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असम के बाग़ान में चाय की पत्तियाँ चुनती लड़कियाँ

चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है और संसार के अधिकांश लोग इसे पसन्द करते हैं। चाय मुलायम एवं नयी पत्ती, बन्द वानस्पतिक कली आदि से तैयार की जाती है। चाय मुख्यतः कैफीन का अंश पाया जाता है। इसकी ताजी पत्तियों में टैनिन की मात्रा 25.1% पायी जाती है जबकि संसाधित पत्तियों में टैनिन की मात्रा 13.3% तक होती है। सर्वोत्तम चाय कलियों से बनायी जाती है। चाय की खेती में लाल किट्ट तथा शैवाल जनित चित्ती रोग का प्रकोप होता है। चाय के लिए न्यूनतम वर्षा 125 से 150 सेंमी होना चाहिए तथा तापमान 210 से 270 सें. ग्रे. तक उपयुक्त होता है।

इतिहास

सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अँग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए। कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में, कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। [1]

खेती और कटाई

चाय के पेड़ की उम्र लगभग सौ वर्ष होती है किन्तु अधिक उम्र के चाय पेड़ों की पत्तियों के स्वाद में कड़ुआपन आ जाने के कारण प्रायः चाय बागानों में पचास साठ वर्ष बाद ही पुराने पेड़ों को उखाड़ कर नये पेड़ लगा दिये जाते हैं। चाय के पेड़ों की कटिंग करके उसकी ऊंचाई को नहीं बढ़ने दिया जाता ताकि पत्तियों को सुविधापूर्वक तोड़ा जा सके। यदि कटिंग न किया जावे तो चाय के पेड़ भी बहुत ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं।‘’ अवधिया जी को चाय के पेड़ के विषय में उक्‍त जानकारी उनके जलपाईगुड़ी प्रवास के दौरान वहां के लोगों से मिली थी।[2]

विश्व वितरण

चाय के बाग़ान में काम करते कुछ लोग

विश्व में लगभग 26 लाख हेक्टेयर भूमि पर चाय की कृषि की जाती है। विश्व में इसका वार्षिक उत्पादन 20 लाख टन है। चाय उत्पादक देशों में भारत, श्रीलंका, चीन, जापान आदि प्रमुख हैं। अन्य देशों में रूस, जार्जिया, तुर्की, कीनिया, मलावी, युगांडा तथा मोजाम्बिक प्रमुख उत्पादक देश हैं। भारत लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि में फैले लगभग 1300 बाग़ानों से 7000 लाख किग्रा0 चाय प्रतिवर्ष उत्पादन का लगभग 50% अकेले असम में उत्पादित किया जाता है। असम में ब्रह्मपुत्र घाटी, सूरमा घाटी तथा सदिया क्षेत्र मुख्य चाय उत्पादक क्षेत्र हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है- यहाँ दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी ज़िले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। दक्षिणी भारत में प्रमुख चाय उत्पादक राज्य क्रमशः तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि है। यहाँ नीलगिरि, अन्नामलाई और कार्डेमम पहाड़ी मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रमुख निर्यातक देश-

  1. भारत
  2. श्रीलंका
  3. कीनिया
  4. चीन
  5. इण्डोनेशिया
  6. बांग्लादेश आदि।

चाय का उत्पादन

चाय का उत्पादन, खपत एवं व्यापार(मात्रा : मिलियम किलोग्राम; मुउल्य : करोड़ रु.)
उत्पादन निर्यात आयात घरेलू खपत मात्रा
वर्ष मात्रा

1997 -98

835.64
1998-99 854.78
1999 835.35
2000-01 848.36
2001-02 847.25
2002-03 845.97
2003-04 878.65
2004-05 906.84
2005-06 948.94
2006-07 947-12
2007-08 ( अप्रॅल-नवम्बर) 805.18
मात्रा मूल्य
211.26 2003.15

205.86

2191.84

194.44

1932.66

203.55

1889.78

19.00

1695.78

184.4

1665.04

183.07

1636.99

205.81

1924.71

196.67

1793.58

218.15

2045.72

100.87

998.68
मात्रा मूल्य

2.61

17.79

8.93

64.73

10.36

61.97

15.23

95.47

16.02

82.70

22.49

105.32

11.34

66.23

32.53

145.15

17.41

102.77

20.78

110.88

11.80

76.18
मात्रा

597

615

633

653

673

693

714

735

757

771

चाय के प्रकार

मोटे तौर पर चाय दो तरह की होती है :

  1. प्रोसेस्ड या सीटीसी (कट, टीयर और कर्ल)
  2. ग्रीन चाय (नैचरल चाय)।

सीटीसी चाय (आम चाय)

सीटीसी चाय

यह विभिन्न ब्रैंड्स के तहत बिकने वाली दानेदार चाय होती है, जो आमतौर पर घर, रेस्तरां और होटल आदि में इस्तेमाल की जाती है। इसमें पत्तों को तोड़कर कर्ल (मोड़ना) किया जाता है। फिर सुखाकर दानों का रूप दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव आते हैं। इससे चाय में स्वाद और महक बढ़ जाती है। लेकिन यह हरी चाय जितनी नैचरल नहीं बचती और न ही उतनी फ़ायदेमंद।

हरी चाय(ग्रीन टी)

हरी चाय

यह चाय के पौधे के ऊपर के कच्चे पत्ते से बनती है। सीधे पत्तों को तोड़कर भी चाय बना सकते हैं। इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज़्यादा होते हैं। हरी चाय काफ़ी फ़ायदेमंद होती है, ख़ासकर अगर बिना दूध और चीनी पी जाए। इसमें कैलरी भी नहीं होतीं। इसी हरी चाय से हर्बल व ऑर्गेनिक आदि चाय तैयार की जाती है। ऑर्गेनिक इंडिया, ट्विनिंग्स इंडिया, लिप्टन कुछ जाने-माने नाम हैं, जो ग्रीन टी मुहैया कराते हैं।

हर्बल चाय

हरी चाय में कुछ जड़ी-बूटियां मसलन तुलसी, अश्वगंधा, इलायची, दालचीनी आदि मिला देते हैं तो हर्बल टी तैयार होती है। इसमें कोई एक या तीन-चार हर्ब मिलाकर भी डाल सकते हैं। यह बाज़ार में तैयार पैकेट्स में भी मिलती है। यह सर्दी-खांसी में काफ़ी फ़ायदेमंद होती है, इसलिए लोग दवा की तरह भी इसका यूज करते हैं।

ऑर्गेनिक चाय

जिस चाय के पौधों में कीटनाशक(पेस्टिसाइड) और रासायनिक उर्वरक(फर्टिलाइजर) आदि नहीं डाले जाते, उसे ऑर्गेनिक चाय कहा जाता है। यह सेहत के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद है।

सफ़ेद चाय(वाइट टी)

सफ़ेद चाय

कुछ दिनों की कोमल पत्तियों से इसे तैयार किया जाता है। इसका हल्का मीठा स्वाद काफ़ी अच्छा होता है। इसमें कैफीन सबसे कम और एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज़्यादा होते हैं। इसके एक कप में सिर्फ़ 15 मि.ग्रा. कैफीन होता है, जबकि काली चाय(ब्लैक टी) के एक कप में 40 और हरी चाय में 20 मि.ग्रा. कैफीन होता है।

काली चाय(ब्लैक टी)

काली चाय

कोई भी चाय दूधचीनी मिलाए बिना पी जाए तो उसे ब्लैक टी कहते हैं। ग्रीन टी या हर्बल टी को तो आमतौर पर दूध मिलाए बिना ही पिया जाता है। लेकिन किसी भी तरह की चाय को काली चाय के रूप में पीना ही सबसे सेहतमंद है। तभी चाय का असली फ़ायदा मिलता है।

इंस्टेंट चाय

इस कैटिगरी में टी बैग्स आदि आते हैं, यानी पानी में डालो और तुरंत चाय तैयार। टी बैग्स में टैनिक एसिड होता है, जो नैचरल एस्ट्रिंजेंट होता है। इसमें एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से टी-बैग्स को कॉस्मेटिक्स आदि में भी यूज किया जाता है।

लेमन चाय

नीबू की चाय सेहत के लिए अच्छी होती है, क्योंकि चाय के जिन एंटी-ऑक्सिडेंट्स को बॉडी एब्जॉर्ब नहीं कर पाती, नीबू डालने से वे भी एब्जॉर्ब हो जाते हैं।

मशीन वाली चाय

रेस्तरां, दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट आदि पर आमतौर पर मशीन वाली चाय मिलती है। इस चाय का कोई फ़ायदा नहीं होता क्योंकि इसमें कुछ भी नैचरल फॉर्म में नहीं होता।

अन्य चाय

आजकल स्ट्रेस रीलिविंग, रिजूविनेटिंग, स्लिमिंग टी व आइस टी भी खूब चलन में हैं। इनमें कई तरह की जड़ी-बूटी आदि मिलाई जाती हैं। मसलन, भ्रमी रिलेक्स करता है तो दालचीनी ताजगी प्रदान करती है और तुलसी इमून सिस्टम को मजबूत करती है। इसी तरह स्लिमिंग टी में भी ऐसे तत्व होते हैं, जो वजन कम करने में मदद करते हैं। इनसे मेटाबॉलिक रेट थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन यह सपोर्टिव भर है। सिर्फ़ इसके सहारे वजन कम नहीं हो सकता। आइस टी में चीनी काफ़ी होती है, इसलिए इसे पीने का कोई फ़ायदा नहीं है।

चाय के फ़ायदे

  • चाय में कैफीन और टैनिन होते हैं, जो स्टीमुलेटर होते हैं। इनसे शरीर में फुर्ती का अहसास होता है।
  • चाय में मौजूद एल-थियेनाइन नामक अमीनो-एसिड दिमाग को ज़्यादा अलर्ट लेकिन शांत रखता है।
  • चाय में एंटीजन होते हैं, जो इसे एंटी-बैक्टीरियल क्षमता प्रदान करते हैं।
  • इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कई बीमारियों से बचाव करते हैं।
  • चाय में फ्लोराइड होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और दांतों में कीड़ा लगने से रोकता है।

चाय के नुक़सान

  • दिन भर में तीन कप से ज़्यादा पीने से एसिडिटी हो सकती है।
  • आयरन एब्जॉर्ब करने की शरीर की क्षमता को कम कर देती है।
  • कैफीन होने के कारण चाय पीने की लत लग सकती है।
  • ज़्यादा पीने से खुश्की आ सकती है।
  • पाचन में दिक्कत हो सकती है।
  • दांतों पर दाग़ आ सकते हैं लेकिन कॉफी से ज़्यादा दाग़ आते हैं।
  • देर रात पीने से नींद न आने की समस्या हो सकती है।

चाय की महत्ता

चाय की औषधीय महत्ता

चाय को कैंसर, हाई कॉलेस्ट्रॉल, एलर्जी, लिवर और दिल की बीमारियों में फ़ायदेमंद माना जाता है। कई रिसर्च कहती हैं कि चाय कैंसर व ऑर्थराइटस की रोकथाम में भूमिका निभाती है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कंट्रोल करती है। साथ ही, हार्ट और लिवर संबंधी समस्याओं को भी कम करती है।

चाय के गुण

  • चाय की पत्तियों के पानी को गुलाब के पौधे की जड़ों में डालना चाहिए।
  • चाय की पत्तियों को पानी में उबाल कर बाल धोने से चमक आ जाती है।
  • एक लीटर उबले पानी में पांच टी बैग्स डालें और पांच मिनट के लिए छोड़ दें। इसमें थोड़ी देर के लिए पैर डालकर बैठे रहें। पैरों को काफ़ी राहत मिलती है।
  • दो टी बैग्स को ठंडे पानी में डुबोकर निचोड़ लें। फिर दोनों आंखों को बंद कर लें और उनके ऊपर टी बैग्स रखकर कुछ देर के लिए शांति से लेट जाएं। इससे आंखों की सूजन और थकान उतर जाएगी।
  • शरीर के किसी भाग में सूजन हो जाए तो उस पर गर्म पानी में भिगोकर टी बैग रखें। इससे दर्द कम होगा और ब्लड सर्कुलेशन सामान्य हो जाएगा।
  • गर्म पानी में भीगे हुए टी बैग को रखने से दांत के दर्द में फौरी आराम मिलता है।

चाय बनाने का सही तरीक़ा

ताजा पानी लें। उसे एक उबाल आने तक उबालें। पानी को आधे मिनट से ज़्यादा नहीं उबालें। एक सूखे बर्तन में चाय पत्ती डालें। इसके बाद बर्तन में पानी उड़ेल दें। पांच-सात मिनट के लिए बर्तन को ढक दें। इसके बाद कप में छान लें। स्वाद के मुताबिक दूध और चीनी मिलाएं। एक कप चाय बनाने के लिए आधा चम्मच चाय पत्ती काफ़ी होती है। चाय पत्ती, दूध और चीनी को एक साथ उबालकर चाय बनाने का तरीका सही नहीं है। इससे चाय के सारे फायदे खत्म हो जाते हैं। इससे चाय काफ़ी स्ट्रॉन्ग भी हो जाती है और उसमें कड़वापन आ जाता है।

यह भी जानें

कुल्ह‌ड़ में चाय

कब पिएं
यूं तो चाय कभी भी पी सकते हैं लेकिन बेड-टी और सोने से ठीक पहले चाय पीने से बचना चाहिए। दरअसल, रात को सोने और आराम करने से इंटेस्टाइन (आंत) फ्रेश होती है। ऐसे में सुबह उठकर सबसे पहले चाय पीना सही नहीं है। देर रात में चाय पीने से नींद आने में दिक्कत हो सकती है।

साथ में क्या खाएं

  • जिन लोगों को एसिडिटी की दिक्कत है, उन्हें ख़ाली चाय नहीं पीनी चाहिए। साथ में एक-दो बिस्कुट ले लें।
  • ग्रीन टी हर्बल ड्रिंक है, इसलिए इसे ख़ाली ही पीना बेहतर है। साथ में कुछ न खाएं तो इसका गुणकारी असर ज़्यादा होता है।

कितने कप पिएं
बिना दूध और चीनी की हर्बल चाय तो कितनी बार भी पी सकते हैं। लेकिन दूध-चीनी डालकर और सभी चीजें एक साथ उबालकर बनाई गई चाय तीन कप से ज़्यादा नहीं पीनी चाहिए।

कितनी गर्म पिएं
चाय को कप में डालने के 2-3 मिनट बाद पीना ठीक रहता है। वैसे जीभ खुद एक सेंस ऑर्गन है। चाय के ज़्यादा गर्म होने पर उसमें जलन हो जाती है और हमें पता चल जाता है कि चाय ज़्यादा गर्म है।

रखी हुई चाय न पिएं
चाय ताजा बनाकर ही पीनी चाहिए। आधे घंटे से ज़्यादा रखी हुई चाय को ठंडा या दोबारा गर्म करके नहीं पीना चाहिए। इसी तरह एक ही पत्ती को बार-बार उबालकर पीना और भी नुक़सानदेह है। अक्सर ढाबों और गली-मुहल्ले की चाय की दुकानों पर चाय बनानेवाले बर्तन में पुरानी ही पत्ती में और पत्ती डालकर चाय बनाई जाती है। इससे चाय में नुक़सानदायक तत्व बनने लगते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चाय की खेती कब, कहाँ और कैसे? (हिन्दी) (एच टी एम एल) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2011
  2. खेती खबरी (हिन्दी) (पी.एच.पी)। । अभिगमन तिथि: 6 मार्च, 2011

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