ख़रीफ़ की फ़सल

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ख़रीफ़ की फ़सल सामान्यत: उत्तर भारत में जून-जुलाई में बोयी जाती है और इन्हें अक्टूबर के आसपास काटा जाता है। इन फ़सलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, मूँग, मूँगफली, गन्ना आदि की फ़सलें ख़रीफ़ की फ़सल कहलाती हैं।

नामोत्पत्ति

अरबी भाषा में 'ख़रीफ़' (خريف) शब्द का मतलब 'पतझड़' है। ख़रीफ़ की फ़सल अक्टूबर में पतझड़ के मौसम में तैयार होती है इसलिए इसे इस नाम से बुलाया जाता है। दलहनी फ़सलों में मूंग की बहुमुखी भूमिका है, इसमे प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो कि स्वास्थ के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मूंग की फ़सल से फलियों की तुड़ाई करने के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फ़सल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से हरी खाद का काम करती है, मूंग की खेती पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग की जाती है।

जलवायु और भूमि

मूंग की खेती खरीफ एवं ज़ायद दोनों मौसम में की जा सकती है। फ़सल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में मूंग की खेती में अधिक सिचाई करने की आवश्यकता होती है।

तैयारी

खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। तत्पश्चात् दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चाहिये। आखिरी जुताई में पाटा लगाना अतिआवश्यक है, जिससे कि खेत में नमी अधिक समय तक बनी रह सके। ट्रेक्टर, पावर टिलर, रोटावेटर या अन्य आधुनिक यन्त्र से खेत की तैयारी शीघ्र की जा सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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