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'''जनपदिन्''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द था।
 
'''जनपदिन्''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द था।
  
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*प्रत्येक [[महाजनपद|जनपद]] में जो उसके [[क्षत्रिय]] शासक थे, वह पाणिनि काल में 'जनपदिन्' कहलाते थे।<ref>4/3/100, जनपदिन:=जनपद स्वामिन:  क्षत्रिया:</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=142|url=}}</ref>
  
  

07:07, 11 अप्रैल 2018 का अवतरण

जनपदिन् पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द था।

  • प्रत्येक जनपद में जो उसके क्षत्रिय शासक थे, वह पाणिनि काल में 'जनपदिन्' कहलाते थे।[1][2]


इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 4/3/100, जनपदिन:=जनपद स्वामिन: क्षत्रिया:
  2. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 142 |

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