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==अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस==
 
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अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गाँधी के योगदान को सराहने के लिए ही इस दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया। इस सिलसिले में 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' में [[भारत]] द्वारा रखे गए प्रस्ताव का भरपूर समर्थन किया गया। महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया। इनमें [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[नेपाल]], [[श्रीलंका]], [[बांग्लादेश]], [[भूटान]] जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा [[अफ़्रीका]] और [[अमरीका]] महाद्वीप के कई देश भी शामिल थे। मौजूदा विश्व व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/news/story/2007/06/070615_nonviolence_un.shtml|title=गाँधी जयंती अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस|accessmonthday=01 सितम्बर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=बीबीसी हिंदी|language=हिन्दी}}</ref> [[15 जून]], [[2007]] को महासभा द्वारा पारित संकल्प में कहा गया कि- "शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच अहिंसा का व्यापक प्रसार किया जाएगा।" संकल्प यह भी पुष्ट करता है कि "अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता एवं शांति, सहिष्णुता तथा संस्कृति को अहिंसा द्वारा सुरक्षित रखा जाए।"
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अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गाँधी के योगदान को सराहने के लिए ही इस दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया। इस सिलसिले में '[[संयुक्त राष्ट्र महासभा]]' में [[भारत]] द्वारा रखे गए प्रस्ताव का भरपूर समर्थन किया गया। महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया। इनमें [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[नेपाल]], [[श्रीलंका]], [[बांग्लादेश]], [[भूटान]] जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा [[अफ़्रीका]] और [[अमरीका]] महाद्वीप के कई देश भी शामिल थे। मौजूदा विश्व व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/news/story/2007/06/070615_nonviolence_un.shtml|title=गाँधी जयंती अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस|accessmonthday=01 सितम्बर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=बीबीसी हिंदी|language=हिन्दी}}</ref> [[15 जून]], [[2007]] को महासभा द्वारा पारित संकल्प में कहा गया कि- "शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच अहिंसा का व्यापक प्रसार किया जाएगा।" संकल्प यह भी पुष्ट करता है कि "अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता एवं शांति, सहिष्णुता तथा संस्कृति को अहिंसा द्वारा सुरक्षित रखा जाए।"
 
==भारत के राष्ट्रपिता==
 
==भारत के राष्ट्रपिता==
 
आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है। विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गाँधी का नाम पूज्यनीय है। उन्होंने भारत की राजनीतिक आज़ादी की लड़ाई लड़ी। इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें। महात्मा गांधी का अपना सार्वजनिक जीवन [[दक्षिण अफ्रीका]] में प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया। तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से प्रतिष्ठत कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है। महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा। उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया। महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था। अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं। अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है। यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है। अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये। जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक [[महात्मा बुद्ध]] और [[महावीर|भगवान महावीर]] जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं। कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर [[भारत]] में [[राम|भगवान राम]], [[श्रीकृष्ण]], महात्मा बुद्ध तथा महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं। इतना ही नहीं [[गुरुनानक|गुरुनानक देव]], [[कबीर|संत कबीर]], [[तुलसीदास]], [[रहीम]], और [[मीरा]] जैसे संतों की भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता। महात्मा गांधी जब एक रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे तब एक गोरे अधिकारी ने उनको उस बोगी से उतार दिया क्योंकि वह गोरे नहीं थे। उसके बाद उन्होंने जो अपना जीवन जिया वह एक ऐसी वास्तविक कहानी है जिसकी कल्पना उस समय बड़े से बड़ा फ़िल्मी पटकथा लेखक भी नहीं कर सकता था। उनकी पृष्ठभूमि पर ही शायद बाद में जीरो से हीरो बनने की कहानियां फ़िल्मों पर आयी होंगी। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है। हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस समय महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेज़ी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।<ref>{{cite web |url=http://teradipak.blogspot.in/2012/09/2-special-hindi-article-2-october.html |title=महात्मा गांधी जयंती पर विशेष |accessmonthday=19 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका |language=हिंदी }} </ref>
 
आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है। विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गाँधी का नाम पूज्यनीय है। उन्होंने भारत की राजनीतिक आज़ादी की लड़ाई लड़ी। इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें। महात्मा गांधी का अपना सार्वजनिक जीवन [[दक्षिण अफ्रीका]] में प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया। तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से प्रतिष्ठत कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है। महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा। उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया। महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था। अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं। अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है। यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है। अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये। जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक [[महात्मा बुद्ध]] और [[महावीर|भगवान महावीर]] जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं। कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर [[भारत]] में [[राम|भगवान राम]], [[श्रीकृष्ण]], महात्मा बुद्ध तथा महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं। इतना ही नहीं [[गुरुनानक|गुरुनानक देव]], [[कबीर|संत कबीर]], [[तुलसीदास]], [[रहीम]], और [[मीरा]] जैसे संतों की भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता। महात्मा गांधी जब एक रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे तब एक गोरे अधिकारी ने उनको उस बोगी से उतार दिया क्योंकि वह गोरे नहीं थे। उसके बाद उन्होंने जो अपना जीवन जिया वह एक ऐसी वास्तविक कहानी है जिसकी कल्पना उस समय बड़े से बड़ा फ़िल्मी पटकथा लेखक भी नहीं कर सकता था। उनकी पृष्ठभूमि पर ही शायद बाद में जीरो से हीरो बनने की कहानियां फ़िल्मों पर आयी होंगी। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है। हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस समय महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेज़ी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।<ref>{{cite web |url=http://teradipak.blogspot.in/2012/09/2-special-hindi-article-2-october.html |title=महात्मा गांधी जयंती पर विशेष |accessmonthday=19 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका |language=हिंदी }} </ref>

07:59, 25 दिसम्बर 2014 का अवतरण

गाँधी जयन्ती
महात्मा गाँधी
विवरण भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी जिन्हें बापू या महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, के जन्मदिवस को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
तिथि 2 अक्टूबर
संबंधित लेख अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस, महात्मा गाँधी
अन्य जानकारी आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है।

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गाँधी जयन्ती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है। भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी जिन्हें बापू या महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन 2 अक्तूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। वस्तुतः गांधीजी विश्व भर में उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस

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अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गाँधी के योगदान को सराहने के लिए ही इस दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया। इस सिलसिले में 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' में भारत द्वारा रखे गए प्रस्ताव का भरपूर समर्थन किया गया। महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया। इनमें अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अफ़्रीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश भी शामिल थे। मौजूदा विश्व व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था।[1] 15 जून, 2007 को महासभा द्वारा पारित संकल्प में कहा गया कि- "शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच अहिंसा का व्यापक प्रसार किया जाएगा।" संकल्प यह भी पुष्ट करता है कि "अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता एवं शांति, सहिष्णुता तथा संस्कृति को अहिंसा द्वारा सुरक्षित रखा जाए।"

भारत के राष्ट्रपिता

आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है। विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गाँधी का नाम पूज्यनीय है। उन्होंने भारत की राजनीतिक आज़ादी की लड़ाई लड़ी। इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें। महात्मा गांधी का अपना सार्वजनिक जीवन दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया। तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से प्रतिष्ठत कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है। महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा। उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया। महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था। अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं। अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है। यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है। अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये। जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं। कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर भारत में भगवान राम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध तथा महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं। इतना ही नहीं गुरुनानक देव, संत कबीर, तुलसीदास, रहीम, और मीरा जैसे संतों की भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता। महात्मा गांधी जब एक रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे तब एक गोरे अधिकारी ने उनको उस बोगी से उतार दिया क्योंकि वह गोरे नहीं थे। उसके बाद उन्होंने जो अपना जीवन जिया वह एक ऐसी वास्तविक कहानी है जिसकी कल्पना उस समय बड़े से बड़ा फ़िल्मी पटकथा लेखक भी नहीं कर सकता था। उनकी पृष्ठभूमि पर ही शायद बाद में जीरो से हीरो बनने की कहानियां फ़िल्मों पर आयी होंगी। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है। हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस समय महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेज़ी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गाँधी जयंती अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस (हिन्दी) बीबीसी हिंदी। अभिगमन तिथि: 01 सितम्बर, 2013।
  2. महात्मा गांधी जयंती पर विशेष (हिंदी) दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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