जंबूमार्ग

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जंबूमार्ग का उल्लेख महाभारत, वनपर्व में हुआ है। इसके अंतर्गत पश्चिम दिशा के जिन तीर्थों का वर्णन पांडवों के पुरोहित धौम्य ने किया है, उनमें जंबूमार्ग भी है-

'जंबूमार्गो महाराज ऋषीणां भावितात्मनाम्। आश्रम: शाम्यता श्रेष्ठ मृगद्विज निषेवित:'[1]

  • श्री वासुदेव शरण अग्रवाल के मत में जंबूमार्ग आबू पर्वत पर स्थित था, किंतु इसका जंबू अरण्य से अभिज्ञान अधिक समीचीन जान पड़ता है।
  • विष्णु पुराण में भी जंबूमार्ग का उल्लेख हुआ है-

'ततश्च तत्कालकृता भावनां प्राप्य मादृशीजंबूमार्गे महारण्ये जातो जातिस्मरो मृग:'

अर्थात् "राजा भरत, मृत्यु-समय की दृढ़भावना के कारण जंबूमार्ग के घोरवन में अपने पूर्वजन्म की स्मृति से युक्त एक मृग हुए।"

  • यह तथ्य द्रष्टव्य है कि विष्णु पुराण और महाभारत दोनों में ही जंबूमार्ग में मृगों का निवास बताया गया है।
  • विष्णु पुराण में जंबूमार्ग को स्पष्ट रूप से महारण्य कहा गया है। इससे भी इस स्थान का जंबू अरण्य से अभिज्ञान उपयुक्त जान पड़ता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 89, 13-14
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 351 |

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