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ख़िलजी वंश

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ख़िलजी वंश (1290-1320 ई.)
ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निजामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को चंगेज़ ख़ाँ का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि भारत आने से पूर्व ही यह जाति अफ़ग़ानिस्तान के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश के अन्तिम सुल्तान शमसुद्दीन क्यूमर्स की हत्या के बाद ही जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। ख़िलजी क्रांति केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि, उसने ग़ुलाम वंश को समाप्त कर नवीन ख़िलजी वंश की स्थापना की, बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि, ख़िलजी क्रांति के परिणामस्वरूप् दिल्ली सल्तनत का सदूर दक्षिण तक विस्तार हुआ। जातिवाद में कमी आई और साथ ही यह धारणा भी खत्म हुई कि, शासन केवल विशिष्टि वर्ग का व्यक्ति ही कर सकता है।

ख़िलजी युग

ख़िलजी मुख्यतः सर्वहारा वर्ग के थे। ख़िलजी युग साम्राज्यवाद और मुस्लिम शक्ति के विस्तार का युग था। इस क्रांति के बाद तुर्की अमीर सरदारों के प्रभाव क्षेत्र में कमी आई। इस क्रांति ने प्रशासन में धर्म व उलेमा के महत्व को भी अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार ख़िलजी शासकों की सत्ता मुख्य रूप से शक्ति पर निर्भर थी। खिलजियों ने यह सिद्ध कर दिया कि, राज्य बिना धर्म की सहायता से न केवल जीवित रखा जा सकता है, बल्कि सफलतापूर्वक चलाया भी जा सकता है। जलालुद्दीन ख़िलजी द्वारा राजगद्दी संभालना मामलूक राजवंश के अंत और तुर्क ग़ुलाम अभिजात वर्ग के वर्चस्व का द्योतक है।

ख़िलजी वंश को सामान्यत: तुर्कों का एक कबीला माना जाता है, जो उत्तरी भारत पर मुसलमानों की विजय के बाद यहाँ आकर बस गया। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ख़िलजी वंश की स्थापना की थी। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ग़ुलाम वंश के अंतिम सुल्तान की हत्या करके ख़िलजियों को दिल्ली का सुल्तान बनाया। ख़िलजी वंश ने 1290 से 1320 ई. तक राज्य किया। दिल्ली के ख़िलजी सुल्तानों में अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) सबसे प्रसिद्ध और योग्य शासक था।

शासकों के नाम


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