प्रयोग हुआ है।
साँचा:High right सिकन्दर के भारत-आक्रमण (326 ई॰पू॰) के बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा बल्ख पर यूनानियों का शासन स्थापित हुआ तो उन्होंने भी अपने सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि के अक्षरों का उपयोग किया। यूनानियों से भी पहले ईरानी शासकों के चांदी के सिक्कों पर खरोष्ठी के अक्षरों के ठप्पे देखने को मिलते हैं। साँचा:Table close
- एक प्राचीन भारतीय लिपि जो अरबी लिपि की तरह दांये से बांये को लिखी जाती थी। चौथी-तीसरी शताब्दी ई॰पू॰ में भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों में इस लिपि का प्रचलन था। शेष भागों में ब्राह्मी लिपि का प्रचलन था जो बांये से दांये को लिखी जाती थी। इस लिपि के प्रसार के कारण खरोष्ठी लिपि लुप्त हो गई इस लिपि में लिखे हुए कुछ सिक्के और अशोक के दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं।
- भारत में इस्लामी शासन के साथ जिस प्रकार अरबी-फ़ारसी लिपि के आधार पर दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक लिपि उर्दू के लिए रची गयी, उसी प्रकार भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश पर ईरानियों का अधिकार हो जाने पर वहां ई॰पू॰ पांचवी शताब्दी में आरमेई लिपि के आधार पर दाहिनी ओर से बाईं ओर लिखी जाने वाली एक नई लिपि खरोष्ठी का निर्माण किया गया था।
- सम्राट अशोक (272-232 ई॰ पू॰) के मानसेहरा (हजारा ज़िला, सरहदी सूबा, पाकिस्तान) तथा शाहबाज़गढ़ी (पेशावर ज़िला, पंजाब, पाकिस्तान) के शिलालेख इस खरोष्ठी में ही हैं। इन दो को छोड़कर अशोक के अन्य सारे लेख ब्राह्मी लिपि में हैं।
- सिकन्दर के भारत-आक्रमण (326 ई॰पू॰) के बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा बल्ख पर यूनानियों का शासन स्थापित हुआ तो उन्होंने भी अपने सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि के अक्षरों का उपयोग किया। यूनानियों से भी पहले ईरानी शासकों के चांदी के सिक्कों पर खरोष्ठी के अक्षरों के ठप्पे देखने को मिलते हैं।
- यूनानियों के बाद शक, क्षत्रप, पह्लव, कुषाण तथा औदुंबर राजाओं ने भी इस लिपि का प्रयोग किया।
- खरोष्ठी के अधिकतर लेख प्राचीन गंधार देश में ही मिले हैं।
- तक्षशिला के धर्मराजिका स्तूप की खुदाई से सन 78 का एक खरोष्ठी का लेख मिला है, जो रजतपत्र पर अंकित है। वहीं से ताम्रपत्र पर अंकित सन 76 का एक और लेख प्राप्त हुआ है। प्राचीन पुष्कलावती (चारसद्दा, सरहदी सूबा, पाकिस्तान) तथा अफ़्गानिस्तान के वर्डक और ह्ड्डा नामक स्थानों से भी खरोष्ठी के लेख मिले हैं। मथुरा से भी महाक्षत्रप राजुल की रानी का सिंहाकृति पर खुदा हुआ खरोष्ठी लेख उपलब्ध हुआ है।
- पटना से भी खरोष्ठी एक लेख मिला है, परन्तु वह पश्चिमोत्तर के किसी यात्री द्वारा लाया गया होगा। इसके अलावा सिद्दापुर (ज़िला चित्रदुर्ग, कर्नाटक) के अशोक के ब्राह्मी के लेख की अंतिम पंक्ति में 'चपदेन लिखिते' शब्दों के बाद 'लिपिकरेण' शब्द के पांच अक्षर खरोष्ठी लिपि में खुदे हुए हैं, जिससे ज्ञात होता है कि इस लेख का लेखक पश्चिमोत्तर भारत का निवासी रहा होगा। लेकिन इन उदाहरणों का अर्थ यह नहीं है कि दक्षिण में सिद्दापुर और पूर्व में पटना तक कभी खरोष्ठी लिपि का प्रचार था। वस्तुत: गंधार देश में ही इस लिपि ने जन्म लिया था और वहीं पर इसका सर्वाधिक प्रयोग हुआ।
इस लिपि का नाम खरोष्ठी क्यों पड़ाइसके बारे में विद्वानों में काफी मतभेद है। कुछ विद्वानों ने इसे 'इंडो-बैक्ट्रियन' , 'बैक्ट्रियन' 'बैक्ट्रो-पालि', 'काबुली' , 'गांधारी' आदि नाम भी दिए हैं। लेकिन अब इसके लिए 'खरोष्ठी' नाम ही रूढ़ हो गया है। किंतु इस नाम की उत्पत्ति के बारे में भी नाना प्रकार के मत प्रचलित हैं।
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