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'''चन्दायन''' : इससे [[हिन्दी]] में सूफी काव्य/प्रेमाख्यान काव्य परम्परा का सूत्रपात होता है। इसकी रचना मुल्ला दाऊद ने 1379 ई. में की थी। इसका मूलनाम माताप्रसाद गुप्त 'लोर कहा' या ' लोर कथा' मानते हैं। परंतु अब चन्दायन (माताप्रसाद) या चन्दायन (परमेश्वरीलाल गुप्त) नाम ही प्रसिद्ध है। नायक (लोरिक) तथा नायिका (चन्दा) का प्रणय वर्णन इसका कथ्य है।
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'चन्दायन' आलोच्यकाल के अंतर्गत नहीं आता तथापि उसका परिचय प्रस्तुत अध्याय में इसलिए किया गया है क्योंकि वह हिन्दी के प्राप्त सूफी प्रेमाख्यानों में पहला समझा जाता है और आलोच्यकाल से केवल 20 वर्ष पूर्व का है। दक्खिनी के प्रेमाख्यानों में जहां 'कुतुबमुश्तरी', 'सबरस', 'सैफुलमुलूक व वदीउलजमाल' तथा 'चंदरबदन-माहियार' के कथानक विस्तार से दिये गये हैं, वहीं 'गुलशने इश्क़', फूलबदन', आदि का रचनाकाल तथा उनके रचियताओं का उल्लेख कर उनके कथानकों को अति संक्षेप में दिया गया है।
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==चन्दायन का रचनाकाल तथा कवि का परिचय==
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सूफी प्रेमाख्यानों की परम्परा हिन्दी में मुल्ला दाउद से प्रारम्भ होती है। उनका 'चन्दायन' सन् 1379 में लिखा गया। वह डलमऊ के रहने वाले थे और अपने यहाँ की लोक-प्रचलित गाथा चनैनी के आधार पर उन्होंने "चन्दायन" की रचना की।
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14:14, 8 फ़रवरी 2013 का अवतरण

चन्दायन : इससे हिन्दी में सूफी काव्य/प्रेमाख्यान काव्य परम्परा का सूत्रपात होता है। इसकी रचना मुल्ला दाऊद ने 1379 ई. में की थी। इसका मूलनाम माताप्रसाद गुप्त 'लोर कहा' या ' लोर कथा' मानते हैं। परंतु अब चन्दायन (माताप्रसाद) या चन्दायन (परमेश्वरीलाल गुप्त) नाम ही प्रसिद्ध है। नायक (लोरिक) तथा नायिका (चन्दा) का प्रणय वर्णन इसका कथ्य है। 'चन्दायन' आलोच्यकाल के अंतर्गत नहीं आता तथापि उसका परिचय प्रस्तुत अध्याय में इसलिए किया गया है क्योंकि वह हिन्दी के प्राप्त सूफी प्रेमाख्यानों में पहला समझा जाता है और आलोच्यकाल से केवल 20 वर्ष पूर्व का है। दक्खिनी के प्रेमाख्यानों में जहां 'कुतुबमुश्तरी', 'सबरस', 'सैफुलमुलूक व वदीउलजमाल' तथा 'चंदरबदन-माहियार' के कथानक विस्तार से दिये गये हैं, वहीं 'गुलशने इश्क़', फूलबदन', आदि का रचनाकाल तथा उनके रचियताओं का उल्लेख कर उनके कथानकों को अति संक्षेप में दिया गया है।


चन्दायन का रचनाकाल तथा कवि का परिचय

सूफी प्रेमाख्यानों की परम्परा हिन्दी में मुल्ला दाउद से प्रारम्भ होती है। उनका 'चन्दायन' सन् 1379 में लिखा गया। वह डलमऊ के रहने वाले थे और अपने यहाँ की लोक-प्रचलित गाथा चनैनी के आधार पर उन्होंने "चन्दायन" की रचना की।