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10:45, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
जामदानी एक प्रकार की कसीदा की हुई मलमल, जो भारतीय बुनकरों की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है। विस्तृत और बारीक रूपाकृतियाँ इसकी विशेषता है। अवध के नवाबों के शासन काल में जामदानी ने कलात्मक श्रेष्ठता प्राप्त कर ली थी।
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जामदानी का उद्भव
जामदानी के उद्भव के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन गुप्तकाल (चौथी से छटी शताब्दी ई.) के संस्कृत साहित्य में इसका उल्लेख है। यह तो ज्ञात है कि मुग़ल काल (1556-1707 ई.) में श्रेष्ठ जामदानियाँ ढाका, तत्कालीन बंगाल राज्य में; वर्तमान बांग्लादेश की राजधानी, में बनाई जाती थीं।
विशेषता
जामदानी की विशेषता इसकी विस्तृत और बारीक रूपाकृतियाँ थीं। 18वीं शताब्दी में जामदानियों की बुनाई अवध के नवाबों के शासन काल में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में प्रारंभ हुई और इसने कलात्मक श्रेष्ठता प्राप्त की। इनके उत्पादन में बहुत कौशल की ज़रूरत होती थी और यह बहुत कीमती थी। जामदानी मलमल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी रूपाकृतियों में फ़ारसी कला के तत्वों का समावेश है।
रूपरेखा
कपड़ा सामान्यतः सफ़ेद सूती होता है और उस पर चटख रंग के सूती धागे, सोने और चांदी के तारों से सजावट या कढ़ाई की जाती है। साड़ियों में किनारों पर शॉलों जैसे डिज़ाइन बुने या काढ़े जाते है। शेष साड़ी पर पुष्प गुच्छों, जो चमेली के फूलों जैसे होते हैं, से या विकर्णीय रूप में वृत्तों को जमा कर सज्जा की जाती है।
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