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जय गुरुदेव होने का मतलब क्या था, यह कोई उनके भक्तों से पूछे जिनकी संख्या लगभग बीस करोड़ है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जय गुरु देव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का खास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सानिध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा। शाकाहार पर वह हमेशा जोर देते थे। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा।  
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जय गुरुदेव होने का मतलब क्या था, यह कोई उनके भक्तों से पूछे जिनकी संख्या लगभग बीस करोड़ है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जयगुरुदेव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का खास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सानिध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा।  
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जयगुरूदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन जरूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जयगुरूदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।
  
 
बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। जन्म (तारीख का पक्‍की जानकारी नहीं) उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में पारंगत थे।  
 
बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। जन्म (तारीख का पक्‍की जानकारी नहीं) उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में पारंगत थे।  
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बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पडे। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरूओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरू मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो रहे। उनके सानिध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। दिसंबर 1950 में उनके गुरू घूरे लाल जी का निधन हो गया।  
 
बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पडे। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरूओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरू मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो रहे। उनके सानिध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। दिसंबर 1950 में उनके गुरू घूरे लाल जी का निधन हो गया।  
  
बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरू घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार दस जुलाई 1952 को वाराणसी में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद करीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जयगुरूदेव की धूम रही। 29 जून 1975 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। जयगुरूदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरूदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन के आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।  
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बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरू घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार दस जुलाई 1952 को वाराणसी में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद करीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जयगुरूदेव की धूम रही। 29 जून 1975 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। जयगुरूदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरूदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।  
  
 
वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा जयगुरुदेव से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर गरीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी (दिसंबर) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर नेशनल हाइवे के किनारे दूसरी जमीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जयगुरूदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।
 
वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा जयगुरुदेव से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर गरीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी (दिसंबर) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर नेशनल हाइवे के किनारे दूसरी जमीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जयगुरूदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।
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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ गरीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जयगुरूदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।
 
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ गरीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जयगुरूदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।
 
जयगुरूदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन जरूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जयगुरूदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।
 
 
  
  

14:00, 8 जून 2012 का अवतरण

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बाबा जयगुरूदेव

जय गुरुदेव होने का मतलब क्या था, यह कोई उनके भक्तों से पूछे जिनकी संख्या लगभग बीस करोड़ है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जयगुरुदेव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का खास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सानिध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा।

जयगुरूदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन जरूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जयगुरूदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।

बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। जन्म (तारीख का पक्‍की जानकारी नहीं) उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में पारंगत थे।

उन्होंने कोलकाता में पांच फरवरी 1973 को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूं - मैं इस किराये के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था - मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फकीर और महात्मा नहीं हूं। मैं न तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।

बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पडे। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरूओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरू मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो रहे। उनके सानिध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। दिसंबर 1950 में उनके गुरू घूरे लाल जी का निधन हो गया।

बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरू घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार दस जुलाई 1952 को वाराणसी में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद करीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जयगुरूदेव की धूम रही। 29 जून 1975 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। जयगुरूदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरूदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।

वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा जयगुरुदेव से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर गरीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी (दिसंबर) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर नेशनल हाइवे के किनारे दूसरी जमीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जयगुरूदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जयगुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर संत बाबा जयगुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी हुई है। उनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर प्रबुद्ध वर्ग तक के लोग हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने का संकल्प लेकर जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं, जिनके तहत तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। बाबा ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए दूरदर्शी पार्टी की भी स्थापना की थी। मकसद था उन्होंने समाज की बिगड़ी हुई व्यवस्था को वैचारिक क्रांति के जरिए ठीक करना। भूमि जोतक, खेतिहर-काश्तकार संगठन की स्थापना भी उन्हीं की देन है।

गुरु के प्रेम को जीवंत बनाए रखने के लिए सदैव याद रखने के लिए उन्होंने पंच दिवसीय वृहद आध्यात्मिक मेले का आयोजन शुरू किया। इस लक्खी मेले में बाबा के सत्संग-प्रवचन गोष्ठी-सभा, दहेज रहित सामूहिक विवाह एवं श्रमदान आदि के अनेक कार्यक्रम होते हैं। यह मेला मथुरा की पहचान भी बन चुका है। मथुरा के जयगुरुदेव आश्रम, नि:शुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल उन्होंने गरीब तबके के लिए शुरू किए। अपने निजी नलकूपों से निकटवर्ती ग्रामों में पाइप लाइन के जरिए उन्होंने मीठे पानी की नि:शुल्क आपूर्ति कराई। श्रमदान में बाबा की अत्यधिक आस्था रही। इसलिए यहां उनके असंख्य अनुयायी श्रमदान करते नजर आते हैं। कुछ वर्ष पहले तक बाबा स्वयं भी श्रमदान किया करते थे। आश्रम की लगभग 80 एकड़ भूमि पर बड़े ही आधुनिक तौर तरीकों से खेती होती है, जिससे आश्रम की भोजन व्यवस्था चलती है। बाबा अपने जीते जी झोपड़ी में रहे। उनके सभी शिष्य भी इसी भी बाबा का अनुसरण करते हैं लेकिन अतिथियों के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न अतिथि गृह है। अपने आश्रम में अपने सदगुरु देव ब्रह्मलीन घूरेलाल जी महाराज की पुण्य स्मृति में 160 फुट ऊंचे योग साधना मंदिर का निर्माण उन्होंने कराया। सफेद संगमरमर का यह मंदिर ताजमहल जैसा प्रतीत होता है। इस मंदिर के डिजाइन में मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप है। यह मंदिर समूचे ब्रज का सबसे ऊंचा व अनोखा मंदिर है। मंदिर में 200 फुट लंबा व 100 फुट चौड़ा सत्संग हॉल है, जिसमें लगभग साठ हजार व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। पूरा मंदिर श्रमदान से बना है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ गरीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जयगुरूदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।



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