टप्पा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

टप्पा भारत की प्रमुख पारंपरिक संगीत शैलियों में से एक है। यह माना जाता है की इस शैली की उत्पत्ति पंजाबसिंध प्रांतों के ऊँट चलाने वालों द्वारा की गई थी। इन गीतों में मूल रूप से हीर और रांझा के प्रेम व विरह प्रसंगो को दर्शाया जाता है। खमाज, भैरवी, काफ़ी, तिलांग, झिन्झोटि, सिंधुरा और देश जैसे रागों तथा पंजाबी पश्तो जैसे तालों द्वारा प्रेम-प्रसंग अथवा करुणा भाव व्यक्त किए जाते हैं। 'टप्पा' की विशेषता है, इसमें लिए जाने वाले ऊर्जावान तान और असमान लयबद्ध लहज़े।

गायन शैली

टप्पा गायन को मियाँ ग़ुलाम नबी शोरी ने एक लोक शैली से ऊपर उठाकर एक शास्त्रीय शैली का रूप दिया था। मियाँ ग़ुलाम नबी अवध के नवाब आसफ़उद्दौला के दरबारी गायक थे। टप्पा गायन शैली में ठेठ 'टप्पे के तान' प्रयोग में लाए जाते हैं। पंजाबी ताल, जिसे 'टप्पे का ठेका' भी कहा जाता है, में ताल के प्रत्येक चक्र में तान के खिंचाव और रिहाई का प्रयोग आवश्यक होता है। टप्पों को एकाएक प्रस्तुत करने हेतु नियमानुसार पहले आलाप को ठुमरी में गाया जाता है तथा उसके पश्चात् तेज़ी से असमान लयबद्ध लहज़े में बुने शब्दों के उपयोग से तानायत की ओर बढ़ा जाता है। टप्पा गायकी में 'जमजमा', 'गीतकारी', 'खटका', 'मुड़की' व 'हरकत' जैसे कई अलंकार प्रयोग में लाए जाते हैं।[1]

कलाकारों का योगदान

गायन की यह शैली मूलत: ग्वालियर घराने तथा बनारस घराने की विशेषता है। दोनों घरानों के टप्पों में ताल और आशुरचना की शैली का उपयोग जैसे कुछ संरचनात्मक मतभेद हैं, लेकिन मौलिक सिद्धांत एक जैसे ही हैं। वर्तमान में टप्पा प्रदर्शन के परिदृश्य में जब कलाकारों की बात आती है तो निस्संदेह सबसे शानदार माना जाता है, विदुषी मालिनी राजुर्कर को। सत्तर के दशक से इन्होंने इस शैली को जनप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अपनी स्पष्ट व उज्ज्वल तानों से न केवल इन्होंने कई उत्कृष्ट प्रस्तुतियाँ दी हैं, बल्कि टप्पों में 'मूर्छना' जैसी तकनीकों का प्रयोग करके इस शैली को एक नया रूप प्रदान किया है।

गायक तथा गायिका

इसके अतिरिक्त ग्वालियर घराने से आरती अंकालिकर, आशा खादिलकर, शाश्वती मंडल पाल जैसी गायिकाओं ने इस गायन शैली को लोकप्रिय बनाया है। बनारस घराने से बड़े रामदासजी, सिद्धेश्वरी देवी, गिरिजा देवी, पंडित गणेश प्रसाद मिश्र तथा राजन व साजन मिश्र जैसे दिग्गजों ने भी इस शैली में उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ दी हैं।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 टप्पा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2012।

संबंधित लेख